लखनऊ। प्लास्टिक दिन ब दिन हमारे लिए एक खतरा बनता जा रहा है। फिर चाहे बात हमारे स्वाथ्य के लिए हो या फिर पर्यावरण के लिए। रोजाना हमारे देश में हजारों टन प्लास्टिक निकलता है जो कि पानी, पर्यावरण के साथ-साथ लोगों के लिए भी खतरा है।
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मेडिसिन विभाग के प्रो. डॉ. डी. हिमांशु रेड्डी बताते हैं, “प्लास्टिक कास्नोजेनिक यानी कैंसर जनित होता है। इसमें टॉक्सिक होता है, जिससे कैंसर होने की सम्भावना होती है। ये बिना ISI मार्का की प्लास्टिक में अधिक होता है। हमें ISI और कोड देखकर ही प्लास्टिक का प्रयोग करना चाहिए।”
“प्लास्टिक में अलग-अलग प्रकार की सामग्री होती है जो नॉन क्लोरिनेटेड होनी चाहिए, जो लोगों को कम नुकसान देती हैं। प्लास्टिक काफी हद तक मोटी होनी चाहिए, जिससे प्लास्टिक कण इतने आसानी से लोगों के पेट में नहीं जा पाए। प्लास्टिक नॉन बी.पी.ए. होना चाहिए। बी.पी.ए प्लास्टिक काफी हद तक लोगों को नुकसान नहीं करती हैं।” डा. रेड्डी आगे बताते हैं।
विशेषज्ञों की माने तो जिस रफ़्तार से हम प्लास्टिक इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे 2020 तक दुनिया भर में 12 अरब टन प्लास्टिक कचरा जमा हो चुका होगा। इसे साफ़ करने में सैकड़ों साल लग जाएंगे।
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पिछले वर्ष में कनाडा के हैलिफैक्स शहर में प्लास्टिक के कचरे की वजह से इमरजेंसी लगानी पड़ी थी। उस वक्त लगभग 300 टन प्लास्टिक को जमीन में दफन किया गया था।
महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन प्रो. बीडी त्रिपाठी बताते हैं, “प्लास्टिक को जलाया भी नहीं जा सकता क्योंकि इससे बहुत हानिकारक गैस निकलती हैं, जिससे वातावरण को बहुत नुकसान होता है। प्लास्टिक जल के साथ-साथ हवा को भी दूषित कर रहा है, जिससे ओजोन लेयर पर भी काफी असर पढ़ रहा है। मुझे यह समझ नहीं आता कि सरकार की ऐसी क्या मज़बूरी है कि वह प्लास्टिक बनाने वाली फैक्ट्री को बंद न करके उसका प्रयोग करने पर बैन लगाते हैं। अगर हम सोर्स ही बंद कर दे तो लोग प्रयोग कहाँ से करेंगे?”
केन्द्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अनुसार भारत में हर दिन 25,940 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। इनमें 40 प्रतिशत ऐसेप्लास्टिक होते हैं जो पानी के साथ नदियों में पहुचते हैं, जिससे पानी भी दूषित होता है।
प्लास्टिक कचरे का लगभग एक-छटा हिस्सा 60 प्रमुख शहरों द्वारा उत्पन्न होता है, जिसमें 50 फीसदी से अधिक प्लास्टिक दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, मुंबई और बंगलौर में इकट्ठा होता है। ये शहर रोजाना 4,059 टन प्लास्टिक कचरा पैदा करते हैं।
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जानिए कैसी प्लास्टिक का प्रयोग करना चाहिए?
हम रोजाना की जिंदगी में प्लास्टिक से बनी चीजों पर ही निर्भर हैं। फिर वह खाना रखने के लिए लंचबॉक्स हो, पानी की बोतल या प्लास्टिक के बर्तन। क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की कि जो प्लास्टिक हम प्रयोग कर रहे हैं वो प्लास्टिक किस उपयोग के लिए बनी है?
प्लास्टिक के पीछे ISI लिखा होता है या फिर एक सिंबल होता है। दरअसल, अच्छी क्वॉलिटी के प्रॉडक्ट पर इस चिन्ह का होना जरूरी है। यह मार्क ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (BIS) जारी करता है।
इससे पता लगता है कि उत्पादों की शुद्धता अच्छी है। इन चिन्हों को रेजिन आइडेंटिफिकेशन कोड सिस्टम (RIC) कहते हैं। इसमें तिकोने के बीच में नंबर भी होते हैं। ये उत्पाद महंगे होते हैं लेकिन बेहतर होते हैं। इन नंबरों से ही पता चलता है कि आपके हाथ में जो उत्पाद है, वह किस तरह के प्लास्टिक से बना है।
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चलिए आपको बताते हैं कि प्लास्टिक में किस चिन्ह का क्या मतलब होता है:
पॉलिथीन टेरिफ्थेलैट (polyethylene terephthalate-PET)
यह प्लास्टिक टेरिफ्थेलैट से बनी होती है। सॉफ्ट ड्रिंक, पानी, केचप, अचार, जेली, पीनट बटर जैसे सॉलिड लिक्विड को प्लास्टिक की बनी ऐसी बोतलों में ही रखा जाता है।
यह अच्छा प्लास्टिक होता है। PET अपनी पैकेजिंग में रखे सामान को सुरक्षित रखता है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने इसे खाने-पीने की चीजों की पैकेजिंग के लिए स्वच्छ बताया है।
हाई डेन्सिटी पॉलिथीन (High-density polyethylene- HDPE)
यह हाई-डेंसिटी पॉलिथीन से बना होता है। दूध, पानी, जूस के बोतल, योगर्ट की पैकेजिंग, रिटेल बैग्स आदि बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है। एचडीपीई प्लास्टिक के खाने-पीने की चीजों में मिक्स होने से कैंसर या हॉर्मोंस को नुकसान होने की आशंका न के बराबर रहती है। हल्के वजन और टिकाऊ होने की वजह से यह बेहद प्रसिद्ध है।
पॉलीविनाइलिडिन क्लोराइड (Polyvinylidene chloride- PVDC)
यह प्लास्टिक पॉलीविनाइल डीन क्लोराइड से बना होता है। पीवीडीसी का इस्तेमाल खाने-पीने के सामान, दूध से बने उत्पाद, सॉस, मीट, हर्बल उत्पाद, मसाले, चाय और कॉफी आदि की पैकेजिंग में प्रयोग होता है। यह प्लास्टिक इतना मजबूत होता है कि लीक नहीं हो सकता। इसकी वजह से इसमें फूड पैकेजिंग की जाती है।
लो डेंसिटी पोलीथाईलीन (Low-density polyethylene -LDPE)
यह प्लास्टिक लो-डेंसिटी-पॉलिथिलीन से बना है। इससे आउटडोर फर्नीचर, फ्लोर टाइल्स, शॉवर कर्टेन आदि बनते हैं। इसी से एलएलडीपीई बनती है, जिसे फूड पैकेजिंग के लिए अच्छा माना जाता है। यह जहरीला नहीं होता है। इससे सेहत को कोई नुकसान नहीं होता है।
पालीप्रोपेलीन (Polypropylene – PP)
यह प्लास्टिक पॉलीप्रोपेलीन से बना होता है। पी.पी से बोतल कैप, ड्रिंकिंग स्ट्रॉ, योगर्ट कंटेनर, प्लास्टिक प्रेशर पाइप सिस्टम आदि बनते हैं। यह प्लास्टिक किन्हीं और रसायनों के साथ जल्दी असर नहीं करता,इसलिए इसको सफाई करने के पदार्थ, प्राथमिक चिकित्सा उत्पाद की पैकेजिंग की जाती है।
पालीस्टाइरीन (Polystyrene -PS)
यह उत्पाद पॉलिस्टाइरीन से बना होता है। इससे बने उत्पाद पर छह नंबर दर्ज रहता है। फोम पैकेजिंग, फूड कंटेनर्स, प्लास्टिक टेबलवेयर, डिस्पोजेबल कप-प्लेट्स, कटलरी, सीडी, कैसेट डिब्बे आदि में इसे इस्तेमाल किया जाता है। यह फूड पैकेजिंग के लिए सुरक्षित होता है लेकिन इसको री-साइकल करना बहुत मुश्किल होता है। गर्म करने के दौरान इसमें से कुछ हानिकारक गैसें निकलती हैं। ऐसे में इसके अधिक इस्तेमाल से बचना चाहिए।
ओ-टाइप (O)
यह कई तरह के प्लास्टिक का मिश्रण होता है। इसमें खासतौर पर पॉलीकार्बोनेट (PC) होता है। इससे सीडी, सीपर, सनग्लास, केचप कंटेनर्स आदि बनते हैं।
यह प्लास्टिक काफी मजबूत होता है। हालांकि कुछ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इसमें हॉर्मोंस पर असर डालने वाले बायस्फेनॉल (BPA) की मौजूदगी होती है। कई बार इस्तेमाल करने पर यह मानव शरीर के हार्मोंस को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए इसका इस्तेमाल करने से बचना चाहिए।
खाने-पीने की चीजें रखने के लिए PET, HDPE, LDPE और PP कैटिगरी का प्लास्टिक सही है। ये बेहतर फूड ग्रेड कैटिगरी में आते हैं। PDVC और O कैटिगरी के कंटेनर खाने में केमिकल छोड़ते हैं, खासकर गर्म करने के बाद। PS नंबर का भी इस्तेमाल कम ही करना चाहिए। इनमें खाने की चीजें ना रखें।
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प्लास्टिक कचरे से बनाया ईंधन: प्रो. सतीश कुमार
पर्यावरण को बचाने के लिए प्लास्टिक को रिसाइकल किया जा रहा है। इसी के चलते हैदराबाद के 45 वर्षीय प्रोफेसर सतीश कुमार ने प्लास्टिक का इस्तेमाल कर ऐसी चीज तैयार की है, जिसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। बता दें, इन्होंने खराब प्लास्टिक का इस्तेमाल कर पेट्रोल तैयार किया है। इनके इस कारनामे ने लोगों को हैरान कर दिया है।
प्लास्टिक से पेट्रोल बनाने वाली कम्पनी के प्रोपराइटर सतीश कुमार गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “यह एक डी पॉलीमराईजेशन प्रक्रिया होती है। यह एक बायोलिसिस एक्टिविटी है, जिसमें हम पॉलीमर को डाई पॉलीमर करते हैं। थर्मल एक्टिविटी के साथ प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े कर लेते हैं लॉन्ग चेन पॉलीमर के द्वारा हम फ्यूल बनाते है।”
“वह पायरोलिसिस नाम की थ्री स्टेप प्रोसेस की मदद से प्लास्टिक से फ्यूल बनाते हैं। इस प्रक्रिया से प्लास्टिक से डीजल, विमान का ईंधन और पेट्रोल बनाने में मदद मिलती हैं। लगभग 500 किलोग्राम प्लास्टिक से 400 लीटर ईंधन का उत्पादन होता है, जिसमे 240 लीटर डीजल, 80-100 लीटर विमान ईंधन, 80 लीटर पेट्रोल, 20 लीटर अन्य ईंधन बनाया जाता है।” प्रो. सतीश बताते हैं।
प्रो. सतीश बताते हैं, “यह बहुत ही सरल प्रक्रिया है, जिसमें पानी की कोई भी आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रक्रिया में प्रदूषित जल नहीं निकलता हैं और यह हवा को भी दूषित नहीं करता है। इसका पूरा प्रोसेस एक वैक्यूम में होता है और हम किसी भी प्रकार की चिमनी का प्रयोग नहीं करते हैं। हमारे यहाँ इंडियन एग्जॉस्ट का प्रयोग होता है, जो कि जनरेटर से कनेक्ट होता है और उससे यूनिट बनता है। यह प्लांट हैदराबाद में चल रहा है। अभी हमारी कंपनी इतने बड़े पैमाने पर नहीं है लेकिन जल्दी ही हमारी कंपनी (एमएनसी) से जुड़ने वाली है। हमारी कोशिश है कि हम ज्यादा से ज्यादा मात्रा में प्लास्टिक से पेट्रोल बनाया जाये। उन्होंने बताया कि मैं अपना बनाया हुआ ही पेट्रोल अपनी गाड़ियों के लिए प्रयोग करता हूँ।”
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ऐसे कम करें प्लास्टिक का उपयोग
प्रो. डॉ. डी. हिमांशु रेड्डी कहते हैं “मेरे हिसाब से लोगों को कपड़े का बना बैग प्रयोग करना चाहिए और साथ ही डिस्पोजल की जगह मिट्टी के बर्तन और पत्तल के बर्तनों का प्रयोग करना चाहिये। हर चीज़ का अपना एक फ़ायदा और नुकसान दोनों होता है, जैसे प्लास्टिक ने आम आदमी की जिंदगी आसान बना दिया है। इसके साथ ही जिंदगी जल्दी खत्म करने का रास्ता भी बना दिया है।”
1- डिस्पोजल गिलास और प्लेट का प्रयोग न करें
प्लास्टिक के ग्लास, प्लेट और चम्मच का प्रयोग खतरनाक होता है। एक्सपर्ट का कहना है कि यह कई तरह से हेल्थ पर असर डालती हैं। डाइजेशन सिस्टम को डिस्टर्ब करने के साथ ही यह पथरी की शिकायत को बढ़ाता है। सिंथेटिक पॉलीमर से बने होने की वजह से इनका केमिकल धूप और मौसम की वजह से असर डालता है। इनको जलाने पर भी हानिकारक चीजें निकलती हैं। कार्बन डाईऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस निकलती है। यह लोगों के शरीर को नुकसान पहुंचाती है।
2- बाहर से खरीद कर पानी का प्रयोग न करें
क्या आप बाजार में मिलने वाला बोतल में बंद पानी पीतें हैं? अगर हां तो आज से ही उसे पीना बंद कर दीजिए। दरअसल एक ताजा रिसर्च से सामने आया है जिसमें यह बात निकलकर आई है कि बोतल बंद पानी में प्लास्टिक के कण होते है जो आपको गंभीर रूप से बीमार करने के लिए पर्याप्त हैं।
स्रोत- https://archive.org/details/gov.in.is.14534.1998/page/n5
https://www.thomasnet.com/articles/plastics-rubber/plastic-recycling-codes