अनानास को मिलेगा जैविक कवच: खोजा गया फ्यूजेरियम से लड़ने वाला जीन

Gaon Connection | Jul 24, 2025, 13:37 IST

अनानास की खेती को फफूंद से बचाने में अब किसान रसायनों पर निर्भर नहीं रहेंगे। बोस संस्थान के वैज्ञानिकों ने ऐसा जीन खोज निकाला है जो पौधे की अंदरूनी प्रतिरक्षा को मज़बूत बनाता है।

भारत में अनानास की खेती पूर्वोत्तर राज्यों और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर की जाती है। यह फल न सिर्फ स्वाद और पोषण का स्रोत है, बल्कि हजारों किसानों की आजीविका का आधार भी बन चुका है। लेकिन यह मीठा फल एक ऐसे दुश्मन से जूझ रहा है जो इसकी जड़ों को ही कमजोर कर देता है- फ्यूजेरियम नामक फफूंद, जो ‘फ्यूजेरियोसिस’ रोग का कारण बनता है।

यह फफूंद पौधे के तनों को विकृत कर देता है, पत्तियों को काला कर देता है और फलों को अंदर से सड़ने पर मजबूर करता है। खास बात यह है कि यह रोग खेत में बहुत तेज़ी से फैलता है और पूरे उत्पादन को चौपट कर सकता है। कई किसान इससे परेशान होकर अनानास की खेती से ही मुंह मोड़ने लगे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह अब लाभदायक नहीं रहा।

इस बीच कोलकाता स्थित बोस इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने इस समस्या का जैविक समाधान खोज निकाला है। उन्होंने अनानास के एक खास जीन—ACSERK3—की पहचान की है, जो पौधे की प्राकृतिक प्रतिरक्षा को मजबूत करता है। वैज्ञानिकों ने इस जीन की अति-अभिव्यक्ति (overexpression) करके ट्रांसजेनिक अनानास पौधे विकसित किए, जो फ्यूजेरियम फफूंद के खिलाफ कहीं ज्यादा सहनशील पाए गए।

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यह शोध डॉ. गौरव गंगोपाध्याय और उनकी पीएचडी छात्रा डॉ. सौमिली पाल द्वारा किया गया और “In Vitro Cellular & Developmental Biology - Plants” नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इनके अनुसार, इन ट्रांसजेनिक पौधों में तनाव से लड़ने वाले मेटाबोलाइट्स और एंटीफंगल एंजाइम की गतिविधि में वृद्धि देखी गई। नियंत्रित प्रयोगों में ये पौधे स्वस्थ, लंबे और हरे-भरे बने रहे, जबकि सामान्य अनानास की किस्में फफूंद के प्रभाव में मुरझा गईं।

इस खोज का मतलब है कि भविष्य में किसान ऐसे अनानास उगा सकेंगे जो खुद ही अपनी रक्षा कर सके, और बार-बार कीटनाशक या फफूंदनाशक दवाओं की ज़रूरत न पड़े। इससे न केवल उत्पादन बेहतर होगा, बल्कि किसानों का खर्च भी कम होगा और पर्यावरणीय प्रभाव भी घटेगा।

भारत में फिलहाल अनानास की खेती लगभग 97,000 हेक्टेयर क्षेत्र में होती है और सालाना उत्पादन 17 लाख मीट्रिक टन से अधिक है। देश के प्रमुख उत्पादक राज्यों में त्रिपुरा, असम, मेघालय, मिज़ोरम, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, केरल और कर्नाटक शामिल हैं। इन क्षेत्रों में जलवायु और मिट्टी की स्थिति अनानास के लिए अनुकूल मानी जाती है, लेकिन रोग का खतरा खेती को अस्थिर बनाता है।

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पारंपरिक तौर पर फ्यूजेरियम जैसे फफूंद से निपटने के लिए रसायनों या प्रजनन तकनीकों का सहारा लिया जाता रहा है। लेकिन यह समय और संसाधन की दृष्टि से महंगा और सीमित असर वाला उपाय रहा है। बोस इंस्टीट्यूट की यह खोज जैव प्रौद्योगिकी का एक ऐसा प्रयोग है जिसमें पौधे के भीतर से ही सुरक्षा तंत्र को मज़बूत किया गया है।

यदि दीर्घकालिक फील्ड ट्रायल सफल होते हैं, तो इन ट्रांसजेनिक किस्मों की "स्लिप्स" और "सकर्स" के ज़रिए कई पीढ़ियों तक फंगस प्रतिरोधक क्षमता कायम रह सकती है। इसका अर्थ यह है कि किसानों को हर साल नई दवाओं या बीजों पर खर्च नहीं करना पड़ेगा। यह नवाचार एक ऐसी स्थायी खेती की दिशा में कदम है जो पर्यावरण के अनुकूल हो, लागत प्रभावी हो और उत्पादन में स्थिरता लाए।

इस खोज से उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वर्षों में भारत न केवल अनानास उत्पादन में और आगे बढ़ेगा, बल्कि अपने किसानों को रोगमुक्त और भरोसेमंद खेती का एक नया विकल्प भी देगा।