इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस समय भारत दौरे पर हैं। दोनों देशों का कृषि क्षेत्र में आपसी सहयोग पर जोर है। इजरायल फल, फूल, सब्जियों और शहद के उत्पादन क्षेत्र में भारत का सहयोग करने जा रहा है।
मधुमक्खी पालन से बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है। बशर्ते आपको इसके बारे में सही जानकारी होनी चाहिए। मधुमक्खी पालकों को मधु के कारोबार में निवेश करने से पहले ये जरूर जान लेना चाहिये कि देश के किस हिस्से में फूलों के मधु की उपलब्धता है। अगर आपको ये जानकारी हो तो मधुपालन आपके लिए मुनाफे का कारोबार हो सकता है।
फूलों का मधु (nactar) शहद का कच्चा उत्पाद होता है। जब पौधों की बड़ी संख्या से मधुमक्खियां फूलों के मधु को खाने के रूप में फूलों से ले लेती हैं तो उस अवस्था को शहद प्रवाह अवधि कहा जाता है। अगर किसी विशेष प्रजाति के पौधों की अच्छी संख्या से प्राप्त टाइल फूलों का मधु उपज प्रचुर मात्रा में है तो इसे प्रमुख शहद प्रवाह अवधि कहा जाता है।
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जब फूलों का मधु एकत्र करने की मात्रा कम होती है तो इसे एक छोटी प्रवाह अवधि कहते हैं। जब कोई शहद प्रवाह नहीं होता है तो उसे एक अकाल अवधि कहा जाता है। भारत में आप मधुमक्खी पालन कहां कर सकते हैं, कहां आप मुधमक्खी से ज्यादा लाभ उठा सकते हैं, चरागाहों की उपलब्धता के आधार पर हम इस खबर में कुछ ऐसी ही जगहों का जिक्र आज करेंगे। देश के इन क्षेत्रों में मधुमक्खियों के लिए चरागाह भरपूर मात्रा में उपलब्ध है।
कुल्लू घाटी
हिमाचल प्रदेश में कुल्लू घाटी मधुमक्खी के लिए सबसे बेहतर जगह है क्योंकि यहां बड़ी संख्या में उपलब्ध पराग वाले पौधे उपलब्ध हैं। इसमें दो प्रमुख शहद प्रवाह अवधि हैं, वसंत और शरद ऋतु। पराग ज्यादातर वसंत ऋतु के दौरान फल के फूलों से या रुहल्दी (बारबेरी) से आता है। पल्लिंटहस (कुल्लू में पाया जाने वाला एक प्रकार का फूल) शरद ऋतु के समय ज्यादा मात्रा में पराग पैदा करता है। कुल्लू घाटी में अकाल अवधि लंबी अवधि का नहीं होता। यह गर्मियों में मध्य जून से मध्य अगस्त तक होता है।
कांगड़ा घाटी
हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा घाटी मधुमक्खी पालन के लिए उपयुक्त है, क्योंकि यहां पूरे साल मधुमक्खी चरागाह अच्छी स्थिति में होता है। वसंत ऋतु के दौरान के यह जगह प्रमुख शहद उत्पादन वाला जगह होता है जबकि बीच सर्दियों के दौरान यहां औसतन शहद उत्पादन हो सकता है। बाकी समय में शहद प्रवाह बहुत कम होता है।
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पंजाब के मैदान
पंजाब के मैदान मधुमक्खी पालन के लिए एक उपयुक्त स्थान नहीं हैं, क्योंकि सर्दी और वसंत में यहां बहुत थोड़े समय के लिए शहद का अच्छा उत्पादन हो सकता है। मध्य मई से लेकर मध्य नवम्बर तक, अकाल अवधि का लंबा समय है। इस समय मधुमक्खियां चारा इकट्ठा करने के लिए सक्रिय होती हैं लेकिन इन इलाकों में चरागाह नहीं होता। इसके अलावा मधुमक्खियों को दुश्मनों के बड़े झुंड का सामना करना पड़ता है।
मधुमक्खी पालन उद्योग करनेवालों की खादी ग्राम उद्योग कई मात्रा में मदद करता है। मधुमक्खी पालन एक लघु व्यवसाय है, जिससे शहद एवं मोम प्राप्त होता है। यह एक ऐसा व्यवसाय है, जो ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का पर्याय बनता जा रहा है। गौर करनेवाली बात यह है कि शहद उत्पादन के मामले में भारत पांचवें स्थान पर है।
कर्नाटक
कर्नाटक राज्य का पश्चिमी घाटी क्षेत्र शहद और मोम के लिए प्रसिद्ध है। यहां शहद मध्य जनवरी से जून तक होता है। मधुमक्खियों को भरपूर मात्रा में पराग, डायोस्पिरोस नॉटाना, डी कैन्डोलेना, टिननालिया क्रेनुलाटा, विटेक्स लेउकोनीलॉन और एलेकॉर्पस सेट्र्रंटस जैसे पौधों से मिलता है। यहां पराग साइजीगियम, स्कील्स कैरिओफिलेटस और स्फीरा वेनुलोसा से प्राप्त होता है। मानसून का मौसम जून से अगस्त तक है।
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मानसून के बाद की अवधि मध्य अगस्त से लेकर नवंबर तक होती है, इस समय मामूली शहद प्रवाहित होता है। एनीटैमा, होलीगरना, लिटसेआ, इपातियन, कैसिया इत्यादि से बहुत क मात्रा में पराग और फूलों का रस उपलब्ध होता है। सर्दियों के मौसम नवम्बर से जनवरी तक फिर से एक मामूली शहद प्रवाह अवधि है। कैलामुस, सीरोटा जैसे पौधों से बहुत कम चारा उपलब्ध है।
कश्मीरी घाटी
कश्मीर घाटी में दो अलग-अलग अवधि हैं। प्रमुख शहद प्रवाह अवधि और सर्दियों की अकाल अवधि। प्रमुख शहद का समय वसंत से शुरू होता है और शरद ऋतु में समाप्त होता है। यहां अतिरिक्त शहद के लिए चारा के स्रोत रॉबिनी, एस्क्यूलस हिप्पोकैस्टुनम, प्रूनस एवियम, रोजा एसपीपी, प्लेट्रिन्थस रूगसस, ब्रैसिका जेंसीआ, फागपीरियम एस्क्यूलेनम, आईरिस एउसाटा, क्रोकस लार और लंपीटियंट्स ग्रंथिलीफेरा जैसे पौधे हैं।
कश्मीरी घाटी अपने पारंपरिक मधुमक्खी पालन के लिए जाना जाता है जिसके लिए नाममात्र खर्च और ध्यान की आवश्यकता होती है। कश्मीर में आधुनिक मधुमक्खी पालन तकनीकों को अपनाने से पहले केवल एकमात्र सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है, वो है एसीयन और वायरस रोगों से बचाव की।
उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र
उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में मधुमक्खी चरागाह पूरे वर्ष उपलब्ध है। खेती और जंगली पौधों दोनों पराग और फूलों का मधु प्रदान करते हैं। मार्च के शुरुआती महीनों में प्राकृतिक झुकाव होता है अप्रैल से जून की अवधि एक प्रमुख शहद प्रवाह अवधि है।
बरसात का मौसम अच्छी तरह से मध्य जून से मध्य सितंबर तक चिह्नित है। शहद मधुमक्खियों को पराग और फूलों का मधु इकट्ठा करने के लिए कम समय मिलता है, लेकिन मधुमक्खी चरागाह कुछ पौधों से उपलब्ध हैं, जैसे टिननालिया लोमेनलोसा और कई जड़ी बूटियां और घास। बरसात के मौसम में ततैया इन फसलों की सबसे बड़ी दुश्मन है। अक्टूबर से शुरू होकर नवंबर में खत्म होने शरद ऋतु में मधुमक्खी को बसाने का सबसे अच्छा समय होता है।
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राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य और हाईटेक नेचुरल प्रोडक्ट्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक देवव्रत शर्मा कहते हैं “मधुमक्खी पालन के साथ भारत में सिर्फ शहद का चित्र सामने आता है, लेकिन यह बात काफी कम लोग जानते हैं कि इस प्रक्रिया में मधुमक्खियां परागण क्रिया करती हैं जो खेती के उत्पादन को काफी बढ़ा सकता है।
वे आगे कहते हैं “इसके अलावा ऑफ सीजन में मधुमक्खी पालन से प्राप्त होने वाले डंक, ‘प्रोपोलिस’, छत्ते से प्राप्त होने वाले मोम इत्यादि की बिक्री करके किसान अच्छी आय कमा सकते हैं। उन्होंने कहा, अर्जेन्टीना, दक्षिण कोरिया, यूक्रेन, अमेरिका, ब्राजील, चीन जैसे दुनिया के कई देशों में प्रोपोलिस (मोमी गोंद) का दवाओं के लिए भारी इस्तेमाल किया जा रहा है और विदेशों में इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन के साथ तमाम दवाओं में हो रहा है।”
कालोनियों के विकास के लिए फिर से अच्छा है। इस अवधि के दौरान पीछे की रानी की प्रवृत्ति मधुमक्खी कालोनियों में पाया जाता है। इस अवधि में इयूजेनिया, प्रुनास, पेलट्रानलहस आदि जैसे पौधों से एक अच्छा शहद प्रवाह है। दिसंबर से जनवरी तक सर्दियों के दौरान मधुमक्खी चरागाह और मधुमक्खी गतिविधियों की उपलब्धता दोनों में गिरावट आई है। इसलिए, शीतकालीन पैकिंग सर्दियों की ऊंचाई और गंभीरता के अनुसार आवश्यक है।
चोटेनागपुर क्षेत्र
बिहार में चोटेनागपुर क्षेत्र मधुमक्खी चरागाह के उत्पादन में काफी आगे है। जुलाई और अगस्त को छोड़ दें यहां पूरे साल मधुमक्खियों के लिए चारा उपलब्ध रहता है। इस क्षेत्र में नीलगिरी, आम, लीची, जामुन, कर्नल, इमली, गुलमोहर, बियर, नाइजर, अरहर, ड्रमस्टिक आदि के पौधे पाये जाते हैं।
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अण्डमान और निकोबार
यहां दिसंबर से मई के बीच की समय सबसे अच्छा माना जाता है शहद के लिए। लेकिन बारिश के कारण मधुमक्खी जुलाई से सितंबर के तीन महीनों के दौरान कम सक्रिय होती हैं और कृत्रिम आहार की आवश्यकता होती है। बारिश से थोड़ा बहुत नुकसान होता है, बावजूद इसके यहां पर्याप्त मात्रा में मधुमक्खी चरागाह उपलब्ध है।
महाबलेश्वर क्षेत्र
यह क्षेत्र मधुमक्खी चरागाहों के लिए बहुत समृद्ध है। इस क्षेत्र में बरसात का मौसम जून से सितंबर के दौरान होता है। शहद के लिए जनवरी से फरवरी की अवधि बहुत अच्छी मानी जाती है।