पीरियड्स पर कल्कि - जैसे रात को अंधेरा और दिन को उजाला होता है, वैसे ही हमें ये होता है

Anusha MishraAnusha Mishra   24 Oct 2017 12:05 PM GMT

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पीरियड्स पर कल्कि  - जैसे रात को अंधेरा और दिन को उजाला होता है, वैसे ही हमें ये होता हैकल्कि कोचलिन

कल्कि कोचलिन उन चुनिंदा अभिनेत्रियों से हैं जो सामाजिक मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाती रहती हैं। इन चीजों के लिए वो अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकाल ही लेती हैं और इस बार फिर वो एक वीडियो के ज़रिए महिलाओं से जुड़े मुद्दे पर अपनी आवाज़ उठाती नज़र आ रही हैं। इस वीडियो में वो सैनिटरी नैपकिन पर लगने वाले 12 प्रतिशत टैक्स के बारे में बात कर रही हैं और उनका मानना है कि सैनिटरी नैपकिन को टैक्स फ्री होना चाहिए। इस वीडियो की टैग लाइन में जीएसटी का मतलब 'गर्ल्स को सताओ टैक्स' बताया गया है।

इस वीडियो में एक आवाज़ आती है कि लड़कियों को हमेशा से पीरियड‍्स होते हैं ये कोई बड़ा इश्यू नहीं है, सिर्फ पांच दिनों की ही तो बात है। तो दूसरी आवाज़ आती है कि ये सब लड़कियों के छुट्टी लेने के बहाने हैं बस, एक और आवाज़ में उन्हें हिदायत देते हुए कहा जाता है कि खट्टा मत खाओ, इसे छुओ भी मत। इसके बाद कल्कि कोचलिन हंसते हुए कहती हैं कि मुझे अच्छे दिन के बारे में तो नहीं पता लेकिन हमारी ज़िंदगी में पांच दिन ऐसे तो होते हैं जो अच्छे नहीं होते। इसलिए मैं धीरे बोलूं (विस्पर) या आज़ादी के साथ रहूं (स्टेफ्री) ये मैटर नहीं करता क्योंकि इनमें से कुछ भी टैक्सफ्री नहीं है।

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क्या ये हंसने वाली बात नहीं लगती कि हमारे देश में एयरपोर्ट के लुक से लेकर रिलीजियस क्रुक यानि धर्म के ठेकेदारों तक पे चर्चा होती है और जब कब्ज से लेकर पेशाब तक पर फिल्म बन सकती है तो हम कुछ समय निकाल कर इस पर चर्चा क्यों नहीं कर सकते? हां, वो पांच दिन अच्छे नहीं होते। हम बुरी स्थिति में होते हैं और ठीक से सोच तक नहीं पाते लेकिन हमें करना पड़ता है, हम सबको करना पड़ता है। ओह लेकिन ये तो सिर्फ 120 घंटों की बात है और ये परेशानी आपकी नहीं हमारी है और रुकिए... रुकिए... रुकिए, हमारी वजह से दूसरों को भी बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

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अचानक से हमारी वजह से रसोई अपवित्र हो जाती है, ऑफिस में काम रुक जाता है और सैनिटरी पैड देखकर लोगों का गला सूख जाता है। मज़बूरी नहीं है हमारी, प्रकृति है, जैसे रात को अंधेरा होता है और दिन में उजाला होता है वैसे ही हमें भी ये होता है लेकिन धन्यवाद सैनिटरी नैपकिन पर टैक्स को 13.7 प्रतिशत से भारी मात्रा में गिराकर सीधा 12 प्रतिशत कर दिया, बहुत अच्छा। और आप सोच रहे होंगे कि मैं इसके बारे में बात क्यों कर रही हूं, पागल हूं, ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे आज भी अपने पैड्स को काली पॉलीथिन में लपेटकर फेंकना पड़ता है। जब आपके साबूदाना और बैंगम कंडोम खुले आम टैक्स फ्री बिक सकते हैं तब मैं अपने स्टेफ्री के लिए अलग से 12 प्रतिशत टैक्स दे रही हूं।

वीडियो में आगे लिखकर आता है कि भारत में हर 10 में चार लड़कियों की पहुंच डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन तक नहीं होती। आज हम जीएसटी के अंदर सैनिटरी पैड्स पर 12 प्रतिशत टैक्स दे रहे हैं लेकिन सवाल है - क्यों?

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