आप अगर सिगरेट,शराब जैसी बुरी लत से दूर हैं और सोच रहे हैं सिर्फ इससे आपकी सेहत हमेशा फिट रहेगी तो गलत हैं। कई देशों में हवा में घुलता ज़हर (वायु प्रदूषण) इंसान के एक से छह साल से अधिक तक का जीवन खत्म कर रहा है।
अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) की तरफ से किए गए अध्ययन में
कहा गया है कि पार्टिकुलेट एयर पोल्यूशन (छोटे कणों से होने वाला वायु प्रदूषण) इंसान के स्वास्थ्य के लिए दुनिया का सबसे बड़ा बाहरी ख़तरा बना हुआ है।
रिपोर्ट में लिखा है “पार्टिकुलेट पोल्यूशन से जीवन पर इसका दुष्प्रभाव सिगरेट से होने वाले नुकसान के बराबर है। साथ ही यह नुकसान शराब और असुरक्षित पानी के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान से 3 गुना से अधिक और कार दुर्घटनाओं से होने वाले नुकसान से 5 गुना से अधिक है।
वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) ने पाया कि ज़हरीली हवा से जीवन प्रत्याशा दुनिया भर में एचआईवी/एड्स से छह गुना ज़्यादा और आतंकी घटनाओं से 89 गुना अधिक घटती है।
NEW: Our 2023 #AQLIReport finds #AirPollution (PM2.5) is reducing the average person’s life expectancy by 2.3 years—or a combined 17.8 billion life-years lost worldwide. Learn more:
— Air Quality Life Index (AQLI) (@UChiAir) August 29, 2023
मौजूदा समय में वायु प्रदूषण से सबसे ज़्यादा प्रभावित कई देशों के पास ऐसे बुनियादी उपकरणों का अभाव है जिनसे वायु गुणवत्ता में सुधार हो सके।
रिपोर्ट के मुताबिक जैसे-जैसे 2021 में वैश्विक प्रदूषण बढ़ा, वैसे-वैसे इंसान के स्वास्थ्य पर इसका बोझ भी बढ़ा। नए एक्यूएलआई आंकड़ों के अनुसार अगर वैश्विक पार्टिकुलेट पोल्यूशन (पीएम2.5) को स्थायी रूप से कम कर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देश के अनुसार कर लिया जाता, तो इससे औसत व्यक्ति के जीवन में दी से तीन साल की बढ़ोत्तरी हो सकती है।
ईपीआईसी के प्रोफेसर माइकल ग्रीनस्टोन कहते हैं, “वैश्विक जीवन प्रत्याशा पर वायु प्रदूषण का तीन-चौथाई प्रभाव केवल छह देशों, बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, चीन, नाइजीरिया और इंडोनेशिया से संबंधित है। यहाँ के लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण एक से छह साल से अधिक तक का जीवन खो देते हैं। पिछले पांच वर्षों से, वायु गुणवत्ता और इसके स्वास्थ्य परिणामों पर एक्यूएलआई की स्थानीय जानकारी को मीडिया में पर्याप्त जगह मिली है और राजनीतिक क्षेत्र में भी इस पर व्यापक चर्चा हुई है। लेकिन इन वार्षिक सूचनाओं को दैनिक और स्थानीय स्तर पर प्राप्त होने वाले आंकड़ों से समृद्ध करने की ज़रूरत है।”
एशिया और अफ्रीका का हाल ज़्यादा बुरा है। प्रदूषण के कारण जीवन के वर्षों में होने वाली कुल क्षति के 92.7 प्रतिशत के लिए ये दोनों महादेश जिम्मेदार हैं। इसके बावजूद यहाँ सिर्फ 6.8 और 3.7 फीसदी सरकारें ही पूरी तरह से पारदर्शी वायु गुणवत्ता आंकड़े प्रदान करती हैं। एशिया और अफ्रीका के केवल 35.6 और 4.9 प्रतिशत देशों में ही वायु गुणवत्ता मानक हैं। ऐसा तब है जबकि पारदर्शी आंकड़े और गुणवत्ता मानक ये दोनों ही नीति आधारित कार्रवाई के लिए सबसे जरुरी है।
दुनिया भर में वायु प्रदूषण कम करने की चुनौती कठिन दिखाई दे रही है, लेकिन चीन को इसमें कुछ सफलता मिली है। इसने “प्रदूषण के खिलाफ युद्ध” शुरू होने से एक साल पहले यानी 2013 के बाद से प्रदूषण में 42.3 प्रतिशत की कमी की है। इन सुधारों के कारण, अगर प्रदूषण में कमी जारी रहती है तो औसत चीनी नागरिक 2.2 वर्ष अधिक जीने की उम्मीद कर सकते हैं। हालाँकि, चीन में प्रदूषण अभी भी डब्ल्यूएचओ दिशानिर्देश से छह गुना अधिक है, जिससे जीवन प्रत्याशा 2.5 वर्ष घट गई है।
दक्षिण एशिया की तरह, लगभग पूरे दक्षिण पूर्व एशिया (99.9 प्रतिशत) को अब प्रदूषण के असुरक्षित स्तर वाला क्षेत्र माना जाता है, जहाँ कुछ क्षेत्रों में एक ही वर्ष में प्रदूषण 25 प्रतिशत तक बढ़ गया।