Gaon Connection Logo

कृषि वैज्ञानिक ने बताए धान की फसल में लगने वाले रोग-कीट व उसके उपचार

agriculture

लखनऊ। धान की रोपाई लगभग पूरी होने पर है। इस बार समय पर हुई अच्छी बारिश की वजह से धान की रोपाई ज्यादा क्षेत्र में हुई है। फसल से अच्छा उत्पादन हो इसके लिए सिर्फ सिंचाई व ऊर्वरकों का समय पर छिड़काव की काफी नहीं है, इसके लिए किसान को समय-समय पर देखरेख करते रहनी होगी, ताकि किसी प्रकार का रोग व कीट लगे तो उसका तुरंत उपचार किया जा सके, क्योंकि अगर समय पर इनका उपचार नहीं किया गया तो किसान काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके लिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि धान की फसल में कौन-कौन से कीट व रोग लग सकते हैं, किसान उसके कैसे पहचानें और उसका उपचार क्या है।

ये भी पढ़ें : जानिए किसान कैसे पहचानें कि खाद असली है या नकली

बिरसा एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी रांची के कृषि वैज्ञानिक डॉ. देवेंद्र नारायण सिंह ने गाँव कनेक्श को बताया, ”धान की फसल में झुलसा, बैक्टीरियल लीफ लाइट व खैरा रोगों का ख़तरा रहता है और आगर कीटों की बात करें तो तना भेदक और गंधी कीट का सबसे अधिक खतरा रहता है।” उन्होंने बताया, ”किसान को धान की रोपाई करने के 15-20 दिन के बाद किसान फसल में देखते रहें कि कहीं कोई रोग व कीट का प्रकोप तो नहीं हो रहा है।”

ये भी पढ़ें : किसान ऐसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का ले सकते हैं लाभ, पानी की बचत के साथ होगा अधिक उत्पादन

रोग व कीट को कैसे पहचाने और क्या है उसका उपचार

खैरा रोग

यह रोग जिंक की कमी के कारण होता है। इस रोग में पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए 5 किग्रा जिंक सल्फेट को 20 किग्रा0 यूरिया अथवा 2.5 किग्रा बुझे हुए चूने को प्रति हेक्टेयर लगभग 1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

ये भी पढ़ें : अगर धान की फसल से अधिक पैदावार चाहिए तो हमेशा ध्यान रखें ये चार सिद्धांत

झुलसा रोग

यह बीमारी जीवाणु के द्वारा होती है। पौधों में यह रोग छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक कभी भी हो सकता है। इस रोग में पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते है। सूखे पीले पत्तों के साथ-साथ राख के रंग जैसे धब्बे भी दिखाई देते है। ऐसे लक्षण दिखने पर स्टेप्टोसाइक्लीन दवा चार ग्राम को पांच सौ ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड के साथ आठ सौ से एक हजार लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना लाभकारी होगा।

ये भी पढ़ें : समझिये फसल बीमा योजना का पूरा प्रोसेस, 31 जुलाई तक करें आवेदन

गंधी कीट

फसल में गंधी कीट लगने से पत्तियां सूखने लगती हैं और हांथ लगाने से हांथ में आ जाती है। इसके लिए किसान को मोनो प्रोटोसास या क्लोरो प्रोटोसास जो मिल जाए उसका दो एमएल प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

तना भेदक कीट

तना भेदक कीट फसल के तने में छेद कर देते हैं और फसल सूखने लगती है, इसके बचाव के लिए मोनो प्रोटोसास या क्लोरो प्रोटोसास जो मिल जाए उसका दो एमएल प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

ये भी पढ़ें : जानिए किसान अच्छी पैदावार के लिए किस महीने में करें किस सब्ज़ी की खेती

पत्ती लपेट कीड़ा

इस कीड़े की सूंडी पौधों की कोमल पत्तियों के सिर की तरफ से लपेटकर सुरंग-सी बना लेती है और उसके अंदर-अंदर खाती रहती है। फलस्वरूप पौधों की पत्तियों का रंग उड़ जाता है और पत्तियां सिर की तरफ से सूख जाती है। अधिक नुकसान होने पर फसल सफेद और जली-सी दिखाई देने लगती है। अगस्त से लेकर अक्टूबर तक इसके द्वारा नुकसान होता है।

इसके नियंत्रण के लिए कीड़ों को लाइट ट्रेप पर इकठ्ठा करके मार सकते है। एण्डोसल्फान (35 ईसी.) दवा की एक लीटर मात्रा 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव किया जाया जा सकता है।

ये भी पढ़ें : आपकी फसल को कीटों से बचाएंगी ये नीली, पीली पट्टियां

More Posts