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पांच से अधिक मवेशी वाले किसान उठा सकते हैं बायोगैस संयंत्र योजना का लाभ, मिलती है भारी सब्सिडी

uttar pradesh

लखनऊ। आम तौर पर पशुओं के अपशिष्ट का उपयोग खाना बनाने के लिए ईंधन (कंडा, उपले) के रूप में उपयोग किया जाता है, लेकिन अभी भी पशुधन अपशिष्ट को ग्रामीणों द्वारा पूर्ण रूप से उपयोग में नहीं लिया जा रहा है ओर अपशिष्ट का एक बहुत बड़ा हिस्सा व्यर्थ हो जाता है। जो कि बायोगैस संयंत्र द्वारा प्रभावी रूप से उपयोग में लाया जा सकता है। बायोगैस संयंत्र एक ऐसा संयंत्र है जो पशुधन अपशिष्ट का कुशलतापूर्वक प्रबंधन करता है ओर साथ ही साथ ग्रामीण भारत के लिए ऊर्जा का उत्पादन करता है।

उत्तर प्रदेश में लगभग चार करोड़ 75 लाख पशुधन हैं जिनसें लगभग 1200 लाख टन अपशिष्ट पदार्थ का उत्पादन होता है।

भारत सरकार गाँवों में बायोगैस प्लांट लगाने के लिए भारी अनुदान देती है। गाँव कनेक्शन आपको बता रहा है कि कैसे ग्रामीण बायोगैस संयंत्र अनुदान योजना का लाभ ‘अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत विभाग उत्तर प्रदेश (यूपीनेडा)’ से ले सकते हैं।

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ऐसे मिलेगा अनुदान

  • बायोगैस संयंत्र अनुदान योजना लेने के लिए सबसे पहले ग्रामीण अपने जिले के यूपीनेडा कार्यालय के जिला परियोजना अधिकारी से संपर्क करे।
  • जिला परियोजना अधिकारी के यहां बायोगैस संयंत्र अनुदान योजना का लाभ लेने के लिए फार्म भराया जाएगा।
  • अपने जिले में बॉयोगैस संयंत्र बनवाने वाले किसी भी एजेंसी से आप संपर्क कर अपने यहां बायोगैस प्लांट का निर्माण कराएं।
  • बॉयोगैस प्लांट का निर्माण कराने के बाद ग्रामीण बने हुए प्लांट की फोटो, बिल के साथ-साथ जरूरी कागजात लेकर यूपीनेडा के जिला परियोजना अधिकारी के पास जाकर जमा करें।
  • बॉयोगैस प्लांट बनने के बाद यूपी नेडा की एक टीम बने हुए संयत्र का निरीक्षण करने जाएगी। निरीक्षण करने के बाद बॉयोगैस प्लांट बनवाने वाले ग्रामीण को सरकार के तहत कुछ दिनों में अनुदान की धनराशि प्रदान की जाएगी।

( ये जानाकारी यूपीनेडा के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी अतुल शंकर श्रीवास्तव द्वारा प्राप्त की गई है )

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इतना मिलता है अनुदान

यूपी के राष्ट्रीय बायोगैस उर्वरक प्रबन्धन कार्यक्रम (एनबीएमएमपी) के तहत 22,000 रुपए प्रति संयत्र लागत आती है। जिसमें सामान्य जाति के लाभार्थियों को 9000 रुपए तथा अनुसूचित जाति के लाभार्थियों को 11,000 रुपए का अनुदान दिया जा रहा है अवशेष लागत लाभार्थी द्वारा वहन की जाती है। 2 घनमीटर क्षमता के बायोगैस संयत्र से 5 व्यक्तियों के दोनों समय का खाना बनाने एवं एक लैम्प 4 से 5 घंटे प्रतिदिन जलाया जा सकता है तथा 6 टन उच्च गुणवत्ता की जैविक खाद प्रतिवर्ष प्राप्त होगी।

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संयंत्र बनवाने के लिए यह जरूरी

गोबर गैस संयंत्र के लेने के लिए ग्रामीण के पास पांच से अधिक मवेशी होने चाहिए या 50 किलो गोबर की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अलावा 13 फीट की डोम सहित कुल 25 फीट की जगह होनी चाहिए जिसमें गोबर गैस संयंत्र बनाने के साथ-साथ खाद भी रखने की व्यवस्था हो सके। इन सारी औपचारिकता पूरी करने के बाद विभाग के अधिकारियों द्वारा मौका निरीक्षण किया जाता है, निरीक्षण के बाद संयंत्र लगाने की स्वीकृति प्रदान की जाती है।

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बायोगैस उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे पदार्थ

हालांकि जानवरों के गोबर को बायो गैस प्लांट के लिए मुख्य कच्चा पदार्थ माना जाता है, लेकिन इसके अलावा मल, मुर्गियों की बीट और कृषि जन्य कचरे का भी इस्तेमाल किया जाता है।

बायोगैस प्लांट से एक वर्ष में लगभग 10 टन जैविक खाद प्राप्त होती है

बायोगैस संयंत्र में गोबर गैस की पाचन क्रिया के बाद 25 प्रतिशत ठोस पदार्थ रूपान्तरण गैस के रूप में होता है और 75 प्रतिशत ठोस पदार्थ का रूपान्तरण खाद के रूप में होता हैं। जिसे बायोगैस स्लरी कहा जाता है। दो घनमीटर के बायोगैस संयंत्र में 50 किलोग्राम प्रतिदिन के हिसाब से 18.25 टन गोबर एक वर्ष में डाला जाता है। उस गोबर में 80 प्रतिशत नमी युक्त करीब 10 टन बायोगैस स्लेरी जैविक खाद प्राप्त होती है। ये खेती के लिये अति उत्तम खाद होती है। इसमें 1.5 से 2 प्रतिशत नाइट्रोजन, एक प्रतिशत फास्फोरस एवं एक प्रतिशत पोटाश होती हैं।

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बायोगैस उत्पादन के फायदे

  • इससे प्रदूषण नहीं होता है यानी यह पर्यावरण प्रिय है।
  • बायोगैस उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे पदार्थ गांवों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
  • इनसे सिर्फ बायोगैस का उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि फसलों की उपज बढ़ाने के लिए समृद्ध खाद भी मिलता है।
  • गांवों के छोटे घरों में जहां लकड़ी और गोबर के गोयठे का जलावन के रूप में इस्तेमाल करने से धुएं की समस्या होती है, वहीं बायोगैस से ऐसी कोई समस्या नहीं होती।
  • यह प्रदूषण को भी नियंत्रित रखता है, क्योंकि इसमें गोबर खुले में पड़े नहीं रहते, जिससे कीटाणु और मच्छर नहीं पनप पाते।
  • बायोगैस के कारण लकड़ी की बचत होती है, जिससे पेड़ काटने की जरूरत नहीं पड़ती। इस प्रकार वृक्ष बचाये जा सकते हैं।

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