स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
अशोकनगर (मध्यप्रदेश)। आदिवासियों को प्रतिदिन पहाड़ के ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरना पड़ता था। इस रास्ते पर अकसर हादसे होते रहते थे। बरसात के दिनों में समस्या और ज्यादा बढ़ जाती थी। इस समस्या की ओर सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया। आदिवासियों ने दशरथ मांझी की तर्ज पर एकजुट होकर आधे किमी रास्ते का पत्थर हटाकर उसे आने-जाने लायक रास्ता बना दिया। ग्रामीण अपने ही किये प्रयास से बहुत खुश हैं कि अकसर होने वाले हादसे टल गये।
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मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के चंदेरी ब्लॉक के निदानपुर गाँव में 200 से ज्यादा आदिवासी परिवार रहते हैं। इस गाँव के आसपास दूर-दूर तक पहाड़ ही दिखाई देते हैं, एक बस्ती से दूसरी बस्ती के बीच की दूरी कई किलोमीटर दूर होती है। इस गाँव में रहने वाली हल्कीबाई (35 वर्ष) पहाड़ पर बनाये रास्ते की तरफ इशारा करते हुए बताती हैं, “जब ये रास्ता नहीं बना था तो इस पर चढ़कर लकड़ी लाना बहुत मुश्किल था, कोई न कोई लकड़ी या पत्तों का ढेर लेकर गिर ही जाता था किसी के पैर में चोट लगती तो किसी के कमर में, इस सुनसान बस्ती में सरकार की कभी नजर पड़ेगी हमे इसकी उम्मीद नहीं थी, हम सबने मिलकर एक हफ्ते लगकर रास्ता बना लिया।”
उन्होंने आगे कहा, “पहाड़ पर बड़े-बड़े पत्थर थे, रास्ता बनाना बहुत कठिन था पर जब सबने मिलकर ठानी कि रोज-रोज गिरने से अच्छा कि रास्ता बना ही लिया जाए तो सबने मिलकर मुश्किल काम को मिलकर मात दे दी, आज अच्छा-खासा रास्ता बन गया है, जब रास्ता बन गया है तो हमें प्रधान जी ने आवासीय आवास भी दे दिए।” हल्कीबाई की तरह यहां की सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों ने मिलकर पहाड़ के पत्थरों को तोड़कर खुद ही रास्ता बना लिया।
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फुलागाबाई अपने पैर की चोट को दिखाते हुए कहा, “एक बार लकड़ी लेने गए तो इसी रास्ते पर गिर गये थे, महीने भर उठ नही पायी थी, ऊबड़-खाबड़ रास्ते में चलना बहुत मुश्किल था, हर दिन कोई न कोई चोट खाकर गिर ही जाता था, रास्ता बनाने की अकेले किसी में हिम्मत नहीं थी पर जब सबने मिलकर ये काम किया तो कुछ ही दिनों में रास्ता बनकर तैयार हो गया, अब हमारी परेशानियां खत्म हो गयी हैं।”
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दिल्ली में स्थित गूंज संस्था कई स्टेट में ‘क्लॉथ फॉर वर्क’ योजना के तहत काम करती है। बुंदेलखंड और मध्यप्रदेश उनमें से एक है, ये संस्था ऐसे गाँव में काम करती हैं जो सरकार की पहुंच से कोसों दूर रहते हैं, जहां विकास के नाम पर कोई काम नहीं होता। लोग श्रमदान करके खुद अपने लिए विकास के काम करें उसके बदले संस्था उनके पूरे परिवार के लिए कपड़े देती है।
गूँज संस्था के सदस्य चिरंजीत गाएन आदिवासियों द्वारा बनाये गये इस रास्ते को देखकर मुस्कुराते हुए कहा, “हमे भी यकीन नहीं था कि आदिवासी ये रास्ता बना लेंगे पर इन्होने मिलकर असंभव को संभव कर दिखाया। संस्था ने बस्ती के सभी परिवार को ‘क्लॉथ फॉर वर्क’ योजना के तहत कपड़े दिए, जिससे ये बहुत खुश हुए।”
वो बताते हैं, “एक दिन इस गाँव से गुजर रहे थे, कई किलोमीटर आसपास कोई दूसरी बस्ती दिखाई नहीं दे रही थी, जब यहां के लोगों से मिले तो सबसे बड़ी परेशानी इन्होने रास्ते की बताई, सरकार इनके लिए रास्ता बनायेगी ये तो हम भी वादा नहीं कर सकते थे।” चिरंजीत नेकहा, “मुझे पता था ये रास्ता बनाना इतना आसान काम नहीं था, पर जब लोगों से बात की तो उन्होंने कहा हम सब मिलकर ये काम कर सकते हैं, हमने कहा ये सम्भव ही नहीं है ये रास्ता आपलोग नहीं बना सकते, इन्होने हमारे चैलेन्ज को स्वीकार किया, 156 लोगों ने मिलकर आठ दिन में मोटे-मोटे बड़े-बड़े पत्थर तोड़कर आखिरकार पहाड़ पर रास्ता बना ही लिया, अब तो इस रास्ते से ट्रैक्टर भी चले जाते हैं।”
इस बस्ती के निवासी कालिया(45वर्ष) ने कहा, “रास्ता बनाने से हमारे ही लोगों को फायदा हुआ है, पर पहली बार कोई ऐसी संस्था आयी है जिसने हमे हमारे ही काम के बदले हमारे पूरे परिवार को कपड़े दिए, अगर ऐसे ही हमारा कोई हौसला बढाता रहे तो हम सरकार की कभी राह न देखे और अपने लिए सारे इंतजाम खुद ही कर लें।” उन्होंने कहा, “अब इस रास्ते से हमारे छोटे-छोटे बच्चे भी आसानी से ऊपर पहुंच जाते हैं, जिस पहाड़ से निकलने पर आये दिन हादसे होते थे आज वो हादसे रुक गये, हमारी जरा सी मेहनत से हमारी समस्या का समाधान हो गया।”