धान की सीधी बुवाई करें या फिर रोपाई, विशेषज्ञ से समझिए क्या है दोनों में अंतर ?

विशेषज्ञ किसानों को सीधी बुवाई की सलाह दे रहे हैं, लेकिन इसके बारे में किसानों के मन में अभी भी कई सवाल हैं। बात पते की में आज ऐसे ही सवालों के जवाब हैं।

Shani Kumar SinghShani Kumar Singh   3 Jun 2023 12:19 PM GMT

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धान की सीधी बुवाई एक ऐसी तकनीक है, जिसमें बिना धान की नर्सरी तैयार किए हम सीधे बीज़ की बुवाई करते हैं। जबकि नर्सरी विधि में पहले बीज़ से नर्सरी तैयार की जाती है, उसके 20-25 दिन बाद पौधों को उखाड़कर रोपाई की जाती है।

सीधी बुवाई तकनीक में 25-30 प्रतिशत तक कम पानी लगता है। जबकि रोपण विधि में खेत में चार-पाँच सेमी पानी भरा होना चाहिए।

सीधी बुवाई और रोपण विधि में पैदावार एक समान होती है, लेकिन सीधी बुवाई में रोपण विधि की तुलना में कम समय लगता है।

अगर आप भी सीधी बुवाई करना चाहते हैं तो 20 जून तक कर लें। क्योंकि इसके बाद अगर बारिश हो गई तो खेत में नमी आ जाएगी। इससे बुवाई ठीक तरीके से नहीं हो पाएगी।


सीधी बुवाई के लिए किसानों को कुछ ख़ास किस्मों का चुनाव करना चाहिए। इन किस्मों में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित पीआर 126, पूसा संस्थान द्वारा विकसित पूसा बासमती 1401, पूसा बासमती 1728 और पूसा बासमती 1886 शामिल हैं। ख़ास बात ये है कि पूसा बासमती 1847 (प्रतिरोधक क्षमता, जीवाणु झुलसा रोग/झोंका ब्लास्ट रोग) और पूसा बासमती 1885 पूसा बासमती 1886 (पत्ती के झौंका झुलसा रोग के रोधी) किस्में हैं।

सीधी बुवाई में 40-50 किलो बीज़ प्रति हेक्टेयर लगता है, जबकि 30-35 किलो बीज़ रोपण विधि में लगते हैं। ऐसे में कह सकते हैं कि सीधी बुवाई में ज़्यादा बीज लगता है।

सीधी बुवाई करने के लिए किसान भाई पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित लकी सीड ड्रिल का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके साथ ही ज़ीरो सीड ड्रिल का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

यही नहीं कुछ किसान छिटकवा विधि से परंपरागत तरीके से भी धान की बुवाई कर सकते हैं।

अगर सिंचाई की बात करें तो रोपण विधि में 25-30 सिंचाई की जरूरत पड़ती है, जबकि सीधी विधि में 15-18 बार सिंचाई करनी होती है।

कभी भी बलुई मिट्टी में सीधी बुवाई न करें, इसके लिए हमेशा दोमट मिट्टी वाले खेत में ही बुवाई करें।

सीधी बुवाई करने पर रोपण विधि की तुलना में 20-25 दिन पहले फ़सल तैयार हो जाती है। ऐसे में किसान फ़सल काटकर मटर और आलू जैसी फ़सलों की बुवाई कर सकते हैं।

(लेखक चंद्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर के कृषि प्रसार विभाग में विशेषज्ञ हैं)

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