बात चावल की हो रही हो वो भी हिंदुस्तान में, फिर तो शुरुआत बंगाल से ही की जानी चाहिए; अरे भाई चावल यहाँ की थाली का महाराजा जो है।
कोलकाता का वाटगंज हो या रिपन स्ट्रीट या फिर विवेकानंद रोड, जिधर से गुजारिए एक ख़ुशबू आपका ध्यान ज़रूर खींच लेती है, ये कुछ और नहीं, ये गोबिंदोभोग है; जी हाँ, वही गोबिंदोभोग चावल जिसे बंगाली समुदाय बड़े चाव से खाता है। गोबिंदोभोग अपनी सुगंध के साथ-साथ स्वाद और मुलायम बनावट के लिए जाना जाता है। इस चावल का इस्तेमाल पायेश और खिचुरी बनाने में किया जाता है। बंगाल के पारंपरिक व्यंजनों में इसका खूब इस्तेमाल होता है।
ये सिर्फ एक चावल की खूबी है, अपने देश में चावल की ऐसी 20 से अधिक किस्में हैं जो हर रोज़ हम आप घरों में पकाते हैं या खाते हैं; कुछ तो विदेशों में तक भेजा जाता है क्योंकि स्वाद ही इसका इतना करिश्माई है।
हर चावल का अपना अलग स्वाद, लंबाई, सुगंध और खाना पकाने की विशेषताएँ हैं। सबसे योग्य अनाजों में से एक, चावल को अलग अलग व्यंजनों के रूप में जैसे सूप, सुशी, स्टर-फ्राइज़ और चावल का हलवा खाते हैं। चावल की कुछ किस्में सीमित संख्या में व्यंजनों में अच्छा काम करती हैं, जो उन्हें प्रामाणिक बनाती हैं। चावल की किस्मों की सामान्य समझ यह जानने के लिए ज़रूरी है कि किस व्यंजन को अपने स्वाद, फ्लेवर और सुगंध को अधिकतम करने के लिए किस किस्म का चावल चाहिए।
देश परदेस में प्रचलित चावल की प्रमुख किस्में
रोज़मैटा चावल
इसे भारत में ही उगाया जाता है और इसमें ज़रूरी विटामिन और खनिज होते हैं।खास बात ये है कि इस चावल में मिट्टी जैसा स्वाद होता है और जब तक चोकर की परतें नहीं हटाई जातीं तब तक वह लाल रंग का दिखाई देता है।
सांबा चावल
इसके दाने सख्त होते हैं, जो पूरी तरह पकने पर इसे कम फूला हुआ बनाते हैं। माना जाता है कि इसकी प्रकृति अधिक तृप्त करने वाली होती है और इसमें कैलोरी भी अधिक होती है। तमिलनाडु में इसे काफी उगाया जाता है
वेलेंसिया चावल
इसका इस्तेमाल आमतौर पर पेला जैसे स्पेनिश व्यंजन बनाने के लिए किया जाता है। इसे स्पेन में ज़्यादा उगाया जाता है और इसमें स्टार्च की मात्रा अधिक होती है।
सोना मसूरी
भारत का ये प्रसिद्ध चावल है और इसकी खेती आंध्र प्रदेश में की जाती है। चावल की बनावट बिल्कुल बासमती चावल जैसी होती है और पचाने में भी आसान होता है। इसमें कैलोरी कम होती है और यह वजन प्रबंधन में मदद करता है।
आर्बोरियो चावल
इसकी कटाई इटली में की जाती है और इतालवी खाना पकाने में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। चावल की बनावट मलाईदार और चबाने योग्य है और सभी आयु वर्ग के लोग इसका आनंद लेते हैं।
चिपचिपा चावल
मुख्य रूप से इसे एशियाई क्षेत्र में पाया जाता है और पूरे एशिया में भारी मात्रा में खाया जाता है। इसमें स्टार्च की मात्रा अधिक होती है और इसकी बनावट बहुत चिपचिपी होती है।
बोम्बा चावल
इसका रंग मोती जैसा सफेद होता है और यह अपनी नॉन-स्टिक खूबी के लिए जाना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चावल में एमाइलोज अधिक मात्रा में होता है जो इसे चिपकने से रोकता है।
बैंगनी थाई चावल
ये एक बहुत ही अच्छी चावल की किस्म है क्योंकि इसका इस्तेमाल मीठे और नमकीन व्यंजन बनाने के लिए कर सकते हैं। चावल पकाने के बाद भी उसका रंग बैंगनी ही रहता है जब तक कि उसमें ऐसे मसाले न डालें जो रंग को नष्ट कर दें।
सुशी चावल
ये चिपचिपे चावल की तरह होता है और इसमें स्टार्च की मात्रा ज़्यादा होती है। इसे सुशी चावल कहा जाता है क्योंकि यह पारंपरिक जापानी सुशी बनाने के लिए बिल्कुल सही है और इसे समुद्री भोजन के साथ एक आदर्श साइड डिश के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
सफ़ेद चावल
यह दुनिया भर में जाना जाता है और किसी भी व्यंजन में खाना पकाने के किसी भी रूप के लिए सही है। पूरी तरह पकने पर इसकी बनावट फूली हुई और बहुत हल्की चिपचिपी होती है और यह शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करती है।
इंद्रायणी चावल
ये भारतीयों का पसंदीदा है। पकने पर इसकी बनावट बहुत अच्छी हो जाती है और यह विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है।
लाल कार्गो चावल
ये भूरे चावल के समान होता है और आमतौर पर थाईलैंड में उगाया जाता है। यह सभी ज़रूरी पोषक तत्वों से भरपूर है और इसका रंग लाल-भूरा है। इसे जड़ी-बूटियों और मसालों के साथ पकाए जाने वाले कई करी के साथ परोसा जाता है ।
लाल चावल
इस चावल में एंथोसायनिन अधिक मात्रा में होता है, एक एंटीऑक्सीडेंट जो चावल के दाने की भूसी को लाल रंग में रंग देता है। इसका इस्तेमाल थाईलैंड, अफ्रीका और भूटान के कुछ हिस्सों में भी व्यापक रूप से किया जाता है।
काला चावल
इसे निषिद्ध चावल के रूप में भी जाना जाता है, चिपचिपा चावल का ये एक रूप है। ये दूसरे चावलों की तुलना में थोड़ा महँगा है, और ऐसा माना जाता है कि प्राचीन चीन में केवल बड़ा वर्ग ही काले चावल खा सकता था।
जंगली चावल
ये एक प्रकार की घास से निकलता है जो आमतौर पर अमेरिका के झील क्षेत्र में उगता है। यह चावल झीलों के आसपास जंगली घास की तरह पाया जाता है और इसकी कटाई साबुत अनाज चावल के रूप में की जाती है। जंगली चावल प्रोटीन से भरपूर होता है और बाहर से रंगीन होता है।
बांस चावल
जैसा की नाम से साफ़ हो जाता है ये बाँस की टहनियों से बनाया जाता है, और वास्तव में अपने जीवन काल के अंत में एक बीज होता है।
मोगरा चावल
इस चावल का स्वाद काफी अलग है और यह चिपचिपा नहीं है। एक बार पकने के बाद, यह फूला हुआ दिखाई देता है और इसका उपयोग मुख्य रूप से बिरयानी, पुलाव आदि जैसे पारंपरिक भारतीय व्यंजनों को तैयार करने के लिए किया जाता है।
चमेली चावल
इस चावल का उपयोग कई एशियाई व्यंजनों को खूबसूरत बनाने के लिए किया जाता है। इस चावल की खेती मुख्य रूप से थाईलैंड में की जाती है और पूरी तरह पकने पर इसकी बनावट नरम और चिपचिपी होती है।
बासमती चावल
भारत और पूरे एशिया में सबसे लोकप्रिय चावलों में से एक है। भारतीय और एशियाई व्यंजन रोमांचक और विदेशी व्यंजन बनाने के लिए इस स्वादिष्ट चावल का उपयोग करते हैं।
ब्राउन राइस
ये हल्का पौष्टिक स्वाद का होता है। सेहत के प्रति जागरूक लोग अन्य प्रकार के चावल की तुलना में ब्राउन चावल खाना पसंद करते हैं क्योंकि इसमें कैलोरी कम होती है और यह विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है।
हिंदुस्तान में चावल की खेती
चलिए अब जान लेते हैं भारत में चावल की खेती का क्या हाल है।
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर की रिपोर्ट की माने तो, साल 2021-22 में 129,471 टन चावल का उत्पादन हुआ था, वहीं साल 2022-23 में कुल चावल का उत्पादन 136,000 टन रिकॉर्ड किया गया है। यही वजह है कि भारत में खाद्य फसलों में चावल सबसे प्रमुख फसल गिनी जाती है।
चीन के बाद भारत चावल उत्पादन में दूसरे नंबर पर आता है। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब में सबसे ज़्यादा चावल की खेती की जाती है। चावल एक रोपाई वाली फसल है, जिसकी खेती के लिए 100 मिलीमीटर से अधिक वर्षा और 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान चाहिए होता है।
बासमती चावल की किस्में
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मुताबिक बासमती सबसे अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाली किस्म है।
पूसा बासमती 1121: उच्चतम विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाली किस्म है।
पूसा बासमती 1718 : देश के बासमती उगाने वाले (जीआई क्षेत्र) क्षेत्रों के लिए अनुशंसित औसत अनाज की उपज 135 दिनों की परिपक्वता के साथ 46.4 क्विंटल/ हैक्टर है। यह पूसा बासमती 1121 का एक एमएएस व्युत्पन्न बैक्टीरियल ब्लाइट प्रतिरोधी संस्करण है, जिसे विशेष रूप से विकसित किया गया है। यह देश में, बासमती चावल की तीन शीर्ष, विदेशी मुद्रा अर्जक किस्मों में से एक है।
पूसा बासमती 1509 : जल्दी पकने वाली, कम ऊँचाई वाली, जमीन न गिरने वाली और न टूटने वाली किस्म है। औसत बीज उपज 41.4 क्विंटल/ हैक्टर है। यह 115 दिनों में परिपक्व होती है जो पूसा बासमती 1121 से 30 दिन पहले है। यह 3-4 सिंचाई बचाता है और जल्दी पकने के कारण किसानों को गेहूं के खेत की तैयारी के लिए पर्याप्त समय देता है, जिससे अवशेषों को जलाने में कमी आती है; 33 प्रतिशत पानी बचाता है।
जया : चावल की इस चमत्कारी किस्म ने हरित क्रांति की शुरुआत की। 130 दिनों की अवधि वाली अर्ध-बौनी चावल की इस किस्म की उपज क्षमता 5 टन/ हैक्टर है। उपज की सारी बाधाओं को तोड़कर, 60 के दशक के अंत से 70 के दशक के प्रारंभ में देश को आत्मनिर्भरता की स्थिति में लाकर खड़ा किया।
बासमती चावल की अधिसूचित की गई 34 किस्में
बीज अधिनियम, 1966 के अधीन अब तक बासमती चावल की 34 किस्में अधिसूचित की गई हैं। इनमें बासमती 217, बासमती 370, टाइप 3 (देहरादूनी बासमती), पंजाब बासमती 1 (बउनी बासमती), पूसा बासमती 1, कस्तूरी, हरियाणा बासमती 1, माही सुगंधा, तरोरी बासमती (एचबीसी 19 / करनाल लोकल), रणबीर बासमती, बासमती 386, इम्प्रूव्ड पूसा बासमती 1 (पूसा 1460), पूसा बासमती 1121 (संशोधन के पश्चात्), वल्लभ बासमती 22, पूसा बासमती 6 (पूसा 1401), पंजाब बासमती 2, बासमती सीएसआर 30 (संशोधन के पश्चात्), मालवीय बासमती धन 10-9 (आईईटी 21669), वल्लभ बासमती 21 (आईईटी 19493), पूसा बासमती 1509 (आईईटी 21960), बासमती 564, वल्लभ बासमती 23, वल्लभ बासमती 24, पूसा बासमती 1609, पंत बासमती 1 (आईईटी 21665), पंत बासमती 2 (आईईटी 21953), पंजाब बासमती 3, पूसा बासमती 1637, पूसा बासमती 1728, पूसा बासमती 1718, पंजाब बासमती 4, पंजाब बासमती 5, हरियाणा बासमती 2 और पूसा बासमती 1692 शामिल हैं।
कहाँ होती है खेती और किन देशों में जाता है
आमतौर पर भारत में बासमती चावल जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा , दिल्ली, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश राज्यों में उगाया जाता है।
साल 2022-2023 में इसका निर्यात सऊदी अरब, ईरान, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और यमन गणराज्य में किया गया।