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‘किसान ‘कारोबार’ के लिए करोड़ रुपए तक के लोन दिलाता है जैव ऊर्जा विकास बोर्ड’

"सरसों का भूसा किसी काम नहीं आता। पशु भी उसे नहीं खाते लेकिन हम लोग उसके ठंडल (भूसे) से बॉयोकोल बनवाते हैं जो बिजली घरों और ईंट भट्टों पर बिकता है। इससे किसानों की अतिरिक्त आमदनी होती है।'
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लखनऊ। “हम लोग किसान की मदद वैल्यू चेन मैकेनिज्म यानी उद्ममिता के जरिए करते हैं। किसान खेती करता रहे, उसका पढ़ा लिखा बेटा ट्रेनिंग कर लघु उद्योग लगाए। हम उसके लिए काम करते हैं। बैंक से एक करोड़ तक के लोन की गारंटी भी ली जाती है। ऐसे उद्योगों के लिए लाभार्थी को सिर्फ 10-15 फीसदी मार्जिन मनी लगाना होता है।” उत्तर प्रदेश राज्य जैव ऊर्जा विकास बोर्ड के राज्य समन्वयक पीएस ओझा बताते हैं।

जैव ऊर्जा उद्यम को बढ़ावा देने और पर्यावारण अनुकूल खेती (जिस पर मौसम का असर न पड़े) को बढ़ावा देने और किसानों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए जैव ऊर्जा विकास विकास बोर्ड की स्थापना 2015 में हुई थी। बोर्ड बॉयो एनर्जी को बढ़ावा देने के साथ ही सगंध पौधों की खेती पर काम कर रहा है।

राज्य समन्वयक पीएस ओझा कहते हैं, “आज कल पराली बहुत चर्चा में है लेकिन ये सिर्फ एक फसल की बात है। हमारा संस्थान 17 प्रमुख फसलों के बॉयोमास (अवशेष) पर काम कर रहा है। जैसे सरसों का भूसा किसी काम नहीं आता। पशु भी उसे नहीं खाते लेकिन हम लोग उसके ठंडल (भूसे) से बॉयोकोल बनवाते हैं जो बिजली घरों और ईंट भट्टों पर बिकता है। इससे किसानों की अतिरिक्त आमदनी होती है।’

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सरसों के भूसे बनाया जाता है बॉयो कोल, जिसका ईंट भट्टों और बिजली संयंत्रों में होता है इस्तेमाल। फोटो- सुयशसरसों के भूसे बनाया जाता है बॉयो कोल, जिसका ईंट भट्टों और बिजली संयंत्रों में होता है इस्तेमाल। फोटो- सुयश

वो आगे बताते हैं, “हमने लोगों को बॉयोमास बनाने के लिए यूनिट (फैक्ट्री) लगाई है जो किसान से ये भूसा 180 रुपए क्विंटल में खरीद लेते हैं। ईंट भट्टों के लिए सरकार ने नियम बना रखा है कि 20 फीसदी बॉयो कोल का इस्तेमाल करेंगे। इसके साथ ही अब तो केंद्र सरकार के थर्मल पावर स्टेशनों में भी 5 से 20 फीसदी बॉयो कोल का इस्तेमाल हो रहा है।’

बॉयो कोल के अलावा जैव ऊर्जा बोर्ड किसानों को बॉयो गैस और बॉयो सीएनजी प्लांट लगाने में भी मदद करता है। पीएस ओझा कहते हैं, “जिस किसान के पास 2 पशु हैं अगर वो छोटा बॉयोगैस लगा ले तो 10-15 परिवार के लोगों की रसोई गैस का इंतजाम हो जाएगा और तीन साल में उसके खेत भी जैविक हो जाएंगे। इसके अलावा हम लोग इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के साथ मिलकर यूपी में 650 सीएनजी पंप लगाने की योजना पर काम कर रहे हैं। कानपुर के सरसौल में एक प्लांट चालू भी है।’ संस्था के मुताबिक पिछले ढाई-तीन वर्षों में विभिन्न योजनाओं के तहत 150 बायो गैस संयंत्र स्थापित किए जा चुके हैं। और बाकी सभी योजनाओं के माध्यम से 5500-6000 किसानों को लाभ पहुंचाया गया है।

पिछले दिनों लखनऊ में आयोजित कृषि कुंभ में जैव ऊर्जा विकास बोर्ड ने अपनी विभिन्न योजनाओं और उनके लाभार्थियों के स्टॉल लगवाए थे। जिन पर तीनों दिन किसानों की खासी भीड़ लगी रही थी। कानपुर के सरसौल में विशाल अग्रवाल ने 5000 घन मीटर का बॉयो सीएनजी प्लांट लगा रखा है। कृषि कुंभ में विशाल अग्रवाल ने बताया, “बॉयो सीएनजी वो कंपोस्ट और खाद भी बनाने लगे हैं, जिसकी किसानों में काफी मांग रहती है।’

बॉयो एनर्जी के साथ जैव विकास बोर्ड किसानों को लेमनग्रास, सतावरी और सहजन की खेती के लिए भी प्रेरित करता है। यानि वो खेती जिन पर मौसम का ज्यादा फर्क न पड़े। पीएस ओझा बताते हैं, “यूपी के 14 जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के रुप में सहजन की खेती हो रही है। अगले साल इसे 1000 एकड़ में पहुंचाएंगे, ये मुख्यमंत्री का महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है। सहजन में लोगों की आर्थिक के साथ शारीरिक सेहत भी सही करेगा क्योंकि मानव शरीर को जो 20 अमीनो एसिड चाहिए होते हैं, उनमें से 12 सहजन में पाए जाते हैं।’  

पीएस ओझा,  राज्य समन्वयक, उत्तर प्रदेश राज्य जैव ऊर्जा विकास बोर्डपीएस ओझा,  राज्य समन्वयक,
उत्तर प्रदेश राज्य जैव ऊर्जा विकास बोर्ड

किसानों की मदद कैसे करता है बोर्ड? इस सवाल के जवाब में बोर्ड के संयोजक और सदस्य संयोजक ओझा कहते हैं, ऐमोजोन या स्नैपडील के पास खेत या फैक्ट्री नहीं है। वो किसानों से उत्पाद लेकर बेचती हैं। इसलिए हम लोगों ने किसानों की फार्मर प्रॉड्यूसर कंपनियां बनवा दीं। उन्हें लाइसेंस दिलाया। नाबार्ड की मदद से प्रदेश के 44 जिलों में 225 एफपीओ बनाए जा रहे हैं। जिसनें 17 का रजिस्ट्रेशन भी हो चुका है।’ 

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कृषि कुंभ में मौजूद किसानों को समझाते हुए वो इसकी सरल प्रक्रिया बताते हैं। किसान जो भी काम करना चाहता है। हम सबसे पहले उसका प्रशिक्षण दिलाते हैं। फिर किसानों का एक कलस्टर बनाकर कंपनी एक्ट में रजिस्ट्रेशन करवा देते हैं। किसानों को एफपीओ भी बनवा देते हैं, जिसका ट्रेनिंग से लेकर रजिस्ट्रेशन तक पूरा खर्च नाबार्ड देता है।’

वो आगे बताते हैं, “अगर पढ़े लिखे किसान होते हैं तो कंपनी एक्ट में ले जाते हैं वर्ना उन्हें सहकारी संस्था में दर्ज करवाते हैं, क्योंकि इससें कागजी कार्रवाई कम होती है।’

एनएच 24 बनेगा देश का पहला ग्रीन हाईवे

जैव ऊर्जा विकास बोर्ड ने राज्य सरकार के साथ ही कई केंद्रीय एजेंसियों और विभागों से भी हाथ मिलाया है। इनमें सबसे बड़ी संस्था नाबार्ड है, जबकि नेशनल कॉपरेटिव डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएसडीसी), प्रोसेज एंड प्रोडक्शन डेवलवमेंट सेंटर, सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र (एफएफडीसी) भी शामिल हैं। साथ ही केंद्र सरकार का नेफेड यानि भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ मर्यादित ने भी यूपी में काम शुरु किया है। पीएस ओझा बताते हैं, नेफेड ने हमारे साथ पश्चिमी यूपी में 5 प्रेस मेड बॉयो सीएनजी स्टेशन लगाने के लिए करार किया है। जिसमें वो खुद 100-125 करोड़ का निवेश कर रहे हैं। ऐसे में लखनऊ-दिल्ली हाईवे-24 जल्द ही देश का पहला ग्रीन हाईवे होगा। क्योंकि सीतापुर, बरेली और हापुड के सीएनजी स्टेशनों के प्रोजेक्ट पास हो चुके हैं बाकी की प्रक्रिया जारी है।  

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