Bank Strike : बैंक कर्मी क्यों हड़ताल कर रहे हैं, जानिए क्या है निजीकरण का मुद्दा?

देश में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अधिकारियों और बैंक कर्मियों ने 2 बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। निजीकरण का विरोध कर रहे सरकारी बैंकों और ग्रामीण बैंकों के करीब 10 लाख कर्मचारी हड़ताल कर रहे हैं, समझिए क्या है उनका मुद्दा?
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लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। देश की 12 सरकारी बैंकों और ग्रामीण बैंकों के करीब 10 लाख कर्मचारी बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ लगातार आवाज़ उठा रहे हैं। बैंक कर्मी 16-17 दिसंबर को देशव्यापी हड़ताल (Bank Strike) कर रहे हैं। बैंक कर्मचारियों का कहना है अगर बैंकों का निजीकरण हुआ तो 10 लाख बैंक कर्मियों (Banker) के परिवारों के साथ ग्रामीण इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोगों का नुकसान हुआ। उनके लिए बैंकिंग सेवाएं महंगी हो जाएंगी। निजीकरण का मुद्दा संसद में भी उठ चुका है।

“सरकारी बैंकों का डिस्इनवेस्टमेंट यानि निजीकरण बैंक कर्मियों के साथ गरीब जनता के लिए बहुत घातक कदम होगा। आपको को क्या लगता है जो गरीब जनता आईसीआईसीआईसी और एचडीएफसी बैंकों में जाएगी जहां खाता ही 5000 या 10000 रुपए से खुलता है। आज की तारीख में सारी योजनाएं सरकारी बैंकों से होकर जाती हैं। 97 फीसदी जनधन खाते सरकारी बैंकों में हैं तो 99 फीसदी मुद्रा लोन सरकारी बैंकों ने दिया है। जब निजीकरण होगा तो इनके लिए मुश्किलें बढ़ेंगी।” संदीप सिंह, राष्ट्रीय महासचिव, इंडियन नेशनल बैंक ऑफिसर्स कांग्रेस (INBOC) और ऑल इंडिया बैंक और बड़ौदा ऑफिसर्स एसोसिएशन के जोनल सेक्रेटरी (लखनऊ जोन) ने गांव कनेक्शन को निजीकरण के नुकसान गिनाए।”

16-17 दिसंबर को दो दिन की हड़ताल पर बैंक कर्मचारी

बैंकों के निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन करते बैंक कर्मी। फोटो: अरेंजमेंट

सरकारी क्षेत्रों के प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में देशभर की सरकारी बैंक कर्मचारी 16-17 दिसंबर को राष्ट्रव्यापी हड़ताल कर रहे हैं। हड़ताल के दौरान देश की 1.18 लाख सरकारी बैंकों और ग्रामीण बैंकों में काम नहीं होगा। ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडरेशन (All India Bank Officers’ Confederation) और दूसरे बैंक संगठनों के अह्वान पर बैंक कर्मचारी पिछले काफी समय से लगातार आवाज़ उठा रहे हैं। धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। कोलकाता और मुंबई से दो यात्राएं चलकर दिल्ली पहुंची हैं। इसके अलावा वो सोशल मीडिया के जरिए भी अपने समर्थन में लोगों को जोड़ रहे हैं।

ऑल इंडिया रुरल बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के सचिव बीपी सिंह गांव कनेक्शन से कहते हैं, “निजीकरण से बैंककर्मियों में तो असुरक्षा आएगी ही उससे ज्यादा नुकसान उन गरीब लोगों और छोटे व्यापारियों को होगा जो 3-4 फीसदी पर लोन पा जाते हैं। उन तमाम व्यक्तिगत खाता धारकों का नुकसान होगा, जो सरकारी गारंटी पर बैंकों पर पैसा रखते हैं, क्योंकि उनका भरोसा है। हम लोग जिस तरह बेहद कम संसाधनों के साथ ग्रामीण इलाकों में बैंकिग सेवाएं दे रहे हैं, निजी बैंकों से उम्मीद नहीं की जा सकती।”

बैंकों का मुद्दा सड़क से लेकर संसद तक गूंज रहा है। संसद में बैंकों के निजीकरण से लेकर कम स्टॉफ तक का मुद्दा उठ चुका है। बिहार से जेडीयू सांसद चंदेश्वर प्रसाद (JDU) और तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के लोकसभा सांसद माने श्रीनिवास रेड्डी ने लोकसभा में सवाल पूछा “क्या निजीकरण किए जाने के लिए सरकारी क्षेत्रों के विभिन्न बैंकों का चयन किया है अगर हां तो ब्यौरा क्या है?

 

इन सवालों के जवाब में 13 दिसंबर को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में दिए लिखित जवाब में कहा, “सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट 2021-22 में सार्वजिनक क्षेत्र के दो बैंकों (पीएसबी) का निजीकरण आरंभ करने तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कार्यनीतिक विनिवेश की नीति को अनुमोदित करने की घोषणा की थी, विनिवेश से संबंधित विभिन्न मामलों, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ बैंकों का चयन भी शामिल है पर विचार करने का कार्य इस प्रयोजन हेतु नामोदिष्ट मंत्रिमंडल समिति को सौपा गया है। पीएसबी के निजीकरण के संबंध में मंत्रिमंडल समिति द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया है।”

13 दिसंबर को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में लिखित जवाब दिया है।

सरकार के इस जवाब में बैंककर्मी संतुष्ट नहीं हैं। मुंबई की एक बैंक में कार्यरत अलंकृत शुक्ला ने गांव कनेक्शन से कहा, “सरकार ने संसद में ये कहा कि मंत्रिमंडल समिति ने कोई निर्णय नहीं लिया है। यानि पता नहीं आगे क्या होगा। सरकार को इस बारे में बैंककर्मियों और आम लोगों को स्पष्ट बताना चाहिए।”

ऑल इंडिया बैंक और बड़ौदा ऑफिसर्स एसोसिएशन में लखनऊ जोन के जोनल सेक्रेटरी संदीप सिंह भी अंलकृत शुक्ला की तरह संसद में सरकार के जवाब को कंन्फ्यूज करने वाला स्टेटमेंट मानते हैं। वो कहते हैं, “अगर उन्हें निजीकरण नहीं करना है तो साफ बात करें। सिर्फ एक साधारण बयान चाहिए। अभी नहीं लाए हैं लेकिन आगे बिल ला सकते हैं। हम इनके झांसे में आने वाले नहीं हैं।”

निजीकरण का समर्थन करने वाले लोगों के मुताबिक निजीकरण से सरकारी बैंकों में सुस्त सर्विस में तेजी आएगी। लेकिन बैंक कर्मी इसके लिए खराब इंफ्रास्ट्रैक्चर और संसाधन की बात करते हैं।

ऑल इंडिया रुरल बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के सचिव बीपी सिंह गांव कनेक्शन से कहते हैं, “हम मानते हैं कि कई बार कुछ ग्राहकों को असुविधा हो जाती है लेकिन हम ये भी देखिए कि हमारे बैकों में स्टॉफ कितने हैं। हमारे कंप्यूटर और सर्वर किस तरह से काम करते हैं। दुनिया जब बुलेट ट्रेन की बात कर रही है उस जमाने में ज्यादातर बैंक सिस्टम बैलगाड़ी पर हैं।”

12 बैंकों में 41777 पद खाली

सरकार के संसद में दिए गए एक जवाब के मुताबिक देश 12 सार्वजनिक बैंकों में 41000 से ज्यादा पद खाली हैं। तेलंगाना राष्ट्र समिति की सांसद अनमुलुा रेवंत रेड्डी के सवाल के जवाब में सरकार ने सदन में बताया कि “1 दिसंबर 2021 के अनुसार देशभर 12 सार्वजनिक बैंकों में कुल स्वीकृत कर्मचारियों की संख्या में 95 फीसदी कर्मचारी कार्यरत हैं। आंकड़ों के अनुसार 12 सरकारी बैंकों में कुल 8,0,5986 पद हैं, जिसमें से 41777 पद रिक्त हैं। सरकार ने कहा कि रिक्तियां बैंक कर्मियों के सेवानिवृत्ति आदि से होती हैं, जिन्हें बैंक अपनी सतत प्रक्रिया के द्वारा भरते रहते हैं।”

“निजीकरण के खिलाफ हड़ताल सिर्फ बैंक कर्मियों के लिए नहीं आम जनता के लिए भी है”

बैंक ऑफ इंडिया ऑफिसर्स एसोसिशन यूपी-उत्तराखंड से जुड़े सौरभ श्रीवास्तव कहते हैं, “बैंकर की हड़ताल सिर्फ कर्मियों की हड़ताल नहीं बल्कि देश की आम जनता के लिए है। हमारा संविधान देश में आर्थिक समानता और आर्थिक न्याय दिलाने की कोशिश करता है। संविधान की धारा 38बी में कहा गया है कि राज्य हर वो प्रयास करेगा जिससे आर्थिक आसमानता कम हो सके। जब देश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। जब अमीरी और गरीबी का अंतर बढ़ रहा है, उस स्थिति में बैकों का निजीकरण करना है, पूंजीवाद और को पूंजीपतियों को बढ़ावा देना है।”

निजीकरण के खिलाफ बैंककर्मियों के विरोध को कई संगठनों का समर्थन भी मिला है। बेरोजगारी पर बात करने वाले संगठन युवा हल्ला बोल के राष्ट्रीय महासचिव प्रशांत कमल के मुताबिक वो निजीकरण का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इससे बेरोजगारी बढ़ेगी।

“बैंकों के निजीकरण का मुद्दे आम लोगों की जेब का मुद्दा है”

प्रशांत कमल कहते हैं, “निजीकरण का मुद्दा सिर्फ नौकरी और बेरोजागारी का ही नहीं है। इसका आम लोगों की जेब से सीधा संबंध है। गांवों के जिन लोगों को गाय भैंस खरीदने के लिए छोटा केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) मिलता है या या जो 500 रुपए की पेंशन आती है, क्या वो उनकी क्षमता है कि वो एक निजी बैंक में अपना खाता रख सकें, नहीं।”

वो आगे कहते हैं, “सरकारी बैकों का मुख्य मकसद पैसा कमाना मुनाफा कमाना नहीं होता है। वो मुनाफा कमाते हैं लेकिन वो मुख्य तौर पर जनउपयोगी योजनाओं को आगे बढ़ाने का काम करते हैं। लोगों को बैंकिग सुविधाओं से जोड़ते हैं। लेकिन प्राइवेट बैंक ऐसा नहीं करेगें। क्या निजी बड़े बैंक दूरदराज के गांवों में अपनी ब्रांच खोलेंगे? भारतीय रिजर्व बैंक के बार-बार कहने के बावजूद कितनी निजी बैंकों ने ग्रामीण इलाकों में ब्रांच खोली हैं।”

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए प्रशात गांव कनेक्शन से कहते हैं, “अगर प्राइवेट बैंक अगर इतने अच्छे होते तो सरकारी खातों में इतने बैंक क्यों इतने खाते हैं? यश बैंक और पीएमसी की हालत आपने देखी है। हम निजी बैंकों के विरोधी नहीं है,यहां मसला ये लॉस (सरकारी घाटे) के राष्ट्रीयकरण का है और जो प्राफिट है (सरकारी बैंकों की पूंजी) उसके निजीकरण का है। हमारा सवाल है कि जो मुनाफा कमा रही है संस्था उसे बेचने की जरुरत क्या है और अगर कोई संस्था लॉस में है तो उसे जो खरीदना चाहता है उसका उसमें क्या हित है, ये भी समझने की बात है।”

बैंकों के मुदे को अकेले दिसंबर में कई कार्यक्रम हुए हैं दो कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए हैं, जिसमें वो खाता धारकों को उनके हितों की बात और उनकी जमा की सुरक्षा की बात करते नजर आए हैं। 

यूपी के बरेली में तैनात एक बैंकर समीर सक्सेना कहते हैं, “ये बैंकों का निजीकरण बिल शीतकालीन सत्र के पहले हफ्ते में ही आना था लेकिन जिस तरह बैंक कर्मियों ने विरोध किया है और किसान आंदोलन के मुद्दे पर जैसे सरकार पीछे हटी है, उसका कुछ असर यहां भी देखा जा रहा है। सरकार कुछ हद तक बैकफुट है।”

बड़ौदा यूपी ग्रामीण बैंक के शाखा प्रबंधक संतोष तिवारी कहते हैं, “सरकार इसी सत्र में बिल लाने वाली थी, जिसके विरोध में बैंक संगठनों ने 24 नवंबर से 30 नवंबर तक देश में यात्राएं निकालीं। रैली और प्रभात फेरियां निकाली गईं। 30 नवंबर दिल्ली में जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया गया। जिसमें कई दूसरे संगठनों ने भी सहयोग किया। 16-17 की हमारी हड़ताल के बाद भी अगर सरकार इस मुदद् पर अपनी स्पष्ट बात नहीं करेगी तो हम लोग अनिश्चितकालीन हड़ताल पर भी जा सकते हैं।

खबर -अंग्रेजी में यहां पढ़ें-

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