लखनऊ। खेतों, चारगाहों और मैदानों में उगने वाले जिन-खरतपतवार को किसान नुकसानदायक मानते हैं उसमें से कई ऐसे खरपतवार हैं, जो बहुत काम के होते हैं और औषधीयिों को बनाने में उनकी बहुत मांग है, लेकिन जानकारी के अभाव में किसान इन खरपतवार को पहचान नहीं पाते हैं। ऐसे में किसान इन खरपतवार से भी अपनी कमाई कर सकें इसको लेकर केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान जोधपुर ने किसानों इन खरपतवारों की औषधीय गुणों की पहचान करके किसानों को इन खरपतवार को अपनी अतिरिक्त आय का जरिया बनाने का काम कर रहा है।
यहां के निदेशक डॉ. ओपी यादव ने बताया ” चिरचिटा, पुननर्वा, इंद्रायन, शंख पुष्पी, चामकस, बड़ा गोखरू, बल, मकोय, सरफोका और त्रिकंटक जैसे खरपतवार की पहचान औषधीय पौधों के रूप में संस्थान के वैज्ञानिकों ने की है। बड़ी मात्रा में यह खरपतवार अपने आप उग जाती है, लेकिन किसानों को इसके बार में जानकारी नहीं है। किसानों को इसको लेकर जागरूक किया गया है। ”
शरदकालीन गन्ने की बुवाई कर सकते हैं शुरु
कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के पूर्व सचिव रहे डॉ. मंगला राय ने बताया ”देश का 38 प्रतिशत भू-भाग शुष्क और अर्धशुष्क है। जहां पर बड़ी मात्रा में ऐसे खरपतवार पाए जाते हैं जो बहुत गुणकारी होते हैं। औषधीय प्रजातियों की कुल आवश्यकता को केवल 25 प्रतिशत ही उत्पादित किया जा रहा है बाकी अपने आप उगते हैं। ऐसे में किसान इन औषधीयों की पहचान कर सकें और इसकी खेती कर सकें, इसके प्रशिक्षण की जरूतर है। ”
भारतीय शुष्क अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक पिछले एक दशक से देशभर में पाए जाने वाले खरपतवार के औषधीय गुणों पर शोध करके इन खरतवार से किसान कमाई कर सके इसके लिए काम कर रहा है।
पिछले 10 वर्षों में ऐसे बदलता गया iPhone, जानिए कैसा रहा 10 साल का सफर
चिरचिटा एक ऐसा ही खरपतवार जिसपर शोध किया गया है। जो झाड़ीनुमा पौधा होता है। यह देश के सभी क्षेत्रों में पाया जाता है। जो बंजर जमीनों और पेड़ों के नीचे उग जाता है। इसके बारे में जानकारी देते हुए कृषि वैज्ञानिक डा. प्रताप नारायण ने बताया कि यह एक ऐसी चीज है जिसका हर हिस्सा उपयोगी होता है। पथरी रोग, दांत सड़न, पेट की तकलीफ, रक्तस्राव, सांप और बिच्छू के डंक की दवाइयों को बनाने में इसका उपयोग होता है।
पुननर्वा भी एक ऐसा ही पौधा है जो देशभर में खरपतवार के रूप में पाया जाता है। इसकी शाखाएं जमीन पर फैली रहती हैं। जड़े की इसकी गहरी होती हैं। पत्तियों की उपरी सतह चमकदार होती है। कब्ज और मूत्र विकार संबंधी दवाओं को बनाने में इसकी बहुत मांग है। स्थानीय स्तर पर इसे सांटी के नाम भी जाना जाता है।
इंद्रायन भी एक ऐसा ही पौधा है जिसे खरतपवार माना जाता है। रेगिस्तानी क्षेत्रों में यह बहुत बड़ी मात्रा में पाया जाता है। इसके जड़ और बीज दोनों उपयोगी होते हैं। इसकी जड़ 20 रुपए किलों से बिकती है। पीलिया, मूत्र रोग, पेट की बीमारी, मानसिक तनाव और गठिया रोग में दवाओं के रूप में यह इस्तेमाल किया जाता है।
हिंदी दिवस : हिंदी के बारे में कुछ ऐसी बातें जिन्हें जानकर आपको अच्छा लगेगा
शंखपुष्पी जिस स्थानीय भाषा में सिन्तरी कहते हैं यह भी बड़े काम का खरपतवार है। बरसात के समय यह बड़ी सांख्या में अपने आप उग जाता है। यह एक रोयेंदार जमीन पर फैलने वाली बेल है। इसकी पत्तिया छोटी और आगे से नुकीली होती हैं। इसमें 2 से 3 फूल आते हैं। यह पूरा पौधा ही लाभकारी होता है। बुद्धिवधर्क, स्मरणशक्तिवर्धक और बलवर्धक दवाओं में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
बरसात के मौसम में भी चामकस नाम का एक खरपतवार उगता है। यह जमीन पर फैला रहता है। यह शाखाओं के रूप में होता है। स्त्रियों में माहवारी से संबंधित बीमारियों को दूर भगाने में इसका उपयोग किया जाता है।
बजर जमीनों में खेत के किनारे बरसात के समय में 30 से 50 सेंटीमीटर एक पौधा उग आता है। इसकी जड़े गहरे नारंगी रंग की होती हैं। यह बड़ा गोखरू कहलाता है। चर्म रोग, हृदय रोग की दवाओं में इसका इस्तेमाल होता है। आदिवासी और घुमक्कड़ जातियों ने सबसे पहले इस औषधीय की पहचान की हैं।