राजस्थान के नागौर ज़िले के एक छोटे से गाँव की रहने वाली छल्ली बाई कभी अपने गाँव से भी बाहर नहीं निकली थीं, आज दिल्ली, जयपुर जैसे बड़े शहरों में अपने उत्पादों को ले जा रहीं हैं।
छल्ली देवी के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं था, तीन साल पहले जब स्वयं सहायता समूह की शुरूआत की तो सभी ने कहा कि कुछ नहीं होने वाला, ये सभी ऐसे ही आती-जाती रहती हैं। सबसे पहले उन्होंने समूह में दूसरी महिलाओं को जोड़ना शुरू किया। यहां की गाँव की महिलाएं केर सांगरी, कुगई, लेसवा, जीरा खट्टा पापड़, सूखी कांचरी, ग्वार फली, कसूरी मेथी जैसी ग्रामीण उत्पाद बनाती, लेकिन बाजार न उपलब्ध हो पाने के कारण गाँव तक ही सीमित थीं।
साल 2014 में छल्ली देवी पाबूजी महाराज स्वयं सहायता समूह की शुरूआत की, शुरू में कोई भी नहीं जुड़ना चाहता था, लेकिन धीरे-धीरे 12 महिलाएं उनके समूह से जुड़ गईं। छल्ली देवी बताती हैं, “हमारे समूह में 12 महिलाएं हैं, सब का अलग-अलग काम बंटा हुआ है, कोई केर का काम करती है, कोई जीरा का काम करती है, कोई काचरी छांटने का काम करती है, इससे सभी काम आसानी से हो जाता है।”
स्वयं सहायता समूह बनाने से उन्हें सरकारी मदद मिलने में आसानी हो जाती है, इस बारे में वो बताती हैं, “समूह से बनने से हमें बहुत फायदा हो जाता है, लोन आसानी से मिल जाता है, इसमें सभी महिलाओं को एक-एक लाख का लोन मिल गया, जिससे हमारा काम बढ़ाने में आसानी हो गई।”
कसूरी मेथी, काचरी, जीरा जैसे उत्पादों की खेती ये महिलाएं पूूरी तरह से जैविक तरीके से ही करती हैं, अगर दूसरे किसानों से भी ये उत्पाद खरीदती हैं, तो वो जैविक ही रहती है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से मिली मदद
छल्ली देवी बताती हैं, “ये सब हम पहले अपने घरों में ही प्रयोग करते थे, लेकिन अब अजीविका मिशन की मदद से हम कई शहरों तक अपने गाँव का सामान ले जाते हैं।” ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए राष्ट्रीय आजीविका मिशन मददगार साबित हो रही है। इस योजना के माध्यम ये समूह की महिलाओं को ऋण मिलने में परेशानी नहीं होती है और महिलाओं को अपने उत्पाद बनाने के लिए बेहतर प्लेटफार्म भी मिल रहा है।
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