इंदौर। कभी दूसरों के घरों में झाड़ू पोछा लगाने वाली ये महिलाएं आज इंदौर शहर में प्रोफेशनल ड्राइवर बनकर एक नया इतिहास रच रही हैं। ये महिला ड्राइवर नगर निगम की गाड़ियाँ चलाने से लेकर दूसरी महिलाओं को ड्राइविंग का प्रशिक्षण भी दे रही हैं।
“मैंने 10 साल दूसरों के घरों में जाकर खाना बनाया है, आठवीं तक पढ़ने के बाद शादी हो गयी थी। परिवार का खर्चा चलाने के लिए कुछ न कुछ काम करना था। इतनी कम पढ़ाई में दूसरों के घर में झाडू-पोंछा और खाना बनाने का ही काम मिल सकता था, इसलिए यही काम शुरू करके अपने घर का खर्चा चलाने लगी थी।” ये कहना है सावित्री विश्वकर्मा (40 वर्ष) का। ये इंदौर में राजेन्द्र नगर की रहने वाली हैं। वो आगे बताती हैं, “मुझे लगता था दूसरों के घर में खाना बनाकर ही मेरी जिन्दगी गुजरेगी। लेकिन जब मुझे ड्राइविंग सीखने का मौका मिला तो मैं बहुत खुश हुई। हमारे अच्छे काम को देखकर नगर निगम में हमें गाड़ी चलाने का मौका मिल गया।” सावित्री इंदौर की पहली महिला प्रोफेशनल ड्राइवर नहीं हैं बल्कि इनकी तरह 25 महिलाएं कुशल ड्राईवर के साथ-साथ कुशल प्रशिक्षक भी हैं।
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इंदौर की 65 गरीब बस्तियों की लड़कियों और महिलाओं को एक गैर सरकारी संस्था ‘समान’ वर्ष 2010 से ड्राइविंग की ट्रेंनिंग दे रही है। यहाँ ड्राइविंग सीख रही 80 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा से पीड़ित हैं। समाज के कमजोर और वंचित तबके की 25 युवतियां आज इंदौर की सड़कों पर फर्राटे भर रही हैं। संस्था के डायरेक्टर राजेंद्र बन्धु का कहना है, “हमारी सोच थी कि इन लड़कियों को रोजगार की एक ऐसी मुहिम से जोड़ा जाए, जहाँ ये कुछ अलग काम कर सकें, जिससे इनकी एक खास छवि बन पाए।” वो आगे बताते हैं, “आजाद फाउंडेशन और समान संस्था द्वारा प्रशिक्षित इन युवतियों को ड्राइवर के रूप में प्लेसमेंट का अभियान हम निरंतर चलाते रहते हैं, अब महिलाओं को कहीं जाना होता है तो वो इन महिला ड्राइवर को कॉल करके बुलाती हैं, अगर किसी महिला को ड्राइविंग सीखनी होती है तो भी इन्हीं महिला ड्राइवर से गाड़ी सीखना सहज मानती हैं।”
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समान संस्था ने अप्रैल 2015 में ‘वुमेन ऑन व्हील्स’ नाम से महिलाओं को प्रोफेशनल ड्राइवर बनाने के प्रशिक्षण की शुरुआत की थी। यहाँ अभी तक 100 लड़कियां प्रोफेशनल ड्राइवर बन गयी हैं। जिसमें से 25 महिलाएं गाड़ी चलाना शुरू कर चुकी हैं। ये महिलाएं सिर्फ कुशल ड्राइवर ही नहीं हैं बल्कि अपनी खराब हुई गाड़ी की छोटी-मोटी रिपेयरिंग खुद ही कर लेती हैं।
रमाबाई नगर में रहने वाली मनीशा चौहान (20 वर्ष) अपना गाड़ी सीखने को लेकर अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “घर का खर्चा चलाने के लिए दूसरे के घरों में बर्तन मांजना हमारी मजबूरी है। पर ये काम करना मुझे अच्छा नहीं लगता है, जब मुझे महिला ड्राईवर की इस ट्रेनिंग के बारे में पता चला तो मैं ड्राइविंग सीखने लगी, पिछले आठ महीने से सीख रही हूँ, उम्मीद है जल्दी ही हमारा बर्तन मांजने वाला काम खत्म हो जाएगा और हम ड्राईवर बन जायेंगे।”
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फोन पर ये महिला ड्राइवर जाती हैं गाड़ी सिखाने
इंदौर शहर में अब किसी महिला को गाड़ी सीखने के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता है। अब किसी भी महिला को अगर ड्राइविंग सीखनी होती है तो समान संस्था में काल करके इन महिला ड्राइवरों को बुला लेते हैं।
महिलाओं को ड्राइविंग सिखाने जाने वाली रंजीता लोधी (35वर्ष) का कहना है, “रोज एक घंटे सिखाने जाते हैं, 3500 रुपए महीने मिल जाते हैं। पहले जब मजदूरी करने जाते थे तो आठ से दस घंटे काम करते थे तब कहीं जाकर इतने पैसे मिलते थे, अगर एक छुट्टी ले ली तो उसके भी पैसे काट लिए जाते थे। इस नौकरी में पैसा भी है और एक अलग किस्म का काम है जिससे हमें सम्मान भी मिलता है।” रंजीता पिछले तीन वर्षों से इस प्रोफेशन से जुड़ी हुई हैं।