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थाई अमरूद की खेती प्रोग्रेसिव किसान दिनेश बग्गड़ के लिए बनी फायदे का सौदा, प्रति एकड़ इतनी है कमाई

10 साल पहले तक सब्जियों की खेती करने वाले किसान दिनेश बग्गड़ का सब्जियों की खेती में खर्चा ज्यादा और मुनाफा कम होता जा रहा था। इसलिए उन्होंने थाई अमरुद की खेती शुरु की। वैज्ञानिक विधियों से की जा रही खेती में उन्हें अच्छा मुनाफा भी हो रहा है।
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धार (मध्य प्रदेश)। बीते कुछ सालों से परंपरागत खेती को छोड़कर किसानों का रूझान बागवानी की तरफ तेजी से बढ़ा है। बागवानी वाली फसलों की अपनी चुनौतियां और खर्च हैं लेकिन लेकिन वैज्ञानिक सुझावों के साथ बागवानी की जाए तो किसानों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है। बागवानी में आने वाली चुनौतियों को सामना करते मध्य प्रदेश के प्रगतिशील किसान दिनेश बग्गड़ थाई अमरुद का सफल उत्पादन कर रहे हैं।

दिनेश बग्गड़ धार जिले की सरदारपुर तहसील के साजोद गांव में रहते हैं। 10 साल पहले उन्होंने बागवानी की शुरुआत की और आज उनकी बागों के अमरुद विदेश तक जा रहे हैं।

परंपरागत तरीके से सब्जियों की खेती में हो रहा था घाटा

गांव कनेक्शन से बात करते हुए दिनेश बग्गड़ ने बताते हैं, ”थाई अमरूद की बागवानी से पहले मैं परंपरागत तरीके से सब्जियों की खेती करता था लेकिन खेती की बढ़ती लागत के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ रहा था। ऐसे में धार स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र से संपर्क किया। वैज्ञानिकों से उच्च उद्यानिकी तकनीकों को समझने के बाद रायपुर से थाई अमरूद के पौधे मंगाकर बगीचा लगाया।”

बग्गड़ ने लगभग दो हेक्टेयर जमीन है और लगभग पूरे खेत में उन्होंने थाई अमरूद का बगीचा लगा रखा है। इसमें से 1.2 हेक्टेयर से उत्पादन प्राप्त हो रहा है। वहीं बाकी बगीचे में एक साल बाद फल आने लगेंगे।

43 वर्ष के दिनेश बग्गड खेतों में इंटर क्रॉपिंग करते हैं। अमरुद की बाग में वो अदरक और धनिया भी उगाते हैं तो रबी के सीजन में प्याज और लहसुन की खेती करते हैं।

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दिनेश बग्गड की बाग में अमरुद की पैकिंग पर खास ध्यान दिया जाता है।

देश में बढ़ रही फलों की खेती

कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक देश में फसलों का उत्पादन वर्ष 2019-20 में पैदा हुए 102.08 मिलियन टन की तुलना में साल 2020-21 में 102.76 मिलियन टन होने का अनुमान है। बागवानी फसलों को लेकर पिछले दिनों केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि सरकार की किसान हितैषी नीतियों, किसानों के अथक परिश्रम व वैज्ञानिकों के शोध के फलस्वरूप वर्ष 2020-21 में बागवानी उत्पादन 329.86 मिलियन टन (अब तक का सबसे अधिक) होने का अनुमान है, जिसमें 2019-20 की तुलना में करीब 9.39 मिलियन टन (2.93%) की वृद्धि अनुमानित है। मध्य प्रदेश में करीब 398.62 हजार एकड़ में फलों की खेती हो रही है।

अगर सिर्फ अमरुद की खेती की बात करें तो साल 2018-19 में पूरे देश में 276 हजार हेक्टेयर अमरुद की खेती हुई थी, जिससे 4257 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था, वहीं 2020-21 के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक देशभर में 304 हजार हेक्टेयर में अमरुद की खेती हुई। जिसमें से 4433 हजार मीट्रिक टन उत्पादन अनुमानित है।

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760 ग्राम का अमरुद

थाई अमरूद की बीएनआर किस्म

वे बताते हैं, ” थाई अमरूद की बीएनआर-1 किस्म का फल आकार में बढ़ा, चमकदार होता जिसकी न्यूट्रीएंट वैल्यू (पोषण गुणवत्ता) अच्छी होती है। पौधे लगाने के 18 महीनों बाद ही फल आने लग जाते हैं। यदि बगीचे का सही तरीके से रखरखाव किया जाए तो लगभग 20-25 सालों तक फल लिए जा सकते हैं।”

बग्गड़ के मुताबिक नींबू समेत दूसरे बागवानी पौधों की तुलना में इसके पौधे भी अधिक लगते हैं और उत्पादन भी ज्यादा होता है। एक एकड़ में तकरीबन 800 पौधे लगते हैं। एक बार बगीचा तैयार होने के बाद सब्जियों या अन्य फसलों की तुलना में लागत कम आती है।’

40 किलो तक उत्पादन

बग्गड़ बताते हैं कि अमरुद की इस किस्म से परिपक्व अवस्था (पेड़ पूरी तरह तैयार) होने पर हर पेड़ से करीब 40 किलो तक उत्पादन लिया जा सकता है।

वो कहते हैं, “एक पेड़ से 40 किलो अमरुद तो मिल ही सकते हैं साथ ही फल तुड़ाई के 20 दिनों बाद तक खराब नहीं होता है। इसलिए इसे मंडियों तक ले जाना आसान हो जाता है। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, कोच्ची, बैंगलुरू, इंदौर जैसे शहरों के साथ साथ यूके तक फसल बेचते हूं।”

फल-सब्जियों का बड़ा भाग हर साल खेत से मंडी पहुंचने तक खराब हो जाता है। फल के अच्छे दाम मिलें और वो खराब भी न हो इसलिए बेहतर रखरखाव जरुरी है। बागड़ तुड़ाई के बाद फलों की प्रॉपर पैकेजिंग की जाती है।

वो बताते हैं, “20 किलो ग्राम के बॉक्स तैयार किए जाते हैं। फलों का अच्छा दाम मिले इसके लिए जब डेढ़ महीने का फल हो जाता है तब ”थ्री लेयर” बैगिंग की जाती है। पहले फल को फ्रूट लेयर, फिर पॉलीथिन और अंत में पेपर से ढंका जाता है। इससे धूप, पक्षियों आदि से होने वाला 15 फीसदी नुकसान बच जाता है। वहीं फल तुड़ाई के बाद चमकदार और एक जैसा मिलता है।”

मुनाफे का पूरा गणित समझे

खेती जोखिम भरा काम है लेकिन अगर वैज्ञानिक पद्धितियों और सुझावों के साथ अमरुद की खेती की जाए तो किसानों को इससे अच्छा मुनाफा मिल सकता हैं। दिनेश बताते हैं ” शुरुआत में बगीचा लगाने में प्रति एकड़ डेढ़ से दो लाख रुपये का खर्च आता है। इसके बाद हर साल 15-20 रुपये प्रति किलो की लागत पड़ती है। हर साल लगभग 65 टन का उत्पादन लेते हैं। थोक भाव में 50 से 100 रुपये किलो तक फल बिकता है। इस तरह 30 से 45 लाख रुपये की कुल फसल बिक जाती है। यदि 20 फीसदी लागत कम कर दी जाती है तो 1.2 हेक्टेयर से सालाना 25 से 30 लाख का शुद्ध मुनाफा हो जाता है।” (नोट- फल-सब्जियों की बिक्री, लागत, मुनाफा हर किसान के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है। जो जमीन, जलवायु,मार्केट और सूझबूझ पर निर्भर करता है)

थाई अमरूद की तोड़ाई अक्टूबर माह से फलों की तुड़ाई शुरू हो जाती है, जो फरवरी-मार्च तक चलती है। बग्गड़ रासायनिक खाद एवं उर्वरकों का उपयोग न के बराबर करते हैं। अधिक उत्पादन के लिए वर्मी कम्पोस्ट और गोबर खाद का उपयोग करते हैं।

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प्रगतिशील बागवान दिनेश बग्गड

थाई अमरूद की खासियतें

विटामिन सी, फाइबर और फोलिक एसिड से जैसे तत्वों से भरपूर थाई अमरूद औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसका सेवन डायबिटीज मरीजों के लिए अच्छा माना जाता है। वहीं, अमरूद की देशी और अन्य किस्मों की तुलना में यह जल्दी फल देने लगता है। यदि सही रखरखाव किया जाए तो इसमें 18 महीनों में ही फल आने लग जाते हैं।

बागवानी में अच्छी संभावनाएं

खेती में नवाचार के लिए बग्गड़ को धार स्थित कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। केवीके धार के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जीएस गाठिए के मुताबिक उनका संस्थान जिले के किसानों को उच्च तकनीक उद्यानिकी के साथ-साथ बीज उपचार, पौध प्रबंधन, पोषक तत्व प्रबंधन,  खरपतवार प्रबंधन एवं जल संरक्षण की वैज्ञानिक तकनीकों से समय समय देता रहता है, जिससे किसानों का फायदा मिला है। बागड़ की बागवानी से देखकर कई दूसरे किसान भी प्रेरित हो रहे हैं।

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