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ये नानाजी देशमुख की पहल थी, ग्रामीणों की जिंदगी संवार रहे समाज शिल्पी दंपति

खेती

मझगवां (सतना)। जहां एक ओर बुंदेलखंड में लोग गाँवों को छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहें हैं तो वहीं पर कुछ दम्पति गाँवों में ही रहकर ग्रामीणों को खेती, शिक्षा, साफ-सफाई के लिए जागरूक करते हैं।

सतना से लगभग 40 किमी दूर मझगवां विकासखंड के भरगवां गाँव में ऐसे ही एक समाजशिल्पी दम्पति वीरेन्द्र चर्तुवेदी (39) और छाया चर्तुवेदी (33) पिछले कई वर्षों से ग्रामीणों को जिंदगी में नया बदलाव ला रहें हैं। जहां पहले गाँव में लोग अपनी लड़कियों को पढ़ने नहीं भेजते थे अब गाँव की ज्यादातर लड़किया स्कूल जाती हैं।

समाजशिल्पी दम्पति को बतौर प्रशिक्षण देने के बाद गाँवों में भेजा जाता है। जहां एक ओर वीरेन्द्र गाँव में पुरुषों को खेती-बाड़ी से सम्बन्धित जानकारी देते हैं वहीं छाया गाँव की महिलाओं को तमाम समस्याओं का समाधान करती हैं।

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इलाहाबाद शहर के दारागंज मोहल्ले के रहने वाले वीरेन्द्र और उनकी पत्नी छाया बुंदेलखंड के कई गाँवों में रह चुके हैं। वीरेन्द्र बताते हैं, ”कुछ साल पहले हम परिवार के साथ चित्रकूट धाम घूमने आए थे, यहां पर हमें समाजशिल्पी दम्पति योजना के बारे में पता चला तो हमने भी सोचा कि हम भी समाज सेवा कर सकते हैं।”

छाया चर्तुवेदी बताती हैं, ”आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण गाँव की महिलाएं उतनी जागरूक नहीं होती और अपना और अपने परिवार का ध्यान नहीं रख पाती थी अब अपने साथ अपने परिवार का भी अच्छे से ख्याल रखती हैं।”

वीरेन्द्र और छाया गाँव के बच्चों को स्कूल के बाद नि:शुल्क ट्यूशन भी पढ़ाते हैं। पहले जहां गाँव में लोग आपस में भेदभाव रखते थे अब महिलाएं और पुरुष एक दिन गाँव के चौपाल पर इकट्ठा होकर अपनी समस्याओं को सबके सामने रखते हैं।

भरगवां गाँव की विमला सिंह (35) समाजशिल्पी दम्पति के गाँव में होने से काफी खुश हैं। विमला सिंह बताती हैं, ”दीदी जी हमें समय-समय पर जानकारी देती रहती हैं जैसे अब बरसात हो रही है दीदी हमें साफ-सफाई के बारे में बताती हैं साथ ही पढ़ाई-लिखाई के बारे में बताती हैं।”

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गाँव में समय-समय पर मझगवां कृषि विज्ञान केन्द्र से वैज्ञानिक भी आते हैं। केन्द्र के प्रसार वैज्ञानिक सन्त कुमार त्रिपाठी बताते हैं, ”खेती से सम्बधित समस्याओं का समाधान समाजशिल्पी दम्पति नहीं कर पाते उसके लिए हमको बुलाते हैं, हम किसानों की समस्याओं को सुनकर उनका समाधान बताते हैं।”

समाजशिल्पी दम्पति योजना की शुरुआत साल 1994 में दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा की गई थी। दीनदयाल शोध संस्थान की निदेशक नंदिता पाठक समाजशिल्पी दम्पति योजना के बारे में बताती हैं, ”अभी वर्तमान में 27 दम्पति विभिन्न गाँवों में कार्यरत हैं और एक दम्पति एक गाँव में पांच साल तक रहता है जिससे अब तक 100 से ज्यादा दम्पति हमसे जुड़ चुके हैं। अभी तक 500 से भी ज्यादा गाँवों को उनसे लाभ मिल चुका है।” नंदिता पाठक आगे बताती हैं, ”साल 2020 तक हमारा लक्ष्य तक लगभग 2000 गाँवों में समाजशिल्पी को कार्यरत करना है।

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