गाँव कनेक्शन: क्या इंटरमिटेंट फास्टिंग सबके लिए सही है?
नेहा मोहन सिन्हा: देखिए, हमारा शरीर ऐसा है कि अगर आप उसे किसी भी तरह से कष्ट देंगे, तो वह शरीर वापस हमें कष्ट देगा ही किसी न किसी तरीके से। इंटरमिटेंट फास्टिंग अच्छी चीज़ होती है, लेकिन इसे इंटरमिटेंट फास्टिंग न कहकर अगर हम इसे “टाइम-रेस्ट्रिक्टेड ईटिंग” कहें तो बेहतर होगा। और अगर आपने देखा होगा, तो पुराने ज़माने में हमारे जो दादी-बाबा या उनके पिताजी-माताजी लोग होते थे, तो वे यही टाइम-रेस्ट्रिक्टेड ईटिंग ही करते थे, यानी कि सूर्योदय के बाद खाना और सूर्यास्त से पहले खाना खा लेते थे। यही तो होती है न इंटरमिटेंट फास्टिंग?
लेकिन हम क्या करते हैं, इसे और ज्यादा खींच देते हैं, जैसे 16 घंटे, 18 घंटे, 20 घंटे या यहां तक कि 40 घंटे तक लोग वाटर फास्ट पर रहते हैं। तो आप यह सोचिए कि 40 घंटे तक आपने कुछ नहीं खाया, लेकिन आपकी बॉडी रेगुलरली एंजाइम्स, हार्मोन और गैस्ट्रिक जूसेस का उत्पादन करती रहती है। यह कहीं न कहीं जाकर आगे प्रॉब्लम्स उत्पन्न कर सकता है, जैसे पेप्टिक अल्सर या अन्य पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
दूसरी चीज़ यह है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग सभी को सूट नहीं करती। जिन लोगों को गैस्ट्रिक डिसऑर्डर या इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) होता है, उन्हें इंटरमिटेंट फास्टिंग नहीं करनी चाहिए। इसलिए हमेशा अपने डॉक्टर या डाइटिशियन से सलाह लें, इससे पहले कि आप किसी भी तरह की फास्टिंग करें। इधर-उधर के लोगों की बातों पर ध्यान न दें, क्योंकि हर व्यक्ति का शरीर अलग होता है। किसी को इंटरमिटेंट फास्टिंग सूट करती है, तो किसी को बार-बार थोड़ी-थोड़ी देर पर खाना सूट करता है। हमें अपने शरीर के हिसाब से डाइट लेनी चाहिए।
गाँव कनेक्शन: प्रोटीन पाउडर शरीर के लिए कितना सही है?
नेहा मोहन सिन्हा: ये जो प्रोटीन पाउडर्स होते हैं, अब तो ICMR (भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन ने भी मिलकर यह निकाला है कि यह बहुत स्वस्थ्य नहीं है, क्योंकि आगे चलकर ये आपका कोलेस्ट्रॉल बढ़ा सकते हैं या यूरिक एसिड बढ़ा सकते हैं। ये चीप वेजिटेरियन सोर्सेस से बनाए जाते हैं, जिनका कोई न कोई साइड इफेक्ट हो सकता है। इसलिए प्रोटीन पाउडर्स को न चुनकर अगर हम यही प्रोटीन अपनी डेली डाइट से लें, तो जरूरी नहीं कि तुरंत बदलाव आएंगे, लेकिन समय के साथ आपकी बॉडी में सकारात्मक बदलाव जरूर आएंगे।
हमारी बॉडी को डेली 60 ग्राम से भी कम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। अगर इतना प्रोटीन हम अपने खाने से प्राप्त कर सकते हैं, तो हमें बाहरी सोर्स से प्रोटीन क्यों लेना चाहिए, जिसमें हमें यह भी नहीं पता होता कि उसमें चीनी, स्टेरॉइड्स या कुछ और मिला है या नहीं। हमारी बॉडी को बाहर की चीज़ों को लेने की आदत नहीं होती है, और कितनी मात्रा में हमारी बॉडी उसे अब्जॉर्ब करती है, यह अलग-अलग लोगों पर निर्भर करता है।
लेकिन अगर आप नियमित रूप से सही खाना खाते हैं, और खाने से प्रोटीन प्राप्त करते हैं, तो इसका प्रभाव 100% आपकी बॉडी पर होता है। धीरे-धीरे आने वाले बदलाव अच्छे होते हैं, इसलिए वही खाना खाएं जो हमारे पूर्वज खाते आए हैं और प्रोटीन की मात्रा बढ़ाएं।
गाँव कनेक्शन: वीगन डाइट पर आपकी क्या राय है?
नेहा मोहन सिन्हा: मैं सामान्यत: वीगन डाइट को नहीं सुझाती, क्योंकि समय के साथ कुछ विटामिन्स और मिनरल्स ऐसे होते हैं जो हमें नॉन-वेजिटेरियन फूड प्रोडक्ट्स से ही मिलते हैं। हां, वेजिटेरियन लोगों को वो चीजें दूध, दही और पनीर से मिल जाती हैं। जैसे विटामिन B12 की कमी बहुत से लोगों में पाई जाती है, और अगर आप वीगन हैं, तो आपको जीवनभर सप्लीमेंट्स लेने पड़ेंगे। इसीलिए बेहतर यही है कि आप नॉर्मल डाइट में दूध और दही को शामिल करें।
विटामिन D का हमारी डाइट में होना कितना ज़रूरी है?
विटामिन D को सनशाइन विटामिन कहा जाता है, और यह अल्ट्रावायलेट रेज से हमारी स्किन में अब्जॉर्ब होता है। लेकिन आजकल प्रदूषण और सनस्क्रीन के कारण यूवी रेज हमारे तक नहीं पहुंच पाती हैं। विटामिन D कुछ खाद्य पदार्थों में भी मिलता है, जैसे मछलियों में। लेकिन कई बार हमें सप्लीमेंट्स की जरूरत पड़ती है।
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