Gaon Connection Logo

तेजी से बढ़ रहा है कैंसर, इन 10 बदलाव से कम कर सकते हैं इसका जोखिम

कैंसर के मामले देश में तेजी से बढ़ रहे हैं, इसकी बड़ी वजह है बदलती लाइफस्टाइल, पर्यायवरण में बदलाव, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ। विशेषज्ञों का कहना है इससे बचने का कोई निश्चित तरीका नहीं है, लेकिन जीवन में सिर्फ 10 बदलाव भी कैंसर के जोखिम को कम कर सकते हैं।
#Cancer

भारत में रहने वाले लोग तेजी से कैंसर की चपेट में आ रहे हैं। हालही में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक कैंसर की बीमारी ख़ामोशी से लोगों को अपना शिकार बना रही है, जिससे उन्हें इससे बचाव का मौका कम मिल पा रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ सुभाष पालेकर कहते हैं अगर जल्द ही इस तरफ कारगर कदम नहीं उठाए गए, तो हालात विस्फोटक हो सकते हैं; हमें अपनी जीवन शैली और खानपान को तुरंत ठीक करना होगा। इसके लिए संतुलित आहार,नियमित एक्सरसाइज, सुबह की सैर,तनाव कम लेना, तंबाकू से दूरी,शराब कम पीना, डिब्बा बंद फ़ूड नहीं लेना, प्रदूषित वातावरण से दूर रहना और प्राकृतिक खेती को अनिवार्य करना होगा। प्लास्टिक बोतलों में बंद पानी या जूस भी सेहत के लिए ठीक नहीं हैं।

नई रिपोर्ट में पाया गया है कि वर्तमान में, हर तीन व्यक्तियों में से एक भारतीय प्री-डायबिटिक है, तीन में से दो प्री-हाइपरटेंसिव हैं, और 10 में से एक डिप्रेशन से जूझ रहा है। इसके अलावा कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और मानसिक स्वास्थ्य विकार जैसी पुरानी स्थितियाँ अब इतनी प्रचलित हैं कि वे गंभीर स्तर तक पहुँच गई हैं। देश में गैर संक्रमक बीमारियाँ बढ़ रही है और युवा इसकी चपेट में अधिक आ रहे हैं। सोचिए एक तिहाई भारतीय प्री डायबिटिक हैं; यानी वो कभी भी डायबिटीज की चपेट में आ सकते हैं। वहीं दो तिहाई भारतीय प्री हाइपरटेंशन की स्टेज पर हैं, यानी वो हाइपरटेंशन में आने ही वाले हैं।

मैक्स हेल्थ केयर के निदेशक डॉक्टर के सी नैथानी हैरानी जताते हैं कि हर साल हम ऐसी रिपोर्ट पढ़ते और सुनते हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस सफलता हाथ नहीं लग पा रही है। उनका मानना है कि बड़े नतीजे के लिए इसे महामारी की तरह गंभीरता से लेने की ज़रूरत है। सिर्फ सरकार या पर्यावरण को कोसने से कुछ नहीं होगा, इसके लिए सभी को जिम्मेदारी उठानी होगी।

हर साल कैंसर के दस लाख से अधिक नए मामले सामने आने के बावजूद, भारत की कैंसर दर अभी तक डेनमार्क, आयरलैंड और बेल्जियम जैसे देशों से आगे नहीं निकल पाई है, जो दुनिया में सबसे अधिक कैंसर दर दर्ज करते हैं। जहाँ अमेरिका में हर 100,000 लोगों में से 300 लोग कैंसर के शिकार होते हैं, वहीँ भारत में ये आकड़ा 100 है। लेकिन यह जल्द ही बदल सकता है, जिसे कुछ विशेषज्ञ “महामारी विज्ञान संक्रमण” कहते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में भारत में कैंसर के 14 लाख नए मरीज मिले थे, लेकिन ये आकड़ा 2025 तक 15 लाख 70 हज़ार तक पहुँच सकता है और 2040 तक 20 लाख कैंसर के नए मामले सामने ला सकता है।

रासायनिक कीटनाशक भी है बीमारी की वजह?

डॉ सुभाष पालेकर कहते हैं, हम जो खेतो में आँख बंदकर ऊगा रहे हैं और खा रहे हैं वो बीमार करने के लिए काफी है; जबतक रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर प्राकृतिक खेती की तरफ हम नहीं जाएंगे अगली पीढ़ी के लिए स्वस्थ जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा -“जब मैं कृषि की पढ़ाई कर रहा था तब सिखाया गया कि अधिक उत्पादन के लिए रासायनिक खाद ज़रूरी है, लेकिन एक बार जब अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में सतपुड़ा के मेलघाट गया तो वहाँ देखा बिना रासायनिक खाद के पेड़ फलों से कैसे लदे हैं; वापस आकर जब अपने प्राचार्य से सवाल किया तो वह जवाब नहीं दे पाए; इसके बाद मैंने अपने खेतों में काम करना शुरू कर दिया, फिर पिता जी की पारंपरिक खेती को समझा, गोबर की खाद से खेती करने पर क्या लाभ हो सकते हैं, इस पर काम शुरू किया; 1985 से 1988 तक अपने खेतों में काम किया जिसके परिणाम सामने आने लगे।”

उन्होंने आगे कहा – “इस समय तीन प्रकार की खेती हो रही है रासायनिक, ऑर्गेनिक और प्राकृतिक; मैंने सबसे पहले रासायनिक, आर्गेनिक और प्राकृतिक का तुलनात्मक अध्ययन किया; प्राकृतिक खेती में बाकी दोनों के मुकाबले कम लागत से उत्पादन अधिक हो रहा था, प्राकृतिक खेती अधिक टिकाऊ है क्योंकि वह प्रकृति पर निर्भर है; इससे ओलावृष्टि, बारिश और सूखे में अधिक नुकसान नहीं होता है क्योंकि खेती प्रकृति के अनुरूप ढल जाती है; किसान भाई अगर इस तरफ ध्यान दें तो नुकसान कम होगा, लागत भी कम आएगी, सबसे बड़ी बात इसमें ज़हरीला कीटनाशक इस्तेमाल नहीं होता, यानी सेहत के लिए भी ठीक हैं।”

सवाल ये है कि जब अधिकांश विशेषज्ञ सेहत से खिलवाड़ को गंभीर ख़तरा बता रहे हैं तो इससे निपटने में हम फेल क्यों हैं?

प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक डॉक्टर एसबी मिश्रा का कहना है कि गाँव में हजारों साल से चटनी, मुरब्बा, अचार बनते आए हैं, और गाँव के लोग खाते भी थे, लेकिन किसी को कैंसर नहीं होता था; गाँव में हज़ारों साल से भारत के लोग डली वाला नमक खाते थे, और कुछ तराई के इलाकों को छोड़कर किसी को घेंघा नहीं होता था, लेकिन नए जमाने में व्यापारिक बुद्धि लेकर कुछ लोगों ने देशी नमक में आयोडीन की कमी से जोड़ा, तो पिसा हुआ नमक गाँव-गाँव तक पहुँच गया; गाँव की महिलाओं को डली वाले नमक की मात्रा भोजन में डालने का अनुमान तो था, लेकिन पाउडर नमक कितना डालना है, इसका अनुमान नहीं था। हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते हैं कि देश के लोगों में बढ़ती रक्तचाप की बीमारी की ये भी वजह हो सकती है। मधुमेह की बीमारियाँ मुख्य रूप से आहार और जीवन शैली का नतीजा है; वास्तव में कैंसर जैसी बीमारियों का खाद्य पदार्थों के प्रिजर्वेटिव और कुछ दवाइयों ने भारत को मधुमेह की राजधानी बना दिया है।

कारगर हो सकते हैं बचाव के तरीके

देश में बढ़ती बीमारियों को लेकर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भी गंभीर चिंता व्यक्त की है। आईसीएमआर ने कहा है कि देश में 56 फीसदी बीमारियों के लिए आहार में गड़बड़ी प्रमुख कारण हो सकती है। आईसीएमआर के तहत काम करने वाले संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन की तरफ से जारी डाइटरी गाइडलाइन्स फॉर इंडियंस -2024 में बताया गया है कि हेल्दी लाइफस्टाइल यानी संतुलित खाना और फिजिकल एक्टिविटी अपना कर समय से पहले होने वाली ज़्यादातर मौतें रोकी जा सकती हैं, बहुत सी बीमारियाँ से बच सकते हैं।

गाइडलाइंस के अनुसार खाने में अच्छी क्वालिटी का प्रोटीन शामिल करना चाहिए। जैसे- कई तरह की दालें, राजमा, लोबिया, चना, दूध, मांस, मछली और अंडे प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं। सेहत बनाने के लिए प्रोटीन सप्लीमेंट लेने से बचना चाहिए। साथ ही नमक और चीनी का इस्तेमाल कम करने को कहा है।

एनआईए ने अल्ट्रा प्रोसेस्ड-फूड यानी औद्योगिक रूप से तैयार की गई खाने की चीजों से परहेज करने की सलाह दी है। ये भी कहा है कि पैकेट वाले खाने की कोई चीज खरीदते समय उसके फूड लेबल्स को चेक करना चाहिए। डाइट में चीनी कुल एनर्जी इनटेक के 5 प्रतिशत से कम होनी चाहिए। बैलेंस्ड डाइट में अनाज और बाजरा से 45 प्रतिशत से अधिक कैलोरी और दालों, बीन्स और मीट से 15 प्रतिशत तक कैलोरी नहीं मिलनी चाहिए। बाकी कैलोरी नट्स, सब्जियों, फलों और दूध से अपनी डाइट में शामिल करें।

जानकारों का कहना है कि देश में धीरे-धीरे कैंसर के बढ़ते मामलों की वजह हमारे देश का विकासशील होना भी है। हम देश में प्रदूषण होने दे रहे हैं, जबकि पश्चिमी देश विकसित हैं और उन्होंने अपने पर्यावरण को बचाना शुरू कर दिया है; लेकिन हमारे यहाँ प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।

विकासशील देश होने के कारण लोगों में कॉम्पिटिशन बढ़ रहा है और उनका प्रेशर बढ़ रहा है। इस वजह से देर से शादियाँ हो रही हैं, बच्चे देर से हो रहे हैं। माँ अपने बच्चों को दूध नहीं पिला पा रही हैं और इन सब चीजों का असर हमारी सेहत पर हो रहा है। इससे मॉलीक्यूलर लेवल पर बॉडी कमजोर हो रही है। रोगों से लड़ने की क्षमता शरीर में कम हो रही है।

More Posts

मलेशिया में प्रवासी भारतीय सम्मेलन में किसानों की भागीदारी का क्या मायने हैं?  

प्रवासी भारतीयों के संगठन ‘गोपियो’ (ग्लोबल आर्गेनाइजेशन ऑफ़ पीपल ऑफ़ इंडियन ओरिजिन) के मंच पर जहाँ देश के आर्थिक विकास...

छत्तीसगढ़: बदलने लगी नक्सली इलाकों की तस्वीर, खाली पड़े बीएसएफ कैंप में चलने लगे हैं हॉस्टल और स्कूल

कभी नक्सलवाद के लिए बदनाम छत्तीसगढ़ में इन दिनों आदिवासी बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलने लगी है; क्योंकि अब उन्हें...