क्या आप आप भी मुर्गी पालन से जुड़ा व्यवसाय करना चाहते हैं, लेकिन आपके पास जगह नहीं है ?
छोड़ दीजिए ये फ़िक्र, हम आपको ऐसी तकनीक बता रहे हैं जो इस मुश्किल को आसान कर देगी; जी हाँ, थोड़ी सी भी जगह है तो बैकयार्ड मुर्गी पालन आप शुरू कर सकते हैं वो भी कम बजट में।
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ अशोक कुमार तिवारी से बात के बाद आप को भी यकीन हो जाएगा बैकयार्ड मुर्गी पालन से कैसे मुनाफा कमा सकते हैं।
डॉ अशोक कहते हैं,”पहले गाँव में सिर्फ देसी मुर्गी पालन किया जाता था, लेकिन धीरे धीरे ब्रायलर और लेयर के आने से देसी मुर्गियों का पालन कम होने लगा था; अब एक बार फिर गाँवों में लोग देसी मुर्गी पालन की तरफ बढ़ रहे हैं, खासकर युवा मुर्गी पालन करना चाह रहे हैं।’
भारत में संगठित या वाणिज्यिक पोल्ट्री क्षेत्र कुल मांस और अंडे के उत्पादन में लगभग 75 प्रतिशत योगदान देता है जबकि असंगठित क्षेत्र 25 फीसदी योगदान देता है। 20वीं पशुधन जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक, कुल पोल्ट्री आबादी 851.81 मिलियन (बैकयार्ड पोल्ट्री आबादी 317.07 मिलियन सहित) है, जो कि पिछली पशुधन जनगणना की तुलना में 45.8 प्रतिशत अधिक है।
अंडा उत्पादन में भारत दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है। देश में कुल अंडा उत्पादन 138.38 बिलियन होने का अनुमान है। साल 2018-19 के दौरान 103.80 बिलियन अंडों के उत्पादन के अनुमान की तुलना में वर्ष 2022-23 के दौरान पिछले 5 वर्षों में 33.31 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
कैसे करें बैकयार्ड मुर्गी पालन
अगर चूजे से मुर्गी पालन की शुरुआत कर रहे हैं तो कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रखना होता है।
बाड़े का तापमान सही रखें और शिकारियों से सुरक्षित रखें। चूजों के बाड़े के फर्श पर चूरा, धान की भूसी, चावल की भूसी, नारियल की भूसी की एक समान 1-2 इंच की परत बिछा देनी चाहिए। जो मुर्गी की बीट की नमी को अवशोषित करता है और सर्दियों में गर्मी और गर्मियों में ठंडक बनाए रखता है। इसे समय-समय पर बदलते रहें।
ब्रूडिंग प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके से की जा सकती है; पहले में अंडे को सेकर मुर्गी चूजे तैयार करती है, जबकि दूसरे में कृत्रिम तरीके से चूजे तैयार किए जाते हैं।
छह सप्ताह के बाद वयस्क मुर्गियों का प्रबंधन
दिन के दौरान पक्षियों को चारा खोजने के लिए छोड़ देना चाहिए, जबकि रात में बाड़े में रखना चाहिए। बाहर छोड़ने से पहले उनके लिए साफ पानी की व्यवस्था करें। बाड़ा हमेशा साफ और हवादार होना चाहिए।
ऐसे बनाए मुर्गी बाड़ा
कम लागत और स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री जैसे बांस, लकड़ी के फट्टे, पॉलिथीन शीट के इस्तेमाल से बाड़ा बनाना चाहिए।
नमी से बचने के लिए ज़मीन से कुछ इंच ऊपर एक अच्छी जल निकासी वाले क्षेत्र में बाड़ा बनाएँ। इतनी जगह हो कि हर एक पक्षी आराम से रह सके। बल्ब जलाकर उजाले का प्रबंध करें, इससे मुर्गियाँ अधिक अंडे देती हैं।
10 मुर्गियों के बाड़े के लिए आयाम: 4 फीट लंबा x 3 फीट चौड़ा x 3.5 फीट ऊंचा और ज़मीन से 1.5-2 फीट ऊपर, 3.5 फीट से 2.5 फीट की ढलान के साथ होना चाहिए।
साफ पानी और उनका दाना सामने की तरफ और उनके रहने की व्यवस्था पीछे की तरफ होनी चाहिए।
चारा प्रबंधन
नर्सरी पालन या ब्रूडिंग के तहत शुरुआती छह हफ्तों के दौरान मानक चिक स्टार्टर राशन पर पाला जाना चाहिए।
दूसरे बढ़ते चरण में, मुफ्त रेंज में उपलब्ध चारा सामग्री के अलावा, प्राकृतिक भोजन या साग जैसे बेकार अनाज, अंकुरित बीज, शहतूत की पत्तियाँ, अजोला, सहजन की पत्तियाँ और सुबबुल की पत्तियाँ (उच्च प्रोटीन स्रोत) देनी चाहिए।
खुले में घूमने वाली मुर्गियाँ अपने लिए प्रोटीन का इंतज़ाम खुद कर लेती हैं। इसके अलावा उपलब्धता के हिसाब से अनाज जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा और टूटे चावल या फिर चावल की पॉलिश या भूसी देनी चाहिए।
पक्षियों के वजन को नियंत्रित करने के लिए छह महीने की उम्र पर दाना सीमित कर दें।
बरसात के मौसम और फसल के समय, कीड़े-मकोड़े और फसलों के छिलके पक्षियों के खाने के लिए काफी होगा।
शुष्क मौसम के दौरान, रसोई का बचा हुआ खाना और सरसों की खली का फीड अंडे के उत्पादन और पक्षियों के शरीर के वजन पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।
सुबह और शाम को मुट्ठी भर अनाज या रसोई से निकले सब्जियों के छिलके देना चाहिए।
स्थानीय रूप से उपलब्ध फीड फॉर्मूलेशन में 50% अनाज (मक्का, ज्वार, बाजरा, टूटा हुआ चावल), 28% चोकर (चावल की भूसी, गेहूँ की भूसी, तेल रहित चावल की भूसी) , 20% भोजन/तिलहनी फसलों की खली (सोयाबीन, मूंगफली, सूरजमुखी, अलसी, सरसों की खली आदि) और 2% योजक (विटामिन और खनिज मिश्रण) शामिल हैं।
ताज़ा पानी का महत्व
दिन के समय ताज़ा, साफ और ठंडे पानी की व्यवस्था करें। अगर पक्षियों को दो दिनों तक पानी नहीं दिया जाता है, तो वे अंडे देना बंद कर देंगे। पक्षी अपने शरीर में पोषक तत्वों का भंडार बनाता है। अंडा देने के लिए कम से कम 10-15 दिनों की ज़रूरत होती है। एक पक्षी अपने वजन से दोगुना पानी पी सकता है।
टीकाकरण भी है बहुत ज़रूरी
मुर्गी पालन में किसान ब्रायलर और लेयर फार्मिंग में तो समय-समय पर टीका लगाते हैं; लेकिन देसी मुर्गी पालन में इस पर ध्यान नहीं देते हैं। जबकि इनको भी बीमारियों से बचने के लिए वैक्सीनेशन ज़रूरी होती है।
अधिक प्रतिरक्षा के लिए मारेक रोग, रानीखेत रोग, फाउल पॉक्स जैसी बीमारियों से बचने के लिए टीका ज़रूर लगाएँ। आंतरिक परजीवियों से बचाने के लिए पक्षियों को नियमित रूप से कृमि मुक्त करना चाहिए।
पीने के पानी के माध्यम से दवा देते समय, पानी में मिलाई जाने वाली दवा की मात्रा पर पशु चिकित्सक की सलाह का पालन करें, जिसे चूजे आमतौर पर चार घंटे में पीते हैं। अतिरिक्त पानी तभी दें जब सारा दवा वाला पानी पी लिया जाए।
स्वास्थ्य संबंधी खतरों से बचने के लिए पशु चिकित्सकों से सलाह लेते रहें।
मुर्गियों का रखें लेखा जोखा
आप अलग-अलग पक्षियों के प्रदर्शन की निगरानी कैसे करते हैं? कुछ बुनियादी रिकॉर्ड रखना ज़रूरी होता है। इसका पालन करना आसान है क्योंकि हर मुर्गी अलग-अलग घोंसलों में अंडे देती है और पिछवाड़े में पाले जाने वाले पक्षियों की संख्या आम तौर पर कम होती है।
प्रत्येक मुर्गी की अंडा देने की क्षमता और अंडे सेने के प्रदर्शन पर नज़र रखने से अगली पीढ़ी के उत्पादन के लिए मुर्गियों को चुनने में मदद मिलती है।
अंडे के उत्पादन का रिकॉर्ड रखने से किसानों को कम प्रदर्शन करने वाले/सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले पक्षियों की पहचान करने में मदद मिलती है। टीकाकरण और कृमि मुक्ति की जानकारी भी दर्ज की जा सकती है।
बाज़ार देखकर ही शुरु करें मुर्गी पालन
किसान अगर मुर्गी पालन शुरू करना चाहते हैं तो ये ज़रूर देखें कि उनके आसपास बाज़ार कहाँ पर है। क्योंकि आप अंडा बहुत दिनों तक नहीं रख सकते हैं। मांस भी खराब हो जाता है। इसलिए अपने आसपास की हाट बाजार ज़रूर देख लें, बाकी तो बैकयार्ड फार्मिंग बहुत आसान है।
मुर्गियों के साथ पाल सकते हैं टर्की और गिनी फाउल
अगर किसान मुर्गियों के साथ टर्की या गिनी फाउल का पालन शुरू करते हैं तो और भी ज़्यादा फायदेमंद है। इसे गार्ड बर्ड कहते हैं अगर कोई शिकारी आता है तो ये चीखने लगती हैं। इससे आपको अतिरिक्त कमाई हो सकती है।
बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग की नई तकनीक
मुर्गीपालन में सबसे अधिक फीड पर खर्च होता है, इस मॉडल से एक एकड़ में मुर्गी पालन करने से मुर्गियों के फीड का खर्च सत्तर फीसदी तक कम किया जा सकता है। छोटे किसानों के लिए यह मॉडल कमाई का बेहतर जरिया बन सकता है।
अपने क्षेत्र के लिए विकसित नस्लों का पालन करें
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान और दूसरे कई संस्थानों ने बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग के लिए कई प्रजातियाँ विकसित की हैं। इसलिए हमेशा वैज्ञानिक की सलाह पर ही मुर्गियों की नस्लों का चुनाव करें।
अधिक जानकारी के लिए यहाँ संपर्क करें
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान समय-समय पर मुर्गी पालन के लिए प्रशिक्षण देता रहता है। अगर आप भी मुर्गी पालन के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो संस्थान में संपर्क कर सकते हैं।
ईमेल: carisupply01@gmail.com
मोबाइल: +91-7417043972 / +91-7500394137
अगले भाग में पढ़िए कहाँ से लें बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग की ट्रेनिंग और कौन सी नस्ल का करें पालन।