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बड़े काम का होता है बांस, इमारती लकड़ी ही नहीं इससे बना सकते हैं कई तरह के व्यंजन

बांस बहुत काम का होता है और दुनिया में आर्थिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण पौधों में से एक है। बांस के शूट्स का भोजन के रूप में और कई पारंपरिक खाद्य पदार्थों में उपयोग किया जाता है। पुराने समय से ही बांस के कोपलों का प्रयोग खाद्य पदार्थ के तौर पर होता आया है।
#Bamboo

अंकिता

भारत में बांस को हरा सोना भी कहा जाता है क्योंकि यह एक टिकाऊ और बहुउपयोगी प्राकृतिक संसाधन और भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। लेकिन ज्यादातर लोगों को यह पता ही नहीं होगा कि बांस सिर्फ इमारती लकड़ी नहीं, बल्कि बल्कि एक औषधि और खाद्य भी है।

बांस विश्व का सबसे जल्दी बढ़ने वाला घास-कुल का सबसे लंबा पौधा है जो कि ग्रामिनीई (पोएसी) परिवार का सदस्य है। बांस बम्बूसी परिवार से संबंधित है, जिसमें 115 से अधिक वंश और 1,400 प्रजातियां शामिल हैं। भारत में पाया जाने वाला बांस लगभग 12 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है। इसकी लंबाई विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग हो सकती है; कुछ की लंबाई सिर्फ 30 सेमी होती है तो कुछ की 40 मीटर तक भी हो सकती है।

बांस की कुछ प्रजातियां तो एक दिन में 1 मीटर तक बढ़ने की क्षमता रखती हैं। यह अद्भुत पौधा उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण वातावरण में बढ़ता है। बांस मुख्य रूप से अफ्रीका, अमेरिका और एशिया में पाया जाता है। भारत में बांस ज्यादातर उत्तर-पूर्वी राज्यों, बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के जंगलों में पाए जाते हैं। चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांस उत्पादक देश है।

मैसूर स्थित सीएसआईआर-केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (सीएफटीआरआई) के मुख्य वैज्ञानिक और पारंपरिक खाद्य और संवेदी विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ एन.जी. इबोइमा सिंह के अनुसार, “बांस को कीटनाशकों या रासायनिक उर्वरकों के बिना उगाया जाता है। इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं है, इसे शायद ही कभी पुनर्रोपण की आवश्यकता हो। बांस तेजी से बढ़ता है और 3-5 साल में काटा जा सकता है, अन्य पेड़ों की तुलना में बांस का पेड़ 35 प्रतिशत अधिक ऑक्सीजन वायुमंडल में छोड़ता है और 20 प्रतिशत कार्बन-डाइऑक्साइड अवशोषित करता है। बांस की वैज्ञानिक तरीके से खेती करने से वायुमंडल में ऑक्सीजन का उत्सर्जन और कार्बन-डाइऑक्साइड का अवशोषण बढ़ाकर वायुमंडल की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। बांस मिट्टी के क्षरण को रोकने के साथ ही मिट्टी की नमी बनाए रखने में भी मदद करता है।”

बांस लगभग 1500 से अधिक उपयोगों के लिए जाना जाता हैं और दुनिया में आर्थिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण पौधों में से एक है। बांस के शूट्स का भोजन के रूप में और कई पारंपरिक खाद्य पदार्थों में उपयोग किया जाता है। पुराने समय से ही बांस के कोपलों का प्रयोग खाद्य पदार्थ के तौर पर होता आया है। बांस के कोंपल बांस के युवा पौधे होते हैं, जिन्हें बढ़ने से पहले ही काट लिया जाता है। बांस की कोंपलों के अनपके हिस्से को सुखाकर बाद में खाने के लिए रखा जा सकता है। बांस का इस्तेमाल सब्जी, अचार, सलाद, नूडल्स, कैंडी और पापड़ सहित अनेक प्रकार के व्यंजन बनाने में किया जाता है। जनजातीय क्षेत्रों में बांस के कोंपलों से बने व्यंजन बेहद लोकप्रिय हैं।

100 ग्राम बम्बू शूट्स में केवल 20 कैलोरी, 3-4 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2.5 ग्राम शर्करा, 0.49 ग्राम वसा, 2 से 2.5 ग्राम, 6-8 ग्राम तक फाइबर पाया जाता है, इसके अलावा विटामिन ए, विटामिन ई, विटामिन बी, विटामिन बी 6, थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, फोलेट और पैण्टोथेनिक एसिड, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम, सोडियम, जस्ता, कॉपर, मैंगनीज, सेलेनियम और आयरन आदि पाए जाते हैं।

घर में भी बांस के व्यंजन आसानी से बनाए जा सकते है जैसे, बम्बू शूट्स का सेवन सब्जी के रूप में किया जा सकता है। इसके लिए ताजा बांस के अंकुरों को काटकर लगभग 20 मिनट तक उबालें और नरम होने के बाद सब्जी बना लें। बांस का उपयोग सूप बनाकर पीने के लिए, बांस की कोपलों का चूर्ण बनाकर सेवन किया जा सकता है। बांस की कोपलों और पत्तों का काढ़ा बनाकर पी सकते हैं। इसकी पत्तियों का पेस्ट बनाकर त्वचा पर लगा सकते हैं।इसके अलावा, बांस का मुरब्बा और अचार भी बनाया जाता है।

डॉ इबोइमा बताते हैं कि बम्बू शूट्स का प्रयोग लगभग 2000 से अधिक वर्षों से पारंपरिक चीनी औषधीय सामग्री के रूप में किया जाता रहा है । पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति में, बम्बू शूट्स में पाए जाने वाले प्राकृतिक कैल्शियम को वंशलोचन’ कहा जाता है और इंडोपर्सियन और तिब्बती चिकित्सा पद्धति में इसे ‘तबाशीर’ या ‘तवाशीर’ कहा जाता है और आमतौर पर अंग्रेजी में ‘बांस मन्ना’ कहा जाता है।

आधुनिक शोध से पता चला है कि बैम्बू शूट्सके कई स्वास्थ्य लाभ हैं , बांस का मुरब्बा लम्बाई बढ़ाने के लिए बेहद लाभदायक होता है , बांस के मुरब्बे में एमिनो एसिड पाया जाता है जो लम्बाई बढ़ाने में कारगर है। बांस के अंकुर में गर्भाशय को स्वैस्थ रखने वाले गुण होते हैं। बांस में यूटरोटोनिकनाम का तत्व पाया जाता है जो गर्भाशय के संकुचन को बढ़ाने में मदद करता है।

महिलाएं गर्भावस्था के अंतिम महीनों में बांस के अंकुर का विशेष रूप से सेवन करती हैं। बंबू शूट्स में विटामिन ई होता है विटामिन ई हमारे लिए एक एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है। जो त्वचा कोशिकाओं को फ्री रेडिकल्स के प्रभाव से बचाने में सहायक होता है। ये फ्री रेडिकल्स समय से पहले उम्र बढ़ने वाले संकेतों का प्रमुख कारण होते हैं। एरीस पेलस एक तरह का स्किन इंफेक्शन है, जिसमें त्वचा की बाहरी परत प्रभावित होती है। इसके कारण चेहरे पर लाल रंग के चकत्ते और सूजन होती है । इस संक्रमण को एंटीबायोटिक्स की मदद से कम किया जा सकता है। यह गुण बांस की पत्तियों में मौजूद होता है। इसी वजह से माना जाता है कि बांस की पत्तियों के पेस्ट को पीसकर त्वचा पर लगाने से इस स्किन इंफेक्शन के प्रभाव को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

बंबू शूट्स में विटामिन, खनिज पदार्थ, प्रोटीन और कई प्रकार के एंटीऑक्सी डेंट आदि की अच्छी मात्रा होती है। जिसके कारण यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करता है। बांस के अंकुर में फाइटोन्यूट्रिएंट्स होते हैं जो हृदय की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। एक अध्ययन के अनुसार बांस के अंकुर में पाए जाने वाले फाइटोस्टेयरोल्सर और फाइटोन्यू ट्रिएंटस शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करते हैं। इसके अलावा बंबू शूट में पोटेशियम भी होता है जो रक्त परिसंचरण और हृदय गति को स्वस्थ बनाए रखने में अहम योगदान देता है। नियमित रूप से बांस की नई कलियों का सेवन शरीर में एलडीएल यानी लो डेंसिटी लिपो प्रोटीन के स्तर को कम कर सकता है। एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को खराब कोलेस्ट्रॉल के रूप में जाना जाता है।

बांस की कलियों में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट हमारे शरीर को ऑक्सीडेटिव तनाव से भी बचाने में सहायक होते हैं।ऑक्सीलडेटिव तनाव डीएनए की क्षति और कैंसर का कारण बन सकता है। नये और कोमल बांस में क्लोरोफिल की भी कुछ मात्रा होती है जो स्वस्थ कोशिकाओं के विकास में सहायक होता है। बम्बू शूट्स का नियमित सेवन लाल रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने में मदद करता है जिससे शरीर के सभी अंगों में ऑक्सीजन प्रवाह बना रहता है। बांस के अंकुरों में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। यह फाइबर मल को नरम बनाने और मल त्याग को आसान बनाने में मदद करता है, जिससे कब्ज में राहत मिलती है।

बांस की कलियों में कैलोरी और फैट बहुत ही कम मात्रा में होता है। जिसके कारण बांस वजन घटाने वाले सबसे अच्छे खाद्य पदार्थों में शामिल किया जाता है। बांस के नए अंकुर में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लामेटरी गुण होते हैं, जो मूत्र पथ में मौजूद बैक्टीरिया और संक्रमण के प्रभाव को कम करने में मदद करते हैं। बांस में विभिन्न प्रकार के विटामिन और खनिज पदार्थ होते हैं जो त्वचा कोशिकाओं के विकास में सहायक होते हैं। इसमें मौजूद कैल्शियम की उच्च मात्रा हड्डियों के घनत्व को बढ़ाने में सहायक होती है। इसके अलावा बांस के सेवन से ऑस्टियोपोरोसिस से बचने में भी मदद मिल सकती है।

बांस की खाद्य के रूप में उपयोगिता को गंभीरता से नहीं लिया गया है, जिसकी वजह से आज भी अधिकांश लोग इसके सेवन-लाभ से वंचित हैं। इस स्थिति को बदलने में पर्यावरणविद, वन-अनुसंधानकर्ता और किसान एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। 

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