शारीरिक और मानसिक समस्या के समाधान में है योग की महत्वपूर्ण भूमिका

मन के विकारों को दूर करना ही योग है। योग कोई धर्म नहीं है, यह एक जीवन जीने की कला है जिसका लक्ष्य है स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन, जो आज के परिपेक्ष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
#International yoga day

वर्तमान समय में हमारे समाज में विकास की गति तेज हो रही है। मनुष्य का रहन-सहन, सोचने का तरीका, कार्य करने का तरीका, खान-पान इत्यादि में बहुत तेजी से बदलाव आ रहे हैं। जहां एक तरफ मनुष्य के जीवन में आरामदायक स्थिति बढ़ी है वहीं दूसरी तरफ शारीरिक व्याधियां एवं मानसिक तनाव भी बढ़ता जा रहा है। मनुष्य अपनी बुद्धि के बल पर अत्याधुनिक सुविधाओं के लिए प्रकृति से प्राप्त हुई सम्पदाओं का दोहन कर रहा है, चारों तरफ पर्यावरण प्रदूषण का संकट गहरा होता जा रहा है।

मनुष्य के उपभोगवादी प्रवृत्ति के कारण प्राकृतिक आपदायें बढ़ती जा रही हैं। कुछ साल पहले केदारनाथ में बादल फटा जिससे आस पास के क्षेत्रों में भरी नुक्सान हुआ था। यह भारी नुक्सान मनुष्यों के अतृप्त लालसाओं का अंजाम था क्योंकि जहां से प्राकृतिक रूप से पानी की निकासी होती है वहीं पर मनुष्यों ने होटल और रेस्टोरेंट इत्यादि बना लिये, जो मनुष्य इन प्राकृतिक आपदाओं में सुरक्षित बच गये, उनमें से ज्यादातर मानसिक रोग के शिकार हो जाते हैं।

विकास की अत्याधुनिक तकनीक ने मनुष्यों को जितना सम्पन्न बनाया है वहीं इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं, उसमें से एक है जलवायु परिवर्तन। इसका प्रभाव लगभग पूरे विश्व में देखा जा रहा है जैसे की जंगल में आग लगना , सूखा पड़ना , समुद्र का जलस्तर बढ़ना इत्यादि।

इक्कीसवीं सदी के पहले दो दशकों में धरती का औसत तापमान 0.99 डिग्री सेल्सियस बढ़ा (1850 से 1990 तक) पर वहीं पर 2011 – 2020 के दशक में तापमान में 1.09 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया। जिसका परिणाम किसी न किसी रूप में सामने आरहा है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार इस बार मार्च 2022, 122 सालों में सब से गर्म महीना रहा है। भारत का किसान पूरी तरह से बारिश पर निर्भर है और इस जलवायु परिवर्तन के कारण उसकी फसलें या तो ख़राब हो गई या फिर उत्पादन न के बराबर हो गया। किसान इसके चलते शारीरिक एवं मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं।

इस समय पूरा विश्व कोविड के रूप में एक भयंकर संकट का सामना कर रहा है। कोविड के चलते पिछले दो सालों में लोग अपने घर में कैद हो गए थे। कोरोना अभी समाप्त नहीं हुआ कि रूस और यूक्रेन में युद्ध शुरू हो गया। पूरा विश्व इस युद्ध के परिणाम को भुगत रहा है। हम अपने देश की ही बात करें तो इस युद्ध कि वजह से गैस सिलिंडर एवं फ्यूल्स के दाम एकाएक बढ़ गए। जो विद्यार्थी रूस और यूक्रेन अध्यन के लिए गए थे बड़ी मुश्किल से देश वापस लौटे हैं। सोचिए उन विद्यार्थियों का शरीर और मन , कितना मानसिक अवसाद से भरा होगा?

वर्तमान हालात में कोरोना कि भयावह और युद्ध की मार्मिक स्थिति, पर्यावरण प्रदूषण इत्यादि बिमारियों को बढ़ा रही हैं, बेरोजगारी बढ़ रही है, युवाओं की नौकरियां छिनती जा रही हैं प्राइवेट नौकरी करने वाला बहुत तनाव में हैं इन सब की वजह से आत्महत्या के काफी मामले सामने आ रहे हैं।

वर्तमान स्थिति में लोगों में असंतोष काफी बढ़ा है। मनुष्य के पास जो है वह उससे खुश नहीं है जिसके बढ़ने से पारिवारिक असंतोष बढ़ रहा है जिससे सामाजिक, आर्थिक,राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय असंतोष बढ़ता जा रहा है।

वर्तमान स्थति में योग का परिप्रेक्ष्य

इस असंतोष वाली ज़िन्दगी में , वैश्विक महामारी में, शारीरिक और मानसिक समस्या के समाधान में योग की एक महतवपूर्ण भूमिका है। मनुष्य को स्वस्थ तभी कहा जा सकता है जब वह शारीरिक , मानसिक ,आध्यात्मिक , बौद्धिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ हो।

योग के अभ्यास से व्यक्ति को अपने मन ,शरीर पर नियंत्रण करने का सहयोग मिलता है। योग का अर्थ है एकत्व अथार्त मन और शरीर का एकत्व। वर्तमान स्थिति में जहां मनुष्य के अंतर्मुखी और बहुमुखी स्थिति में असंतुलन पैदा हो गया है। योग से मन एवं शरीर में सामंजस्य बैठाया जाता है।

भारत में योग हज़ारों सालों से चला आ रहा है। लेकिन वर्त्तमान समय में योग की अहमियत में वृद्धि हुई है। यह दिमाग और शरीर या यूं कहें मन और शरीर की बीच सामंजस्य प्रदान करता है।विचार, स्वास्थ्य और संयम में समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है। वर्तमान में योग सिर्फ भारत देश के लिए ही नहीं पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण विषय बना हुआ है।

योग की परिभाषा

श्री श्री रविशंकर के अनुसार योग सिर्फ आध्यात्मिक एकीकरण से अपनी कल्पनाओं से परे की भनक देता है। ओशो के अनुसार योग को धर्म, आस्था एवं अंधविश्वास से नहीं बांध सकते है। यह एक विज्ञान है जो हमे जीने की कला सिखाती है । और सभी तरह के बंधनों से मुक्ति का द्वार दिखता है। बाबा रामदेव के अनुसार मन को न भटकने देना, एक जगह स्थिर रखना ही योग है।

आज का योग जो सुत्यवस्थित तरीके से है वो महर्षि पतंजलि ने योग को अपने योग सूत्र में इस तरह परिभाषित किया है “मन के विकारों को दूर करना ही योग है। जैसा कि ऊपर बताया गया है की योग कोई धर्म नहीं है, यह एक जीवन जीने की कला है जिसके लक्ष्य है स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन जो आज के परिपेक्ष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

योग से शारीरिक एवं मानसिक सामंजस्य के द्वारा मन को शांत एवं शरीर को स्वस्थ बनाया जा सकता है। तनाव एवं चिंता को कैसे कम किया जाये उसका योग के द्वारा प्रबंध किया जाता है। इसलिए आज की वर्तमान स्थिति में योग की महत्वपूर्ण भूमिका है।

योग के माध्यम से श्वसन प्रक्रिया, जीवन को जीने की शक्ति, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता एवं स्वस्थ जीवन शैली को बनाये रखने में मदद मिलती है। इस तरह योग के अनगिनत लाभों को देखते हुए आज पूरा विश्व योग को पूरे मन से अपना रहा है।

इस प्रकार योग के अनगिनत लाभों को देखते हुए आज पूरा विश्व योग को पूरे मन से अपना रहा है। मैं यही पर एक कहानी के साथ योग की वर्तमान स्थिति में उपयोगिता को विराम देना चाहूंगी। कहानी कुछ इस प्रकार है :- प्लेन आकाश में अपनी गति से उड़ रहा था। तभी यात्रियों को सूचित किया गया की कृपया सभी यात्री अपनी सीट बेल्ट बांध ले क्योंकि बहार का मौसम ख़राब हो गया है। सभी यात्री लोग तनाव ग्रसित हो गए। कोई ईश्वर को याद करने लगा, कोई रो रहा था, किसी को भयंकर पसीने आ रहे थे कोई जो है प्लेन के प्रणाली को कोस रहा था।

प्लेन बहुत तेजी से हिल रहा था मानो की बस अब सब कुछ खत्म होने वाला है। उसी प्लेन में एक बारह साल की छोटी बच्ची बैठी थी पर वह सहज भाव से खिड़की से प्लेन के बाहर का दृश्य देख रही थी, मानों की कुछ हुआ ही नहीं। अचानक कुछ समय पश्च्यात प्लेन वापस से स्थिर हो गया , बहार का मौसम ठीक होने लगा तब जाके लोगो का व्याकुलता एवं शारीरिक रूप से ठीक हुए। तभी उस लड़की के पास बैठे यात्री ने उस लड़की से पूछा की तुम्हे बिलकुल डर नहीं लगा? उस लड़की का उत्तर यह था “इस प्लेन को मेरे पिता जी उड़ा रहे हैं और मुझे अपने पिता जी पर पूरा भरोसा है। वो मेरे साथ कुछ ना होने देंगे।”

उस लड़की के उत्तर ने मुझे यहां योग को आज के परिस्थिति के साथ जोड़ने को लालायित कर दिया की जिस तरह वर्तमान स्थिति में असंतोष, प्रदूषण, महामारी, बेरोजगारी इत्यादि विषम परिस्थितियां बढ़ रही हैं उसमें अगर हम योग का हाथ थम ले तो हम किसी भी परिस्थिति में सहज रह सकते हैं और उसका डट कर मुकाबला कर सकते हैं। 

(सुष्मिता मुखर्जी दधीचि, शेर-ए-कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू-कश्मीर के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं) 

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