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10 साल तक की देश सेवा, अब बांस की साइकिल बनाकर गाँव के युवाओं को दे रहे रोजगार

Bicycle

लखनऊ। जहां एक ओर रोजगार की तलाश में देश के ग्रामीण शहर का रुख करते है वहीं महाराष्ट्र का एक युवक ऐसा भी है जो गाँव में रहने वाले ग्रामीणों को रोजगार के साथ हुनर भी सिखा रहा है। हम बात कर रहे हैं आर्मी से सेवानिवृत्त शशिशेखर पाठक की। शशिशेखर से गाँव कनेक्शन की बातचीत में उन्होंने बताया कि किस तरह से उन्होंने ग्रामीणों को उन्हीं के गाँव में रोजगार दिया…

शशिशेखर ने बताया कि वो एयरफोर्स में पायलेट की पोस्ट पर काम करते थे। 10 साल देश की सेवा करने के बाद रिटायरमेंट ले लिया। रिटायरमेंट के बाद कुछ करने की चाह शुरू से ही थी। हमने पुणे के दक्षिण में कुछ जमीन खरीदी थी। उन्होंने बताया कि जहां जमीन खरीदी वो गाँव बहुत ही दुर्लभ है इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज भी उस गाँव में मोबाइल के सिग्नल ठीक से नहीं आते हैं।

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शशि ने गाँव कनेक्शन को बताया कि जब भी मैं गाँव जाता तो वहां के लोग मुझसे कहते ‘दादा कोई काम दिला दो’। उस दौरान मैं ये सोचता रहता था कि मैं उनके लिये क्या कर सकता हूं। उस गाँव में बांस की खेती होती है। तो हमने ये सोचना शुरू किया कि बांस से ऐसा हम क्या बना सकते है कि उनको रोजगार मिले। मुझे कहीं से पता चला कि विदेशों में बांस की साइकिल बनती है तो उस पर हमने काम करना शुरू कर दिया करीब दो साल लगा मुझे उसे सीखने में।

दो साल के बाद हमने एक साइकिल बनाई जिसकी लोगों ने प्रसंशा की। हमें बेहतर रिस्पांस मिला। हमारा उद्देश्य है कि हम जो बांस की साइकिल बनाएं उसकी क्वालिटी विदेशों में बन रही साइकिलों से भी अच्छी हो। उन्होंने बताया कि हालांकि सारी चीजें गांव के युवक नहीं सीख पाते है क्योंकि कुछ टैक्निकल चीजें होती हैं जो वो नहीं कर सकते है। साइकिल बनाने के लिये हमें अच्छी क्वालिटी के बांस की जरूरत होती है।

इसलिये हम गांव के लोगों से थोड़ा मंहगे दाम में बांस खरीद लेते हैं जिससे उन्हें भी खुशी मिलती है कि उनका बांस मंहगे दाम में बिका है। शशिशेखर ने बताया कि मेरी कोशिश है कि जल्द ही मैं इसी गांव में साइकिल बनाना शुरू करूं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सके। उन्होंने बताया कि इस काम की शुरूआत मैंने चार साल पहले की थी। इस बीच हमने करीब दस साइकिलें बनाई है। बांस की साइकिल का जो फ्रेम बनाया जाता है उसका वजन लगभग 2 किलोग्राम के आस-पास होता है।

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इसलिये ये आयरन की साइकिल से हल्की और ज्यादा आरामदायक होती है। शशि शेखर ने बताया कि अभी बांस की साइकिल के लिये लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है। उनका कहना है कि हमारी साइकिल की क्वालिटी आयरन साइकिल से भी ज्यादा अच्छी है। उन्होंने बताया कि अभी इसको बनाने में लागत ज्यादा आ रही है।

लेकिन हमारी कोशिश है कि जल्द ही इसकी लागत को कम कर दिया जाएगा। जब गाँव कनेक्शन ने शशिशेखर से पूछा कि अभी जो लोग आपसे जुड़े हैं उनका आय का माध्यम क्या है इस पर उन्होंने बताया कि सीजन में चावल की खेती के बाद वहां के किसान खाली हो जाते हैं तो वो मेरे साथ काम करते हैं और हम उन्हें काम के मुताबिक मेहनताना देते हैं।

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