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चंदा मामा के पास क्यों जा रहा है चंद्रयान -3, जानिए कितने अनसुलझे सवालों का मिलेगा इससे जवाब?

भारत के चंद्रयान - 3 के चाँद पर उतरते ही वैज्ञानिकों को कई बड़ी जानकारी मिलने वाली है। क्या है वो? और कैसे पूरा हो रहा है चाँद के दक्षिणी छोर पर उतरने का ये मिशन इसी पर है ये रिपोर्ट।
chandrayaan-3

मंगल ग्रह की तरह चाँद को लेकर भी दुनिया में तमाम रहस्यमयी बातें और किस्से हैं। कोई कहता है ये एलियन द्वारा बनाया गया एक आर्टिफिशियल उपग्रह है, तो कोई कहता है चंद्रमा की रचना एक बड़ी स्पेसशिप जैसी है। यही नहीं इस बात को लेकर विवाद भी है कि 20 जुलाई 1969 में अमेरिकी स्पेस शटल अपोलो- 11 चाँद पर उतरा भी था या नहीं ? उस दौर में लोगों ने कहा, चाँद पर वैज्ञानिक नील आर्मस्ट्रांग ने कदम रखा ही नहीं। विवाद को जन्म देने वाले लोगों ने इसके पीछे अपने-अपने तर्क दिए। चाँद की जिस लैंडिंग का प्रसारण पहली बार जुलाई, 1969 में लोगों ने देखा उस फुटेज पर भी सवाल उठे।

भारत का चंद्रयान -3 अब देगा दुनिया को ऐसे सारे सवालों के जवाब।

चाँद पर नयी ख़ोज के लिए भारत का चंद्रयान -3 आंध्र प्रदेश के श्रीहरीकोटा से पहुँच रहा है। इस मिशन की सफलता के लिए इसबार इसरो ने हर पहलू पर ध्‍यान दिया है। उसने चंद्रयान-2 मिशन की गलतियों से काफी सबक लिया है जिसे वो किसी भी हाल में दोहराना नहीं चाहेगा। इसलिए पूरे एहतियात के साथ इस मिशन को प्‍लान किया गया है।

इसरो के चंद्रयान -3 के वहाँ उतरने से उन अनसुलझे सवालों और अफवाहों का भी जवाब मिल सकेगा जिसमें कहा जाता है कि चाँद पर अमेरिकी वैज्ञानिक नील आर्मस्ट्रांग, बज़ एल्ड्रिन और माइकल कोलिंस के पहुंचते समय उनके अपोलो- 11 शटल (रॉकेट) के करीब “अनआइडेंटिफाइड फ्लाईग ऑब्जेक्ट” दिखा था । लेकिन उस रहस्य से पर्दा नहीं उठा। क्या ये सारी बातें सच हैं ? या महज़ कहानियाँ ? तीन बड़े देश अपने स्पेस शटल चाँद पर भेज चुके हैं, लेकिन चाँद को जानने और समझने का सिलसिला अब तक पूरा नहीं हो सका है।

इसलिए चाँद पर जा रहा है चंद्रयान -3

इसरो के मुताबिक़ चंद्रयान -3 को चाँद पर भेजने के पीछे तीन बड़े मकसद है। पहला लैंडर की चाँद पर सुरक्षित सॉफ्ट लैंडिंग। दूसरा चाँद की सतह पर रोवर का चलना और तीसरा कुछ अहम वैज्ञानिक परीक्षण करना। अगर इन तीनों काम में चंद्रयान -3 सफल रहा तो बेशक भारत सफलता का नया इतिहास लिखेगा।

सॉफ्ट लैंडिंग का अर्थ है चन्द्रमा की सतह पर शटल का सुरक्षित उतरना और उसके बाद रोवर द्वारा उन सभी जानकारी को वहाँ से भेजना जो वैज्ञानिकों को चाहिए।

दुनिया के तमाम बड़े देश आज वर्ल्ड पावर बनने के बाद अब स्पेस पावर की होड़ में जुट गए हैं। इसकी एक वजह ये भी है कि चन्द्रमा दूसरे ग्रहों के मुकाबले पृथ्वी के काफ़ी करीब है। पृथ्वी से चाँद की दूरी 3 लाख 84 हज़ार 4 सौ किलोमीटर है। अगर वैज्ञानिकों को यहाँ सफलता मिलती है तो दूसरे ग्रहों पर जाना कुछ आसान हो सकता है। वैज्ञानिक तो यहाँ तक कहते हैं कि चाँद पर अगर सफलता मिली तो भविष्य में किसी भी योजना में बड़ी मदद मिल सकेगी। जैसे कॉलोनी बनाना हो, सेंटर खोलना हो या स्पेस टूरिज्म को भी इससे बढ़ावा मिल सकता है।

पहली बार भारत ने 14 नवंबर 2008 को चंद्रयान -1 चाँद की सतह पर उतारा था। यह देश के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र में बड़ी क़ामयाबी थी। इससे पहले अमेरिका, रूस और जापान ही ऐसी सॉफ्ट लैंडिंग कर पाए थे। चंद्रयान -1 30 अगस्त 2009 तक चँद्रमा के चक्कर लगाता रहा। चंद्रयान में मून इम्पैक्ट प्रोब (एमआईपी) डिवाइस, जिसका वजन 29 किलोग्राम था, लगी हुई थी। इसी डिवाइस ने चाँद की सतह पर पानी की ख़ोज की थी। जिसके लिए अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने भी भारत की तारीफ़ की थी।

इसी साल यानी मार्च 2023 में जापानी स्टार्टअप आईस्पेस इंक ने ‘ हकुतो-आर मिशन 1 ‘ चाँद पर भेजा था लेकिन सफ़ल नहीं हुआ। कम्पनी ने शटल से संपर्क टूटने के छह घंटे बाद इस बात की घोषणा की। ‘आईस्पेस’ कम्पनी के लिए ये घटना बेहद निराशाजनक थी क्योंकि वह करीब साढ़े चार महीने से इस मिशन पर काम कर रहा था।

भारत के चंद्रयान-2 लॉन्च करने से कुछ वक्त पहले यानी साल 2019 में ही इज़राइल ने भी अपना स्पेसक्राफ्ट ‘बेरेशीट’ चाँद पर भेजा था। हालाँकि, वह मिशन सफल नहीं हो सका। स्पेसक्राफ्ट लैंड करते वक्त क्रैश हो गया। यह इज़राइल का पहला प्राइवेट फंड स्पेसक्राफ्ट था। इज़रायल की एक नॉन प्रॉफिट कंपनी ने इस स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च किया था। अमेरिका की एक कंपनी आर्क मिशन फाउंडेशन भी इस प्रॉजेक्ट से जुड़ी थी। इसे इज़रायल की प्राइवेट कंपनी स्पेस आईएल ने अमेरिकी कारोबारी एलन मस्क की कंपनी ‘स्पेस एक्स’ के फाल्कन-9 रॉकेट से रवाना किया था। शटल ने चँद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश तो किया लेकिन सतह पर नहीं उतर सका।

क्या है इस बार ख़ास?

इसबार भारत का चंद्रयान चाँद के दक्षिणी ध्रुव में उतरेगा, जहाँ अभी तक किसी देश का शटल नहीं पहुँचा है। वहाँ ज़्यादातर क्रेटर यानी ज्वालामुखी का कुंड है। धूप के वहाँ नहीं पहुंचने से अँधेरा रहता है। वैज्ञानिकों के लिए हमेशा से ये चुनौती रहा है क्योंकि पृथ्वी से दक्षिणी छोर दिखाई नहीं देता है। क्रेटर के कारण ही वहाँ पानी की सम्भवना जताई जाती रही है।

चंद्रयान- 3 की ख़ासियत है कि इसे पूरी तरह इसरों के वैज्ञानिकों द्वारा देश में तैयार किया गया है। वह भी बहुत कम बज़ट में। मीडिया रिपोर्ट की माने तो हॉलीवुड की फिल्म में जितना पैसा लगता है उससे भी 30 फ़ीसदी कम रकम में इसे तैयार किया गया है। मौज़ूद संसाधनों में चंद्रयान- 3 को तैयार कर लेना किसी भी दूसरे देश के लिए मिसाल है। बड़ी बात ये है कि चंद्रयान- 3 में उसी ऑर्बिटर की मदद ली जा रही है जो चंद्रयान- 2 के समय से ही चँद्रमा की कक्षा में चक्कर लगा रहा है।

इसरो ने इसे बनाने और मिशन को पूरा करने में सिर्फ़ 651 करोड़ का बज़ट रखा है जो दूसरी स्पेस एजेंसियों के मुकाबले काफ़ी कम है ।

इसबार इसरो की कोशिश है कि मिशन में गलती की गुंजाइश न के बराबर रहे। लैंडर को भी अलग से टीटीसी यानी ट्रैकिंग, टेलीमेट्री और कमांड एंटीनों से लैस किया गया है।

चंद्रयान- 2 के तीन हिस्से थे। पहला ऑर्बिटर, दूसरा लैंडर और तीसरा रोवर। पिछली बार भारत का चाँद मिशन भले सफल नहीं हो सका हो लेकिन लैंडर चन्द्रमा की कक्षा में ही है। उसी ऑर्बिटर का इस्तेमाल चंद्रयान- 3 में होने से ख़र्च कम हो गया।

आंध्र प्रदेश के श्रीहरीकोटा में सतीश धवन सेंटर से इसे छोड़े जाने के बाद से चाँद तक इसके पहुँचने का सफ़र आसान नहीं है। इसे लॉन्चर यानी रॉकेट एल वी एम -3 के ज़रिये भेजा जा रहा है। वहाँ तक इसे पहुँचने में क्रायोजनिक इंजन ताकत देता है। इसकी तकनीक बेशक पेंचीदा है लेकिन इसरो को इसमें महारथ हासिल है।

पिछली बार चंद्रयान -2 में ये गलती हो गई थी कि इसरो ने लैंडिंग से पहले लैंडिंग एरिया की इमेज को लेकर प्‍लान किया था। फिर इसके बाद की कक्षा में लैंडिंग की कोशिश की गई थी। तब लैंडर ने थोड़ा ज़्यादा जोर दे दिया था। यह सीमा के अंदर ही था। वैज्ञानिकों के मुताबिक अंतिम चरण में तस्‍वीरें और करेक्‍शन करने के लिए स्‍पेसक्राफ्ट का स्थिर होना बहुत ज़रूरी है।

इसबार इसरो की कोशिश है कि मिशन में गलती की गुंजाइश न के बराबर रहे। लैंडर को भी अलग से टीटीसी यानी ट्रैकिंग, टेलीमेट्री और कमांड एंटीनों से लैस किया गया है।

कौन हैं चँदा मामा?

विज्ञान की नज़र में चन्द्रमा पृथ्वी का अकेला प्राकृतिक उपग्रह है। यह सौर मंडल का पाँचवां, सबसे बड़ा प्राकृतिक उपग्रह है। इसका आकार क्रिकेट बॉल की तरह गोल है। और यह ख़ुद से नहीं चमकता बल्कि सूर्य की वज़ह से प्रकाशित होता है। ये आकाश में अकेला दूधिया डिस्क की तरह दिखता है।

लंबे समय तक वैज्ञानिकों को लगा कि चँद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है, लेकिन तमाम शोध अब कहते हैं कि चँद्रमा पर वायुमंडल है, जो काफी पतला है। इसमें हीलियम, आर्गन, नियॉन, अमोनिया, मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड शामिल हैं। इसमें सोडियम और पोटेशियम भी होते हैं, जो आमतौर पर पृथ्वी, शुक्र या मंगल के वायुमंडल में गैसों के रूप में नहीं पाए जाते हैं।

भारत में चाँद को मामा का दर्ज़ा मिला हुआ है। इसके पीछे धार्मिक, पौराणिक और भौगोलिक कारण भी हो सकता है। धार्मिक वज़हों से देखे तो चाँद को लक्ष्मी का भाई माना गया है। लक्ष्मी को माँ के रूप में पूजने वाले देश में उनके भाई को मामा कहना स्वाभाविक है। भौगोलिक कारण की बात करें, तो यह धरती का अकेला उपग्रह होने की वज़ह से पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है। इस लिहाज़ से एक भाई या बहन के रिश्ते को देखें, तो भाई भी अपनी बहन के आगे-पीछे खेलते-कूदते घूमता रहता है। ऐसे में चाँद के धरती का चक्कर लगाने के गुण को भाई-बहन के रिश्ते से जोड़ दिया गया और धरती को माता कहने की वज़ह से चाँद को मामा बोला जाने लगा।

वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रयान -3 अंतरिक्ष के क्षेत्र में अर्थव्यवस्था और विकास को बढ़ावा देने के साथ 600 अरब डॉलर के उद्योग में भारत की हिस्सेदारी में सुधार भी कर सकेगा जो अभी सिर्फ 2 फीसदी है।

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