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कैसे होती है कृत्रिम बारिश, प्रदूषण से निपटने में कितनी है कारगर

आपके मन में भी ये सवाल आया होगा कि आखिर ये कृत्रिम बारिश कैसे होती है। आज कृत्रिम बारिश के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
#artificial rain

राजधानी दिल्ली में बढ़ते स्मॉग के चलते कृत्रिम बारिश यानी आर्टिफिशियल बारिश की बात की जा रही है।

कृत्रिम बारिश ऐसी जगह पर की जाती है, जहाँ पानी की कमी से सूखे की स्थिति होती है।

हवाई जहाज के ज़रिए केमिकल एजेंट्स जैसे सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस के घोल का छिड़काव करना होता है। इसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं।

इस प्रक्रिया के लिए बादलों का चयन सही होना जरूरी है। जिस बादल को चुना जाए उसमें लिक्विड का होना काफी जरूरी है। सर्दियों के दौरान बादलों में पर्याप्त पानी नहीं होता।

वैज्ञानिकों के अनुसार, इस प्रक्रिया के लिए प्राकृतिक बादलों का मौजूद होना सबसे जरूरी है। इसकी वजह से क्लाउड सीडिंग में समस्या रह सकती है।

आईआईटी कानपुर की मदद से यह बारिश कराई जाएगी। कानपुर में इस तरह के कुछ ट्रायल हुए हैं, जो छोटे एयरक्राफ्ट से किए गए। इनमें से कुछ में बारिश हुई तो कुछ में हल्की सी बूंदाबांदी।

अब आपके मन में ये भी सवाल आ सकता है कि अगर कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है तो फिर सूखे की समस्या क्यों आती है।

क्लाउड सीडिंग स्थाई हल नहीं है, लेकिन स्मॉग के दौरान इसे अपनाया जा सकता है। इससे थोड़े समय के लिए राहत होगी।

इसका अधिकतम असर इस पर निर्भर करेगा कि बारिश के बाद हवा किस गति से चलती है।

इसलिए इसका इस्तेमाल सिर्फ आपात स्थिति में ही किया जा सकता है।

इसके लिए बादलों की मूवमेंट का सही आकलन भी जरूरी है। अगर यह गलत हुआ तो बारिश उस जगह नहीं होगी, जहाँ इसे करवाने का प्रयास हुआ है।

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बताया, “सरकार प्रदूषण से निपटने के लिए क्या कुछ कदम उठाने जा रही है. जितने उपाय सरकार द्वारा सुझाए गए हैं, उनमें क्लाउड सीडिंग के माध्यम से कृत्रिम बारिश करवाने का भी सुझाव है।”

अब तक कहाँ-कहाँ हुई कृत्रिम बारिश

अभी तक ऑस्ट्रेलिया, जापान, इथियोपिया, जिंबाब्वे, चीन, अमेरिका और रूस जैसे देशों में इसे आजमाया गया है।

चीन ने प्रदूषण से निपटने के लिए इसका इस्तेमाल किया था। साल 2008 में, बीजिंग में आयोजित किए गए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों से पहले यहाँ पहली बार कृत्रिम बारिश की गई थी।

जबकि भारत में 80 के दशक में तमिलनाडु में इसका इस्तेमाल किया गया, फिर 1993-94 में भी क्लाउड सीडिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया।

साल 2003 और 2004 में कर्नाटक सरकार ने भी कृत्रिम बारिश की गई थी। इजरायल में कृत्रिम बारिश कराई जाती है, क्योंकि यहाँ प्राकृतिक रूप में कम बारिश होती है।

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