सिवान (बिहार)। करीब 65 साल के दूधनाथ सिंह को याद नहीं कि बचपन और जवानी में कभी बीमार हुए हों लेकिन अब उन्हें लीवर, किडनी और फेफड़े की बीमारी है। कभी पेट में दर्द रहता है तो कभी सीने में।
दूधनाथ सिंह कहते हैं, “तीन महीने पहले पेट का इलाज कराने गए तो डॉक्टर ने उबला हुआ पानी पीने की सलाह दी थी। पानी उबालने पर उस पर सफेद रंग की पपड़ी जम रही है।”
दूधनाथ सिंह का गांव बालीडीह, बिहार की राजधानी पटना से 150 किलोमीटर दूर सिवान जिले के दरौंदा प्रखंड में है। सिवान बिहार के उन जिलों में 10 जिलों में शामिल हैं जहां पानी में खतरनाक रेडियो एक्टिव तत्व यूरेनियम पाया गया है। ये बिहार के उन इलाकों में भी शामिल है जहां पानी में घुला आर्सेनिक पहले ही लोगों को बीमार बना रहा है।
बिहार में गंगा के तटीय जिलों के भूगर्भ पानी में आर्सेनिक की अधिकता तो पहले से ही थी। अब रेडियो एक्टिव “यूरेनियम” भी यहां के पानी में घुलकर राज्य वासियों को बीमार बना रहा है। चिंता वाली बात यह है कि खतरनाक स्तर से भी अधिक मात्रा में पहुंच चुके यूरेनियम युक्त पानी पीने से लोग लगातार गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं लेकिन सरकार है कि अचेत पड़ी हुई है।
ब्रिटेन की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर पटना के महावीर कैंसर शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने बिहार के भूगर्भ जल की गुणवत्ता पर हाल ही में एक रिसर्च की है, जिसमें पता चला है कि राजधानी पटना के अलावा सुपौल, नालंदा, नवादा, सारण गोपालगंज और सिवान के पानी में स्वीकार्य से अधिक मात्रा में यूरेनियम मिला है जो बेहद चिंता का सबब है। इस रिसर्च टीम में महावीर कैंसर संस्थान के हेड ऑफ डिपार्टमेंट और वर्तमान में बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के चेयरमैन अशोक कुमार घोष शामिल रहे हैं।
घोष बताते हैं, “सुपौल जिले में सबसे अधिक 80 माइक्रोग्राम यूरेनियम प्रति लीटर पानी में मिला है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा स्वीकृत 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर की मात्रा से करीब तीन गुना है। इसके अलावा सिवान जिले में जो राज्य के सबसे ऊंचे जिलों में से एक है, वहां भी यूरेनियम की मात्रा 50 माइक्रोग्राम है जो चौंकाने वाला है।”
रिपोर्ट और घोष के मुताबिक अमूमन बाढ़ के साथ नदियों का पानी जिन क्षेत्रों में पहुंचता है वहां भूगर्भ में आर्सेनिक के साथ यूरेनियम भी बढ़ना अब स्वाभाविक हो गया है, लेकिन ऊंचाई की वजह से सिवान जिला बाढ़ की चपेट में आने से बचता रहा है। बावजूद इसके यहां के पानी में सामान्य से करीब दो गुना यूरेनियम का पाया जाना वैज्ञानिकों को हैरान करने वाला है।
अशोक घोष ने गांव कनेक्शन को बताया, “राज्य में 273 जगहों के पानी के नमूने लिए गए थे जिनकी जांच के बाद पता चला कि राज्य के 10 जिलों का भूगर्भ पानी यूरेनियम की चपेट में है। इन जिलों में पहले से ही पानी में आर्सेनिक मौजूद है और अब यूरेनियम का मिलना लोगों के लिए दोहरे मार जैसा है। उपरोक्त सात जिलों में स्थिति और अधिक चिंताजनक है।”
क्या होता है यूरेनियम और यह कितना खतरनाक है?
बिहार में भूगर्भ पानी पर किए गए रिसर्च टीम का हिस्सा रहे डॉ अरुण कुमार महावीर कैंसर संस्थान में ही वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। डॉ. अरुण कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, “यूरेनियम एक रेडियोएक्टिव पदार्थ है जो शरीर के अंदर जाने पर पाचन तंत्र और कोशिकाओं में जमने लगता है। परमाणु रिएक्टर के तौर पर इस्तेमाल होने वाले इस खतरनाक तत्व के पानी में मौजूदगी की वजह से सामान्य तौर पर लिवर और किडनी तो क्षतिग्रस्त होती ही हैं, लंबे समय तक जमने के बाद यह कैंसर में तब्दील हो जाता है जो लाइलाज है।”
यूरेनियम के नुकसान गिनाते हुए उन्होंने कहा, “यूरेनियम युक्त पानी पीने वाले लोगों की पाचन क्षमता बिल्कुल खत्म होने लगती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी नष्ट हो जाती है। ऐसे में कई गंभीर बीमारियां चपेट में ले लेती हैं। यूरेनियम रेडियोएक्टिव है इसीलिए यह मानव शरीर में मौजूद डीएनए को भी प्रभावित करता है।”
डॉक्टर अरुण ने मुताबिक कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में हाल के दौर में कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसकी वजह पानी में यूरेनियम की मौजूदगी ही है। इसके अलावा अस्पतालों में ऐसे मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है जिन्हें लिवर, किडनी और पाचन संबंधी अन्य बीमारियां हो रही हैं।
वो आगे कहते हैं, “बिहार के लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी मजबूत होती है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग और अधिक स्वस्थ होते हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण आबादी में होने वाली लाइलाज बीमारियां शहरी आबादी के लगभग बराबर है जो चिंता बढ़ाने वाली है। पटना के अलावा उपरोक्त जिलों में भूगर्भ जल में आर्सेनिक तो पहले से ही मौजूद था, अब उनमें यूरेनियम का घुलना, जहर घुलने के समान है और लोग अनजाने में उसी पानी को लगातार पी रहे हैं।” बिहार में पानी को लेकर डॉ. घोष का पूरा इंटरव्यू यहां देखें
दूधनाथ सिंह जैसे करोड़ों लोग जो पानी पी रहे हैं उसमें कोई खतरनाक तत्व है इसकी उन्हें खबर नहीं है। आर्सेनिक और यूरेनियम के बारे में पूछने पर उन्होंने पूछा, ये क्या होता है?
दूधनाथ कहते हैं, “पानी का स्वाद बदल गया है। पहले 50 से 100 फीट नीचे जमीन से पानी ट्यूबवेल से निकाल कर पीने पर काफी मीठा लगता था लेकिन अब 200 फीट नीचे का पानी भी उस स्वाद का नहीं लगता।”
बालडिह गांव में ही दूधनाथ सिंह के घर से थोड़ी दूरी पर ही राघव सिंह (62 वर्ष) का घर है। गांव कनेक्शन की टीम जब उनके पास पहुंची वो नल पर पानी भर रहे थे। राघव भी पानी में ऐसे किसी तत्व के होने से अनजान है, लेकिन वो इतना जरूर कहते हैं कि अगर ऐसा कुछ है तो न सिर्फ लोगों को बताया जाए बल्कि उसका वैकल्पिक इंतजाम भी किया जाए। राघव कहते हैं, मैं अपने जीवन के 60 से अधिक बसंत देख चुका हूं। और आज तक राज्य सरकार की ओर से आर्सेनिक अथवा यूरेनियम जैसे घातक पदार्थों के पानी में मौजूदगी के बारे में कोई प्रचार-प्रसार नहीं देखा है।”
क्यों पानी में मिल रहा है यूरेनियम?
बिहार के इन जिलों के पानी में यूरेनियम की मौजूदगी कैसे हुई, इसके संभावित स्रोत के बारे में पूछे जाने पर डॉ अरुण ने बताया कि यह अभी भी शोध का विषय है। उन्होंने बताया कि झारखंड के जादूगोड़ा में यूरेनियम खदान मौजूद हैं। उसके आसपास के जिलों में तो पानी में यूरेनियम की मौजूदगी की वजह समझ में आती है, लेकिन बिहार के ये जिले जो झारखंड से काफी दूर हैं, वहां इसका पाया जाना वैज्ञानिकों को हैरान करने वाला है।”
उन्होंने इसके संभावित स्रोत के बारे में अनुमान लगाते हुए कहा, “बिहार में बहने वाली गंगा, घाघरा, कोसी, गंडक, कर्मनाशा और बागमती नदियां पहाड़ों से निकलकर कई राज्यों की सीमा पार करते हुए समतल क्षेत्रों में बहती हैं। पहाड़ से निकलने वाली ये नदियां अपने साथ कई तत्वों को बहा कर लाती हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि नदियों के पानी के साथ यूरेनियम भी बह कर आ रहा है जो धीरे-धीरे भूगर्भ जल में पहुंच रहा है।”
इसके अलावा बारिश के समय बाढ़ के पानी के साथ नदियों का जल राज्य के अधिकतर जिलों में पहुंच जाता है जो अंततः भूगर्भ में ही जाता है।
डॉ अरुण ने आगे कहा, “हालांकि अभी तक शोध में स्पष्ट नहीं हो सका है कि आखिरकार राजधानी पटना सहित राज्य के उपरोक्त जिलों में यूरेनियम कहां से आ रहा है। इस संबंध में अभी भी वैज्ञानिक जांच कर रहे हैं और यह एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा है। बहुत हद तक यह भी संभव है कि जिन जिलों के पानी में यूरेनियम मिल रहा है वहां जमीन के नीचे से खदान भी मौजूद हों।”
यूरेनियम की मौजूदगी और उसके नुकसान से अनजान हैं आम लोग
सिवान जिले के दरौंदा प्रखंड अंतर्गत बालडिह की बेबी देवी की तीन बच्चों की मां है। न वो स्वस्थ रहती है और न ही उनके बच्चे।
यूरेनियम और आर्सेनिक के नुकसान के बारे में बताने पर बेबी देवी कहती कहती हैं, जब पानी में ही जहर घुल गया है तो बचने का रास्ता नहीं दिखता।
बालडिह गांव से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर खडसरा गांव है जो नहर के पार है। गांव में घुसते ही थोड़ी दूर जाने पर आशीष कुमार का घर है जो गांव कनेक्शन की टीम के पहुंचने पर बाहर नल पर पानी पी रहे थे। आशीष उनके गांव में लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। इस गांव में नल जल योजना के तहत पानी की टंकी बनाई है। इसके साथ ही लगभग हर घर में चापाकल यानी नल हैं, लोग इनका पानी धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं।
आशीष कहते हैं, “कुछ दिनों पहले उनके लिवर में सूजन हो गया थी, तो डॉक्टर बोतलबंद या उबला हुआ पानी पीने की सलाह दी थी। खेती से घर चलता है। ऐसे में रोज खरीदकर या उबालकर पानी पीना उनके लिए असंभव है। मजबूरी में वो जमीन का पानी ही पी रहे हैं।
सिवान के कई दूसरे गांवों और इलाकों में लोगों से बात करने पर ही कोई व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जिसे यूरेनियम के बारे में जानकारी हो।
बिहार के जल पुरुष के तौर पर मशहूर एमपी सिन्हा ने यूरेनियम के प्रभावों से बचने के लिए कई सुझाव दिए हैं। “आहार-पाइन बचाओ अभियान” के संयोजक सिन्हा ने कहा, “यह अत्यंत आवश्यक है कि उन 10 जिलों में लोगों को यूरेनियम जैसे घातक तत्वों के बारे में जागरूक किया जाए। जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम होंगे वे वाटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा हर जिले में पंचायत वार लोगों की सभा करनी चाहिए एवं पेयजल संकट से उन्हें अवगत कराया जाए ताकि पानी को उबालकर पीने की आदत डालें।”
सिन्हा ने सरकार से इन सभी जिलों में वाटर ट्रीटमेंट का कार्य शुरू करने के वकालत की है। उनके मुताबिक इसमें जागरुकता भी अहम है,जिसमे गैर सरकारी संगठन अहम भूमिका निभा सकते हैं।
विशेष तौर पर ग्राउंड वाटर रिचार्ज का सुझाव देते हुए सिन्हा ने कहा, “ग्राउंडवाटर रिचार्ज पर भी कार्य किए जा सकते हैं। भूगर्भ जल के अधिक इस्तेमाल की वजह से पानी का स्तर नीचे चला गया है एवं दूषित तत्व पानी में मिल रहे हैं। भूगर्भ में जल का स्तर बढ़ाने के लिए भी कारगर कदम उठाए जाने की जरूरत है।”
हालाँकि कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया की यूरेनियम से निजात पाने के लिए, पानी को उबालना नहीं चाहिए। “यूरेनियम युक्त पानी उबालना ठीक नहीं है। डॉक्टर आमतौर पर इसकी सलाह देते हैं क्योंकि उबला हुआ पानी आमतौर पर सेवन के लिए उपयुक्त माना जाता है। यूरेनियम युक्त पानी को उबालने से इसके प्रतिकूल प्रभाव बढ़ सकते हैं। हालांकि पानी को उबालने के बाद छानने से इसके कुछ फायदे हो सकते हैं। केवल एडवांस पानी के फिल्टर ही यूरेनियम से छुटकारा पा सकते हैं,” उन्होंने कहा।
विशेषज्ञों की सलाह: सामाजिक संगठनों को आगे आकर फैलानी होगी जागरूकता
शंखनाद सेंटर फॉर डायलॉग, रिसर्च एंड रिसोर्स डेवलपमेंट, सीवान के निदेशक नवीन सिंह परमार कहते हैं, “आम लोग जो सुबह उठकर रोजी रोटी की जुगाड़ में लगते हैं और दिन भर मेहनत मजदूरी के बाद थक हार कर सोते हैं, उनके पास इतना वक्त नहीं होती कि वे भूगर्भ जल की गुणवत्ता के बारे में सोचें और समझें। यह जिम्मेवारी सामाजिक संस्थाओं, विभिन्न संगठनों, राजनीतिक दलों और सरकारों की है।” उन्होंने कहा जो लोग इन खामियों को समझते हैं, उन्हें आगे आकर इनसे बचाव के उपायों के बारे में न केवल जागरूकता फैलानी चाहिए बल्कि इसके स्थाई समाधान के कारगर उपाय भी किए जाने की जरूरत है।
पीएचईडी विभाग की सफाई
बिहार सरकार के पब्लिक हेल्थ एंड इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट (पीएचईडी) में उत्तर बंगाल मुख्यालय मुजफ्फरपुर में केमिस्ट के पद पर तैनात बृहस्पति यादव के कहा कि पानी में यूरेनियम मिलने की खबरें तो मिली हैं लेकिन इस बावत किसी तरह का कदम उठाने का निर्देश अभी तक सरकार की ओर से हमें नहीं मिला है।”
हालांकि उन्होंने पूर्व में आर्सेनिक मिलने का जिक्र करते हुए कहा, “इसके पहले भी स्वायत्त संस्थाओं द्वारा जांच में पानी में आर्सेनिक मिलने की बात सामने आई थी। तब पीएचईडी डिपार्टमेंट के निर्देश पर उन्होंने जिले की 100 जगहों से पानी के नमूने लेकर राज्य प्रयोगशाला में जांच कराई थी। तब एक केंद्रीय टीम भी आई हुई थी लेकिन जांच में कहीं भी आर्सेनिक की मौजूदगी की पुष्टि नहीं हुई थी।”
उन्होंने आगे कहा, “इस तरह की खबरें जैसे ही संज्ञान में आती हैं, पीएचईडी विभाग सक्रिय हो जाता है। बिहार के आरा, छपरा, भागलपुर जिले जो मूल रूप से गंगा नदी के तट पर बसे हुए हैं, यहां के पानी में आर्सेनिक मिलने की पुष्टि हुई थी, वहां बिना देरी किए सरकार ने नल-जल योजना के तहत वाटर ट्रीटमेंट प्लांट (डब्ल्यूटीपी) स्थापित करवाया है। इसके अलावा बिहार के पठारी क्षेत्र जैसे गया, वहां पानी में फ्लोराइड की अधिकता है। वहां भी लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सरकार ने डब्ल्यूटीपी लगाया है। इसी तरह से कोसी नदी के किनारे के जो क्षेत्र हैं वहां पानी में आयरन की मौजूदगी है और उन क्षेत्रों में भी डब्ल्यूटीपी लगा दिए गए हैं।”
21 नवंबर, 2021 तक भारत सरकार के जल जीवन मिशन – हर घर जल कार्यक्रम के अनुसार बिहार में 88.63 प्रतिशत घरों में नल के पानी की आपूर्ति है। यानी बिहार के 17,220,634 घरों में से 15,262,678 घरों में नल कनेक्शन हैं।
स्वास्थ्य विभाग ने बना रखी है नजर
पानी में यूरोनियम के संबंध में सरकार की तरफ से कोई अधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। लेकिन राज्य स्वास्थ्य विभाग के मंत्री मंगल पांडे के करीबी सूत्रों ने गांव कनेक्शन को बताया कि बिहार के कई जिलों के पानी में यूरेनियम मिलने की खबरें संज्ञान में आई हैं। इस संबंध में पीएचईडी विभाग के साथ संपर्क साधा गया है। फिलहाल निजी संस्थानों द्वारा किए गए शोध की पूरी रिपोर्ट आनी बाकी है और सरकार भी अपने स्तर पर जांच करेगी। उसके बाद ही राज्य सरकार के स्वास्थ्य अथवा अन्य विभागों की ओर से बचाव मूलक कदम उठाए जायेंगे।
ध्यान देने वाली बात है कि बिहार की राजधानी पटना के अलावा बक्सर, भोजपुर, सारण, हाजीपुर, समस्तीपुर, खगड़िया, बेगूसराय, मुंगेर, लखीसराय, भागलपुर और कटिहार में भूगर्भ जल में आर्सेनिक की मौजूदगी की पुष्टि पहले ही हो चुकी है। बिहार सरकार के पीएचईडी विभाग की वेबसाइट पर भी इन जिलों को आर्सेनिक प्रभावित चिह्नित किया गया है। इसके अलावा वेबसाइट के मुताबिक पठारी क्षेत्र यानी भभुआ, सासाराम, औरंगाबाद, गया, नवादा, नालंदा, शेखपुरा, जमुई, बांका और भागलपुर का भूगर्भ जल फ्लोराइड युक्त है। इसके अलावा किशनगंज, अररिया, कटिहार, मधेपुरा, सहरसा, पूर्णिया, सुपौल और खगड़िया जिले के पानी में आयरन सामान्य से अधिक मात्रा में मौजूद है। हालांकि इन जिलों में राज्य सरकार ने स्वच्छ जलापूर्ति के लिए डब्ल्यूटीपी स्थापित किया है ताकि लोगों तक पहुंचने वाला भूगर्भ जल शुद्ध होकर पहुंचे।
पानी में यूरेनियम होने की बात सुनकर सिवान के किसान सोनू कुमार कहते हैं, “जीवन का आधा हिस्सा तो खेतों की मिट्टी में गुजार चुके हैं और ऐसा लगता है जैसे अब बाकी जीवन अस्पतालों में गुजारने होंगे।”