मजदूरी के अधिकार
न्यूनतम मजदूरी अधिनियम,1948 में विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए न्यूनतम मजदूरी की दरें तय की गयी हैं।
1- मजदूरी के बारे में अपने नजदीकी श्रम कार्यालय में से कोई भी व्यक्ति किसी भी वर्ग की न्यूनतम मजदूरी का पता कर सकता है ।
2- अगर नियोक्ता न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी दे रहा है तो श्रम निरीक्षक के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं ।
3- अगर कर्मचारी न्यूनतम मजदूरी से कम रकम पर काम करने को तैयार हो जाए, तो भी नियोक्ता का यह कर्तव्य है कि वह उसे न्यूनतम मजदूरी दे।
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मजदूरी का भुगतान
1-मजदूरी का भुगतान हमेशा नकद और पूरा होना चाहिए।
2-मजदूरी का भुगतान हर हालत में अगले महीने की दस तारीख तक कर दिया जाना चाहिए।
3-मजदूरी में कोई कटौती कानून के मुताबिक ही होनी चाहिए।
समान कार्य के लिए समान मजदूरी
समान वेतन अधिनियम, 1976 में एक ही तरीके के काम के लिए समान वेतन का प्रावधान है।
1-अगर कोई महिला अपने साथ काम करने वाले पुरुष जैसा ही काम करती है तो उसे पुरुष से कम वेतन नहीं दिया जा सकता है।
2-महिला (कानूनी पाबंदी वाली नौकरियों को छोड़कर) और पुरुष में नौकरी में भर्ती और सेवा शर्तों में कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा।
काम करने के निष्चित घंटे
1-किसी कर्मचारी से रोज नौ घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जाना चाहिए।
2- नौ घंटे से ज्यादा काम के लिए, अतिरिक्त मजदूरी दी जानी चाहिए।
3-कर्मचारी को सप्ताह में एक दिन वेतन-सहित अवकाश जरुर मिलनी चाहिए।
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कर्मचारियों को मुआवजा
कामगार मुआवजा अधिनियम, 1923 के अंदर्गत कर्मचारियों को अनेक परिस्थितियों में मुआवजा पाने का अधिकार है।
1-कर्मचारी को ड्यूटी के दौरान किसी दुर्घटना में चोटिल होने पर मुआवजा पाने का अधिकार ।
2-काम पर आते या काम से घर जाते समय दुर्घटना होने पर भी कर्मचारी को मुआवजा पाने का अधिकार।
3-नियोक्ता का काम करने के दौरान दुर्घटना होने पर भी मुआवजा पाने का अधिकार ।
4-काम की प्रकृति की वजह से अगर कर्मचारी को कोई बीमारी लगती है तो कर्मचारी को मुआवजा पाने का अधिकार है।
5-लेकिन अगर बीमारी काम छोड़ने के दो साल बाद लगती है तो कर्मचारी को मुआवजे का अधिकार नहीं है।
6-अगर दुर्घटना या बीमारी से कर्मचारी की मौत हो जाती है तो उसके आश्रित संबंधी को मुआवजा दिया जायेगा।
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मुआवजे का हकदार
1-फैक्ट्रियां, खानें, रेलवे , डाक, तार, निर्माण, इमारतों का रख-रखाव,
2-किसी इमारत में इस्तेमाल , परिवहन तथा बिक्री के लिए सामान रखना, जहां 20 से ज्यादा कर्मचारी हों।
3-टैक्टर अथवा अन्य मशीनों से खेती-बाड़ी, इसमें मुर्गी फार्म, डेयरी फार्म आदि शामिल हैं।
4-बिजली की फिटिंग के रख-रखाव का काम।
किस चोट पर मुआवजा
1-ऐसी चोट जिससे मौत हो जाए, शऱीर का कोई अंग कट जाए या आंख की रोशनी चली जाय आदि।
2-चोट की वजह से लकवा या अंग-भंग जैसी हालत हो जाए, जिसकी वजह से व्यक्ति रोजी-रोटी कमाने लायक नहीं रहे।
3-ऐसी चोट जिसकी वजह से कर्मचारी कम से कम तीन दिन तक काम करने के लायक ना रहे।
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किस चोट पर मुआवजा नहीं
1-शराब पीने या नशीली चीजों के सेवन से दुर्घटना हुई हो।
2-कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए बने किसी नियम या निर्देश का जान-बूझकर उल्लंघन करने से हुई दुर्घटना।
3-कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए उपलब्ध उपकरणों का जानबूझकर इस्तेमाल नहीं करने से हुई दुर्घटना।
मुआवजे लिए प्रमाण
1-कर्मचारी को सबसे पहले अपनी मेडिकल जांच करा लेनी चाहिए। जांच की रिपोर्ट की कॉपी अपने पास रखें।
2-कर्मचारी दुर्घटना की रिपोर्ट नजदीकी थाने में लिखवा देना चाहिए । रिपोर्ट में चोट का पूरा ब्योरा होना चाहिए।
3-दुर्घटना के चश्मदीद गवाह होने चाहिए।
महिला कर्मचारियों को विशेष अधिकार
1-फैक्ट्रियों में महिलाओं के लिए अलग प्रसाधन कक्ष होना चाहिए।
2-अगर किसी फैक्ट्री में 30 से ज्यादा महिला कर्मचारी हों तो वहां बच्चों के लिए शिशुगृह की व्यवस्था होनी चाहिए।
3-फैक्ट्री में काम सवेरे 6 बजे से शाम 7 बजे के बीच होना चाहिए।
4-मशीन में तेल डालने या साफ कराने का काम नहीं कराया जाना चाहिए।
5-एक सप्ताह में 48 घंटे से ज्यादा काम नहीं कराया जाना चाहिए।
6-लगातार 5 घंटे से ज्यादा काम नहीं कराया जाना चाहिए।
7-खानों में जमीन के नीचे काम करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए।
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मुआवजे का दावा
1-दुर्घटना होने पर सबसे पहले नियोक्ता को नोटिस दें, नोटिस में कर्मचारी का नाम, चोट के कारण , तारीख और स्थान लिखें।
2-अगर नियोक्ता मुआवजा नहीं देता या पर्याप्त मुआवजा नहीं देता है तो कर्मचारी लेबर कमिश्नर को आवेदन दे।
3-आवेदन में कर्मचारी का पेशा, चोट की प्रकृति, चोट की तारीख, स्थान , नियोक्ता का नाम, पता नियोक्ता को नोटिस देने की तिथि, अगर नियोक्ता को नोटिस नहीं भेजा हो तो नोटिस नहीं भेजने का कारण का उल्लेख करें ।
3-यह आवेदन दुर्घटना होने के 2 साल के अंदर दे दिया जाना चाहिए। विशेष हालात में 2 साल के बाद भी आवेदन किया जा सकता है।
4-कुछ मामलों में मुआवजा श्रम आयुक्त के जरिये ही दिया जा सकता है। जैसे, कर्मचारी की मृत्यु की स्थिति में, उसके संबंधियों को श्रम आयुक्त के माध्यम से ही मुआवजा दिया जा सकता है।
महिलाओं का मातृत्व लाभ
मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 में महिला कर्मचारियों के लिए कुछ विशेष लाभ दिए गए हैं।
1-प्रसव के पहले और बाद में छह-छह सप्ताह का पूरे वेतन का अवकाश( 12 सप्ताह का अवकाश प्रसव के बाद भी लिया जा सकता है, इस अवधि का वेतन दे दिया जाना चाहिए)
2-गर्भस्राव हो जाने पर छह सप्ताह का अवकाश।
3-गर्भावस्था, प्रसव या गर्भस्राव की वजह से अस्वस्थ हो जाने पर वेतन सहित एक महीने का अतिरिक्त अवकाश।
4-अगर नियोक्ता के संस्थान में प्रसव से पहले तथा प्रसव के बाद की चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं तो चिकित्सा बोनस दिया जाना चाहिए।
5-शिशु के 15 महीने का होने तक रोजाना काम के बीच सामान्य अवकाश के अलावा, शिशु को स्तनपान कराने के लिए दो बार ब्रेक दिया जाना चाहिए।
6-गर्भावस्था के अंतिम महीने में महिला कर्मचारी से भारी काम नहीं कराया जाना चाहिए।
7-अगर महिला की प्रसव के बाद मौत हो जाती है तो नियोक्ता को उसके परिवार को 6 सप्ताह का वेतन देना होगा।
8-जबकि नवजात शिशु की मौत हो जाने पर , शिशु की मृत्यु हो जाने तक की अवधि तक का ही वेतन देना होगा।
9-जिस महिला ने प्रसव से पहले, पिछले 12 महीनों में कम से कम 80 दिन नियोक्ता के संस्थान में काम किया है, वहीं महिला इन लाभों को पाने की अधिकारी है।
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गर्भावस्था का नोटिस
1-महिला कर्मचारी को प्रसव की संभावित तिथि, छुट्टी लेने की संभावित तिथि और प्रसव के दौरान किसी दूसरी जगह नहीं करने के विवरणों के साथ गर्भावस्था का नोटिस देना चाहिए।
2-यह नोटिस प्रसव के बाद भी दिया जा सकता है।
3-अगर किसी महिला ने गर्भावस्था का नोटिस नहीं दिया है तो इस आधार पर नियोक्ता उसे मातृत्व से जुड़े लाभ और सुविधाएं देने से मना नहीं कर सकता है।
शिकायतों का निपटारा
1-अगर नियोक्ता कर्मचारी को उसके लाभ नहीं देता है तो वह श्रम कार्यालय अथवा श्रम आयुक्त के पास शिकायत कर सकता है।
2-500 से ज्यादा कर्मचारियों वाली फैक्ट्री तथा खान में और 300 से ज्यादा कर्मचारियों वाले बागान में कल्याण अधिकारी की नियुक्ति अनिवार्य है।
3-केंद्र सरकार के अनेक कार्यालय, अस्पताल तथा अन्य कल्याण अधिकारी नियुक्त करते हैं। जहां कर्मचारी शिकायत कर सकते हैं।