प्रवासी ग्रामीणों की घर वापसी और गाँव को बना दिया 'मॉडल गाँव'; अब काम की तलाश में भटकना नहीं पड़ता

प्रवासी ग्रामीण जब महामारी के दौरान धौलपुर जिले के बिजौली में वापस लौटे, तो गाँव में ग्रामीण उद्मशाला केंद्र स्थापित किया गया। यह केंद्र फिलहाल कृषि और डेयरी उत्पादों जैसे शहद, घी, पनीर, मसाले, सरसों के तेल आदि का केंद्र बन गया है। ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी से गाँव में पीने के पानी के संकट को भी दूर कर लिया गया है।

Manoj ChoudharyManoj Choudhary   16 March 2023 10:39 AM GMT

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प्रवासी ग्रामीणों की घर वापसी और गाँव को बना दिया मॉडल गाँव; अब काम की तलाश में भटकना नहीं पड़ता

 यह ग्रामीण केंद्र कृषि और डेयरी उत्पादों जैसे शहद, घी, पनीर, मसाले, सरसों के तेल आदि का केंद्र बन गया है और इसने गाँव की 20 महिलाओं और चार पुरुषों को रोजगार दिया हुआ है।

बिजौली (धौलपुर), राजस्थान। राजस्थान के धौलपुर जिले के बिजौली गाँव को पिछले साल 2022 में जिला प्रशासन ने एक ‘मॉडल गाँव’ के नाम से नवाजा था। इस गाँव को कई क्षेत्रों में किए गए जबरदस्त विकास कार्यों के लिए सराहना मिल रही है, जिसमें आजीविका के अधिक अवसर मुहैया करना, स्किल ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करना, शिक्षा सुविधाओं में सुधार, पानी की कमी की समस्याओं से निपटना, स्वच्छता आदि शामिल है।

लेकिन इस गाँव के हालात हमेशा से ऐसे नहीं थे, कुछ साल पहले तो स्थिति काफी दयनीय थी। गाँव में न ती पीने के लिए पर्याप्त पानी था और न ही रोजगार के ज्यादा अवसर। साफ-सफाई का तो हाल ही बुरा था।

चीजें तब बदलनी शुरू हुईं, जब गाँव के वो लोग जो कमाई के बेहतर अवसरों की तलाश में बड़े शहरों की ओर चले गए थे, महामारी के दौरान बिजौली लौटने लगे। राज्य की राजधानी जयपुर से लगभग 285 किलोमीटर दूर इस गाँव में उसी साल यानी 2020 में ग्रामीण उद्मशाला केंद्र की स्थापना की गई।


यह सेंटर धौलपुर स्थित गैर-लाभकारी मंजरी फाउंडेशन के प्रयासों का नतीजा था। एचडीएफसी ने इसे अपने कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी के हिस्से के तौर पर फंडिड किया था। फिलहाल यह ग्रामीण केंद्र कृषि और डेयरी उत्पादों जैसे शहद, घी, पनीर, मसाले, सरसों के तेल आदि का केंद्र बन गया है और इसने गाँव की 20 महिलाओं और चार पुरुषों को रोजगार दिया हुआ है।

मंजरी फाउंडेशन के टीम लीडर विनोद कुमार के मुताबिक, तकरीबन पांच हजार गाँव वालों को इस केंद्र से फायदा पहुंच रहा है। वे अब बिना किसी बिचौलिए के सीधे अपनी खेती और डेयरी उत्पाद बेच सकते हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र को लगभग 70 लाख रुपये की लागत से स्थापित किया गया था। आज यह हर साल 5 करोड़ रुपये के सामान का कारोबार करता है। उत्पादों को बड़े शहरों में शॉपिंग मॉल और स्टोर में भेजा जाता है और ये ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं।

महिलाएं सबसे आगे

विनोद कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "बिजौली एक ऐसा गाँव था जहां विकास का नामों-निशान नहीं था. यह पूरी तरह से एक उपेक्षित गाँव था. इसलिए इसे 2020 में एक मॉडल गाँव के रूप में तैयार करने के लिए चुना गया। उस समय गाँव में पीने के लिए साफ पानी की कमी थी, नौकरियां भी नहीं थी और सड़कों की हालत भी खस्ता थी। साफ-सफाई न के बराबर थी। लेकिन वह सब अब बीते जमाने की बात हो गई है।"


गाँव में रहने वाली लक्ष्मी देवी ग्रामीण उद्मशाला केंद्र में काम करती हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं दिहाड़ी मजदूरी कर जैसे-तैसे अपना गुजारा चला रही थी। एक दिन में दो वक्त का खाना पाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा था। लेकिन केंद्र में काम करने के बाद चीजें सुधरी हैं। अब मैं अपने परिवार का भरण-पोषण बेहतर ढंग से कर पा रही हूं।" लक्ष्मी देवी को गाँव की अन्य महिलाओं के साथ केंद्र में पनीर, घी और सत्तू जैसे खाद्य उत्पादों को प्रोसेस करने वाली ऑपरेटिंग मशीनरी के लिए प्रशिक्षित किया गया है।

गाँव की एक अन्य निवासी पिंकी देवी ने गाँव कनेक्शन से कहा, " ट्रेनिंग के बाद हम मशीनों को आसानी से चला पाते हैं। इसने हमें कमाई का एक अतिरिक्त जरिया दिया है। हर दिन कुल 2.5 क्विंटल उत्पादों का उत्पादन किया जाता है, जिसमें 15 किलो घी और 150 किलो पनीर शामिल है। यहां काम करने वाला हर व्यक्ति औसतन लगभग 6,000 रुपये हर महीने कमा लेता है।” (एक क्विंटल = 100 किलोग्राम होता है)।

मंजरी फाउंडेशन के मैनेजर सारिख खान ने गाँव कनेक्शन को बताया, “इस गाँव और आसपास के अन्य गाँवों के किसान काफी खुश हैं। अब वे उचित मूल्य पर केंद्र को दूध और अन्य उत्पाद बेच सकते हैं। उन्हें अपने प्रोडेक्ट को दूर बेचने जाने के लिए अब आने-जाने पर पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है, क्योंकि उनमें से ज्यादातर के लिए केंद्र बस कुछ ही दूरी पर है।"


उन्होंने कहा कि ग्रामीण उद्मशाला केंद्र के उत्पाद नोएडा, नई दिल्ली और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में जाते हैं। "कटोरी ब्रांड के तहत उत्पाद लोकप्रिय ऑनलाइन साइटों पर भी उपलब्ध हैं।"

खान के मुताबिक, 13 सदस्यीय मार्केटिंग टीम ‘कटोरी ब्रांड’ के चार प्रकार के शहद, दो प्रकार के सरसों के तेल, अलग-अलग तरीके के देसी घी, पनीर, मावा और मक्खन की सुचारू बिक्री सुनिश्चित करती है।

उपेक्षा से विकास की ओर

हालांकि आदर्श गाँव बनने का सफर काफी मुश्किलों भरा था, लेकिन अब बिजौली में ऐसी सुविधाएं मौजूद हैं जिन पर देश के किसी भी गाँव को गर्व हो सकता है।

मंजरी फाउंडेशन 2018 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम ‘आकांक्षी जिला कार्यक्रम’ के तहत काम कर रहा है। आकांक्षा जिला कार्यक्रम का मकसद विकास में पिछड़े जिलों को बदलना है। 2020 में बिजौली को मॉडल गाँव बनाने के लिए चुना गया था।

आकांक्षी जिले वे हैं जो खराब सामाजिक-आर्थिक संकेतकों से प्रभावित हैं। और कार्यक्रम इन जिलों में स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि और जल संसाधन, वित्तीय समावेशन और जल संसाधनों में सुधार पर केंद्रित है।


गाँव के युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए 2020 में राजीव गांधी पंचायत केंद्र बिजौली में एक प्रशिक्षण और सीखने की सुविधा स्थापित की गई थी।

गाँव में पानी की समस्या से निपटने के लिए मंजरी फाउंडेशन ने बेहतर जलापूर्ति को सक्षम बनाया। हरि शंकर कुशवाहा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "बिजौली के 450 घरों को 20 किलोमीटर दूर बाड़ी से ट्रैक्टरों के जरिए लाए गए पानी पर निर्भर रहना पड़ता था।"

उन्होंने कहा, "गाँव के तालाब और कुएं की सालों से सफाई नहीं की गई थी, जिससे गाँव में इंसानों और मवेशियों दोनों के लिए समस्या पैदा हो गई थी।"

मंजरी फाउंडेशन ने ल्यूपिन ह्यूमन वेलफेयर एंड रिसर्च फाउंडेशन के साथ मिलकर बिजौली में 1.5 बीघा (1 बीघा = 0.3306 एकड़ या 40,500 वर्ग फीट) के एक तालाब का जीर्णोद्धार किया है। तालाब के पानी का इस्तेमाल अब स्थानीय निवासी और जानवर कर रहे हैं। तालाब और कुएं की सफाई और मरम्मत के कारण पानी का स्तर बढ़ गया है। गाँव के लिए पानी ढोने का काम करने वाले ट्रैक्टर अब नजर नहीं आते हैं।


साफ पानी की कमी को दूर करने के लिए कुएँ की मरम्मत की गई। जिसके बाद गाँव वालों को पीने का पानी मिलने लगा। इससे मिट्टी में पानी के स्तर में भी इजाफा हुआ। अब गांवों में पानी के लिए हैंडपंप भी लग गए हैं। पहले वे बेकार थे क्योंकि पानी का स्तर कम था और गर्मियों में उनसे पानी नहीं आता था। तालाब के पास संजीवनी वाटिका में कई तरह के फूलों और औषधीय पौधों से सजा एक हर्बल गार्डन भी बनाया गया है। पास के एक मंदिर की भी मरम्मत और जीर्णोद्धार किया गया है।

बिजौली गाँव का एकमात्र स्कूल ‘राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय’ 1964 में स्थापित किया गया था। आदर्श ग्राम कार्यक्रम और फाउंडेशन की ओर से उठाए गए कदमों की वजह से इसकी स्थिति में भी काफी सुधार आया है।

स्कूल के प्रिंसिपल राजेंद्र कुमार शर्मा ने गाँव कनेक्शन से कहा, “एक लाइब्रेरी, पहले से ज्यादा क्लासरूम और शौचालयों के साथ स्कूल की बुनियादी हालत सुधरी है। पिछले साल 10वीं और 12वीं का रिजल्ट भी काफी अच्छा रहा था। स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या भी कम हुई है।”

स्वस्थ बच्चे और महिलाएं

मंजरी फाउंडेशन और ल्यूपिन फाउंडेशन ने एचडीएफसी के साथ मिलकर बिजौली में बाल वाटिका नंदू घर नामक आदर्श आंगनवाड़ी केंद्र का भी कायाकल्प किया है। हालांकि इसे 35 साल पहले स्थापित किया गया था, लेकिन इसकी हालत में सुधार 2020 के बाद आना शुरू हुआ।

केंद्र में काम करने वाली बीरवती देवी गाँव कनेक्शन को बताती हैं, "बच्चों को पौष्टिक सब्जियां और फल उपलब्ध कराने के लिए हमने 2020 में एक किचन गार्डन तैयार किया था।" उन्होंने कहा कि केंद्र में बच्चों के पास खेलने के लिए शैक्षिक खिलौने भी हैं।


बीरवती देवी ने कहा, "गर्भवती महिलाएं और तीन साल तक के बच्चों को घर के लिए राशन दिया जाता है, जबकि तीन से छह साल तक के बच्चों को केंद्र पर ही पौष्टिक खाना मिलता है।" खाने में मीठा दलिया, मूंग दाल की खिचड़ी, सादा गेहूं का दलिया, उपमा, मीठे चावल के कुरकुरे और नमकीन चावल के कुरकुरे शामिल हैं।

आंगनवाड़ी में कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रही सुनीता देवी ने कहा, " केंद्र में 52 बच्चों का नाम पंजीकृत है। ये संख्या सबसे अधिक है। राजस्थान कि किसी भी आंगनवाड़ी में औसतन 25 बच्चों का नाम ही दर्ज हैं।"

छह साल से कम उम्र के बच्चों को खेल-खेल में प्राथमिक शिक्षा दी जाती है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि मंगलवार और शुक्रवार को 18 से 35 साल की कुपोषित महिलाओं को सहायक नर्स मिडवाइफ (एएनएम) दवाइयां और आयरन की गोलियां मुहैया कराती हैं।

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