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जानिए कम खर्च में धान की खेती में नाइट्रोजन की कमी को कैसे पूरा करता है नील-हरित शैवाल

धान की खेती करने वाले किसान यूरिया पर हज़ारों रुपए खर्च देते हैं, जबकि इनकी कमी पूरा करने का एक आसान और सस्ता तरीका नील-हरित शैवाल होता है।
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अगर आप धान की खेती करते हैं तो ये जानकारी आपके बहुत काम की है।

धान की खेती करने वाले किसान यूरिया पर हज़ारों रुपए खर्च देते हैं, जबकि इनकी कमी पूरा करने का एक आसान और सस्ता तरीका नील-हरित शैवाल होता है। 50 से 100 रुपए में नील-हरित शैवाल के इस्तेमाल से किसान अपने खेत में नाइट्रोजन की कमी को पूरा कर सकते हैं।

किसानों को खेती से जुड़ी नई जानकारी देने और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर हफ्ते पूसा समाचार जारी करता है। इस हफ्ते आईएआरआई के सूक्ष्म जीव विज्ञान के वैज्ञानिक डॉ सुनील पब्बी नील-हरित शैवाल के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।

डॉ सुनील के मुताबिक ये देखा गया है कि ये जीवाणु खाद 20-25 किलो तक नाइट्रोजन उपलब्ध कराते हैं, जिससे किसान प्रति हेक्टेयर 40 से 45 किलो यूरिया की बचत कर सकते हैं। नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के साथ ही ये भूमि सुधार का भी काम करते हैं, ये मिट्टी की कार्बनिक शक्ति के साथ उसकी जल अवरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं। इसके साथ ही ये जीवाणु वृद्धि में मदद करते हैं, जिससे किसान 10 से 15 प्रतिशत अधिक उत्पादन ले सकते हैं। इसकी सबसे अच्छी बात होती किसान इसे अपने खेत में ही बना सकते हैं।

नील-हरित शैवाल बनाने की प्रक्रिया

इसको बनाने के लिए किसान अपने खेत के पास में किसी खुली जगह जहाँ दिन भर धूप आती हो वहाँ एक गड्ढा बना लें। उस गड्ढे की लंबाई दो मीटर, चौड़ाई एक मीटर और गहराई आठ से दस इंच रखनी चाहिए। उस गड्ढे में पॉलीथीन शीट बिछा देनी चाहिए, जिससे नीचे मिट्टी में पानी न चला जाए। उस गड्ढे में प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से तीन-चार किलो खेत की छनी हुई मिट्टी मिलानी चाहिए।

इसके बाद उसमें पानी भर देना चाहिए, जब पानी छह इंच तक हो जाए तब उसमें 100 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट मिलाना चाहिए, क्योंकि गड्ढे में जमा पानी से मच्छर पनपने की स्थिति हो जाती है, इसलिए उसमें पाँच मिली मेलाथियान डालकर सबको अच्छे से मिला देना चाहिए।

जब सब कुछ अच्छे से मिल जाए और मिट्टी गड्ढे में बैठ जाए तब उसमें 100 ग्राम नील हरित शैवाल को पानी के ऊपर छिड़क देना चाहिए। इसे ऐसे ही खुले में छोड़ देना चाहिए।

हर सुबह किसानों को इसे देखते रहना चाहिए, अगर पानी कम होता है तो उसमें फिर से पानी भर देना चाहिए। लगभग छह-सात दिनों में आप देखेंगे कि उस गड्ढे में नील-हरित शैवाल बढ़ने लगते हैं और उनकी एक परत बनने लगेगी।

10 से 12 दिनों के बाद वो परत जब मोटी हो जाए तब उसमें पानी देना छोड़ दें और उसे सूखने दें। सूखने के बाद उसमें पपड़ी तैयार हो जाती है उसे निकालकर एक पॉलिथीन बैग में रख लें। अब फिर से उस खाली गड्ढे में पानी भरकर उसमें 100 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और पाँच मिली मेलाथियान दें।

इस तरह से किसान एक गड्ढे से चार-पाँच नील हरित शैवाल की पैदावार ले सकते हैं। 

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