लखनऊ। कई बार गड्ढों में गिरकर, ऊंचाई से गिरकर या फिर सड़क पर चलते हुए जानवरों की हड्डी टूट जाती है और जानकारी के अभाव में पशुपालक उसका प्राथमिक उपचार नहीं करता है और पशुचिकित्सक के आने तक उसकी हालत गंभीर हो जाती है।
पशुओं में फैक्चर या हड्डी टूटना दो तरीके से होता है। पहली स्थिति में हड्डी टूटने के बाद चमड़े के अंदर रह जाती है जबकि दूसरी स्थिति में बाहर आ जाती है। हड्डी के बाहर आने में ज्यादा खतरा रहता है। अगर पशुपालक प्राथमिक उपचार करें तो काफी हद तक पशुओं की इस समस्या को हल किया जा सकता है।
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बरेली में स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के सर्जरी विभाग में वैज्ञानिक डॉ अभिषेक सक्सेना बताते हैं, ”हमारे देश में बड़ी समस्या है बड़े जानवरों का फैक्चर होना। आजकल ट्रैफिक बहुत ज्यादा बढ़ गया है ऐसे में पहले की अपेक्षा एक्सीडेंट भी ज्यादा हो रहे हैं। पहले हड्डी टूटने का कोई इलाज भी नहीं था लेकिन हमारे संस्थान मे ऐसे डिवाइज़ तैयार किए गए है जिससे अब किसी भी तरह के फैक्चर का इलाज संभव है।”
जानवर की हड्डी टूटने के लक्षणों के बारे में डॉ सक्सेना बताते हैं, “कभी-कभी छोटी-मोटी चोट को पशुपालक हड्डी टूटना समझ लेते है। जब किसी जानवर की हड्डी टूटती है तो वह उस पैर पर वजन लेना बदं कर देता है और उस पैर को ज़मीन पर रखता भी नहीं है। जिस पैर की हड्डी टूटती है उसके आस-पास सूजन आ जाती है।”
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पशुपालक अगर सही समय पर टूटी हुई हड्डी का इलाज करे तो पशु को गंभीर स्थिति में पहुंचने को रोक देता है। “अगर पता चल गया है कि जानवर की हड्डी टूटी है तो पहले उसके पैर को हिलने से रोके। पैर को रुई से बांध दे और फिर उसके ऊपर बांस की खपच्चियां रखकर फिर रुई से बांध दे। अगर रुई नहीं है तो सूती कपड़े का प्रयोग कर सकते हैं। पशुचिकित्सक के आने तक पशुपालक खुद यह कर सकता है। इससे पशु को काफी हद तक राहत मिलेगी।” डॉ सक्सेना ने बताया। पशुपालक प्राथमिक उपचार के बाद अपने जानवर को पशुचिकित्सक को जरुर दिखायें।