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भारत ने पशुओं के लिए विकसित की पहली कोविड-19 वैक्सीन, जानिए किन जानवरों के लिए जरूरी है एनोकोवैक्स वैक्सीन

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई) ने पशुओं के लिए कोविड-19 वैक्सीन और कई तरह की जांच किट विकसित की हैं, 9 जून को केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने इन्हें जारी किया।
Covid-19

कोविड-19 संक्रमण ने दुनिया भर में लोगों को प्रभावित किया, इंसानों के संक्रमण के साथ ही पशुओं में कोविड संक्रमण के कई मामले पाए गए। इंसानों को कोविड से बचाने के लिए कई वैक्सीन विकसित हो गईं हैं, अब जल्द ही पशुओं को भी कोविड वैक्सीन दी जा सकेगी।

आईसीएआर-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई), हिसार, हरियाणा के वैज्ञानिकों ने पशुओं के लिए भी कोविड वैक्सीन विकसित की है, जिसका नाम एन्कोवैक्स रखा गया है। एन्कोवैक्स पशुओं के लिए एक निष्क्रिय सार्स-कोव-2 डेल्टा (कोविड-19) टीका है vkS एन्कोवैक्स से मिलने वाली प्रतिरक्षा सार्स-कोव-2 के डेल्टा और ओमिक्रोन दोनों स्वरूपों को बेअसर करती है। इस टीके में निष्क्रिय सार्स-कोव-2 (डेल्टा) एंटीजन है जिसमें अलहाइड्रोजेल एक सहायक के रूप में शामिल है। यह कुत्तों, शेरों, तेंदुओं, चूहों और खरगोशों के लिए सुरक्षित है।

रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (CDS) के अनुसार दुनिया भर में SARS-CoV-2 से संक्रमित जानवरों की रिपोर्ट दर्ज की गई है। इनमें से अधिकांश जानवर COVID-19 संक्रमित लोगों के संपर्क में आने के बाद संक्रमित हो गए, जिनमें मालिक, देखभाल करने वाले या अन्य जो निकट संपर्क में थे।

 इस टीके में निष्क्रिय सार्स-कोव-2 (डेल्टा) एंटीजन है जिसमें अलहाइड्रोजेल एक सहायक के रूप में शामिल है। यह कुत्तों, शेरों, तेंदुओं, चूहों और खरगोशों के लिए सुरक्षित है। फोटो: पिक्साबे

 इस टीके में निष्क्रिय सार्स-कोव-2 (डेल्टा) एंटीजन है जिसमें अलहाइड्रोजेल एक सहायक के रूप में शामिल है। यह कुत्तों, शेरों, तेंदुओं, चूहों और खरगोशों के लिए सुरक्षित है। फोटो: पिक्साबे

एन्कोवैक्स वैक्सीन विकसित करने वाले आईसीएआर-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसी) के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. नवीन कुमार बताते हैं, “कोविड के पहली लहर में बिल्ली जैसे कई जानवरों में कोविड संक्रमण के मामले सामने आए थे, तब हमें लगा था कि जिस तरह से यह इंसानों को संक्रमित कर रहा है तो पशुओं को भी संक्रमित करेगा ही, तभी से हम ऐसी वैक्सीन विकसित करना चाहते थे।”

वो आगे बताते हैं, “लेकिन कोविड वैक्सीन विकसित करने के लिए लंबी प्रकिया से गुजरना पड़ता है, हमें कई जगह से इसकी परमिशन लेनी पड़ती है। करीब 8-10 जगह से परमिशन लेते-लेते कोविड की दूसरी लहर आ गई, दूसरी लहर में कोविड के संक्रमण से कई शेरों की मौत भी हो गई। फिर हमने डेल्टा वैरिएंट्स के खिलाफ ही ये वैक्सीन बनाई है।”

कोई भी वैक्सीन बनाने के बाद उसकी टेस्टिंग जरूरी होती है, एन्कोवैक्स वैक्सीन के साथ भी ऐसा हुआ है। डॉ कुमार कहते हैं, “हमने वैक्सीन बनाने के बाद इसकी टेस्टिंग करनी होती है। हमने चूहे, खरगोश, कुत्ते जैसे जानवरों पर इसकी टेस्टिंग की है। वैक्सीन की तकनीक तो हमने रेडी कर दी है और हजार-डेढ़ हजार वैक्सीन हम बना भी सकते हैं, लेकिन बड़ी मात्रा में वैक्सीन बनाने के लिए

रूस और अमेरिका ने भी विकसित की है वैक्सीन

भारत से पहले रूस और अमेरिका ने भी पशुओं के लिए वैक्सीन विकसित हैं। रूस ने CARNIVAC COV नाम से वैक्सीन विकसित की है।

किन जानवरों में फैलता है कोविड

विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE) डेटाबेस के अनुसार, पालतू पशुओं (कुत्ते, बिल्ली और फेर्रेट), चिड़ियाघर के जानवरों (बाघ, शेर, हिम तेंदुआ, प्यूमा, ऊदबिलाव, गोरिल्ला) में प्राकृतिक SARS-CoV-2 संक्रमण की सूचना मिली है। पालतू और चिड़ियाघर के जंगली जानवरों में SARS-CoV-2 संक्रमण की बढ़ती रिपोर्ट को वायरस के मानव-से-पशु संचरण से जोड़ा जा सकता है।

डॉ नवीन बताते हैं, “कोविड संक्रमण गाय-भैंस व भेड़ बकरियों जैसे पशुओं में नहीं होता है। ये कुछ बिल्ली कुत्ते जैसे पालतू पशुओं के साथ ही कुछ जंगली जानवरों में होता है।”

कोविड एंटीबॉडी पता करने के लिए जांच किट

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने एक किट भी विकसित की गई है। जैसे कि कुत्तों को वैक्सीन लगाई और पता लगाना है कि कितने में एंटीबॉडी जनरेट हुई है या नहीं उसका पता लगाया जा सकेगा।

यह सीएएन-सीओवी-2 एलिसा किट है। यह कैनाइन में सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए एक संवेदनशील और विशिष्ट न्यूक्लियोकैप्सिड प्रोटीन आधारित अप्रत्यक्ष एलिसा किट है। एंटीजन की तैयारी के लिए प्रयोगशाला में पशुओं की आवश्यकता नहीं होती है। किट भारत में बनी है और इसके लिए एक पेटेंट दायर किया गया है। कैनाइन में एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए फिलहाल कोई दूसरी किट बाजार में उपलब्ध नहीं है।

घोड़ों की नस्ल पता लगाने के लिए भी विकसित हुई है किट

वैज्ञानिकों ने इक्वाइन डीएनए पेरेंटेज टेस्टिंग किट भी विकसित की है, जोकि पेरेंटेज विश्लेषण के लिए एक शक्तिशाली जीनोमिक तकनीक है। एलील आकारों की तुलना करने के लिए मल्टीप्लेक्स पीसीआर तकनीक का उपयोग करके अश्वों के बीच पितृत्व को निश्चित रूप से स्थापित किया जा सकता है। इक्वाइन पर आईसीएआर-एनआरसी में, पेरेंटेज परीक्षण के लिए एक अनुकूलित 21 डीएनए मार्केट पैनल का उपयोग किया जा रहा है।

घोड़ों की नस्ल पता लगाने के लिए भी विकसित हुई है  इक्वाइन डीएनए पेरेंटेज टेस्टिंग किट। फोटो: गाँव कनेक्शन

घोड़ों की नस्ल पता लगाने के लिए भी विकसित हुई है इक्वाइन डीएनए पेरेंटेज टेस्टिंग किट। फोटो: गाँव कनेक्शन

डॉ नवीन बताते हैं, “आपने जैसे घोड़ा खरीदा और आपको जानना है कि वो कैसा होगा, उसके पैरेंट्स कैसे रहें होंगे। जैसे कि किसी से आपने घोड़ा खरीदा और बेचने वाले ने आपसे बताया है कि वो मारवाड़ी किस्म का घोड़ा है, इस किट के जरिए घोड़े के डीएनए का पता चल जाएगा कि उसके पैरेंट्स किस नस्ल के रहे होंगे।”

सर्रा बीमारी से बचाने के लिए विकसित हुई है किट

सर्रा रोग पशुओं में होने वाली एक गंभीर बीमारी होती है, अगर समय से इलाज न किया गया तो पशुओं की मौत भी हो जाती है। यह रोग ट्राईपैनसो-इवेनसाई (Trypanosoma evansi) नामक परजीवी के कारण होता है। यह प्रोटोजोआ पशु के रक्त में प्रवेश कर जाता है जिससे बुखार, कमजोरी, सुस्ती, वजन कम होना और खून की कमी हो जाती है। कुछ पशु चक्कर काटने लगते हैं। इस बीमारी के चलते पशुओं में तेज बुखार, थरथराहट, आंख से दिखना बंद हो जाता है। पशु दांत किटकिटाता है। जल्दी जल्दी पेशाब करता है। पेट फूल जाता है और गिर कर मर जाता है। नर पशुओं के अण्डकोष में सूजन आ जाती है। मादा पशुओ में गर्भपात की समस्या आती है। यह रोग मुख्यतः ऊंट या ऊंटनी में देखा जाता है। ऊंट का कूबड़ धीरे धीरे नष्ट होने लगता है।

वैज्ञानिकों ने सर्रा बीमारी से जांच के लिए सर्रा एलिसा किट विकसित की है। इस किट से आसानी से सर्रा बीमारी की पहचान हो जाएगी, जिससे समय रहते पशुओं का इलाज भी हो जाएगा।

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