लखनऊ। करेले की शंकर बीज की बुवाई करने के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी होनी चाहिए। खेत समतल तथा उसमें जल निकास व्यवस्था के साथ सिंचाई की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। करेले को गर्मी और वर्षा दोनो मौसम में उगाया जा सकता है। फसल में अच्छी बढवार, फूल व फलन के लिए 25 से 35 डिग्री सें ग्रेड का ताप अच्छा होता है। बीजों के जमाव के लिए 22 से 25 डिग्री सें.ग्रेड का ताप अच्छा होता है।
करेले के बीज की बुवाई करने से 25-30 दिन पहले 25-30 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद को एक हैकटेयर खेत में मिलाना चाहिए। बुवाई से पहले नालियों में 50 किलो डीएपी, 50 किलो म्यूरेट आफ पोटास का मिश्रण प्रति हैक्टेयर के हिसाब से (500 ग्राम प्रति थमला) मिलाऐं। 30 किलो यूरिया बुवाई के 20-25 दिन बाद व 30 किलो यूरिया 50-55 दिन बाद पुष्पन व फलन के समय डालना चाहिए। यूरिया सांय काल मे जब खेत मे अच्छी नमी हो तब ही डालना चाहिए।
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बीज की मात्रा व बुआई
करेले का 500 ग्राम बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होता है। पौध तैयार करके बीज फसल लगाने पर बीज मात्रा मे कमी की जा सकती है। बुवाई से पहले बीजों को बाविस्टीन (2 ग्रा प्रति किलो बीज दर से) के घोल में 18-24 घंटे तक भिगोये तथा बुवाई के पहले निकालकर छाया में सुखा लेना चाहिए। बीज 2 से 3 इंच की गहराई पर करना चाहिए।
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फसल अंतरण
नाली से नाली की दूरी 2 मी., पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंमी तथा नाली की मेढों की ऊंचाई 50 सेंमी रखनी चाहिए। नालीयां समतल खेत में दोनो तरफ मिट्टी चढ़ाकर बनाऐं। खेत मे 1/5 भाग मे नर पैतृक तथा 4/5 भाग में मादा पैतृक की बुआई अलग अलग खण्डो में करनी चाहिए।
फसल के लिए मजबूत मचान बनाएं और पौधों को उस पर चढांए जिससे फल खराब नहीं होते हैं और तोड़ाई करने में भी आसानी होती है।
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फल तुड़ाई व बीज निकालना
फल पकने पर फल चमकीले नारंगी रंग के हो जाते हैं। फल को तभी तोड़ना चाहिए जब फल का कम से कम दो तिहाई भाग नारंगी रंग का हो जाये क्योकि कम पके फल में बीज अल्प विकसीत रहते हैं। अधिक पकने पर फल फट जाते हैं और बीज का नुकसान होता है।