मानसिक सेहत पर बात करना क्यों है ज़रूरी

मानसिक स्वास्थ्य एक बहुत बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है फिर वो चाहे लोगों का डिप्रेशन में आना हो या दूसरी बीमारियाँ। मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर डॉ नेहा आनंद इसी विषय पर विस्तार से बता रहीं हैं।
#World Mental Health Day

मानसिक सेहत एक ऐसा मसला है, जिस पर लोग बात करने से कतराते हैं। जबकि दूसरी बीमारियों की तरह इससे भी आसानी से निपटा जा सकता है।

मनोवैज्ञानिक डॉ नेहा आनंद कहती हैं, “जब भी मानसिक रोगों या मानसिक स्वास्थ्य की बात आती है तो हम समझते हैं कि शायद कोई एबनॉर्मल्टी है या कोई ऐसी बीमारी है, जिस पर बात नहीं कर सकते हैं।”

वो आगे कहती हैं, “जैसे हमारे शरीर के दूसरे हिस्से हैं, उसी तरह हमारा दिमाग भी शरीर का पार्ट है, इसलिए इससे भागने की बजाए इस पर बात करनी होगी।”

हर मानसिक बीमारी पागलपन नहीं है

हमारी जो दिनचर्या है, जो हमारी परेशानियाँ हैं इनमें हम कब कौन सा फ़ैसला लेते हैं। इस पर हमारा दिमाग हमें गाइड करता है। लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता तो इसका मतलब ये नहीं है कि आपका दिमाग काम नहीं कर रहा है।

अगर आप मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक के पास जाते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि हम पागलपन के इलाज के लिए जा रहे हैं। अभी जैसे बच्चों में कई तरह की समस्याएँ आती हैं, जैसे कंसंट्रेशन (ध्यान) नहीं है, चिड़चिड़ापन बहुत ज़्यादा है तो मनोवैज्ञानिक के पास जा सकते हैं।

ब्रेन (दिमाग) में कोई ऐसी समस्या आती है, जिसमें न्यूरोट्रांसमीटर से जुड़ी कुछ प्रॉब्लम (दिक्कत) आती हैं, जैसे डिप्रेशन, ओसीडी, साइकोसिस या कई गंभीर रोग भी हैं। इनका ये मतलब नहीं है कि दिमाग काम नहीं कर रहा है।

दूसरी बीमारियों में डॉक्टर के पास जाते हैं तो मानसिक बीमारियों में क्यों नहीं

डॉ नेहा आनंद ने गाँव कनेक्शन से कहा, “कई बार ज़िंदगी में बहुत नेगेटिविटी आ जाती है, हमारा काम ठीक से नहीं चल रहा होता है या शादीशुदा ज़िंदगी में प्रॉब्लम आती हैं। ऐसे में आप मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक के पास जा सकते हैं। जैसे हमारे पेट में दर्द होता, सिर में दर्द होता है तो डॉक्टर के पास जाते हैं, हम इलाज कराते हैं। इसलिए दूसरी बीमारियों की तरह ही मन से जुड़ी व्यथा के लिए भी किसी प्रोफेशनल के पास जाना चाहिए। क्योंकि वो हमारी समस्याओं से ही समाधान निकालते हैं।

कोविड-19 महामारी के बाद बढ़ गए मानसिक बीमारियों के मामले

डॉ नेहा बताती हैं, साल 2020 के बाद से मानसिक बीमारियाँ बढ़ गईं हैं, महामारी में लोगों ने अपनों को खो दिया, नौकरियाँ चली गईं, इसका असर हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी ये माना है कि ये सबसे बड़ी समस्या के रुप में उभर कर आयी है। इसको लेकर लोगों को जागरूक होना होगा।

ग्रामीण इलाकों में मानसिक बीमारियों के प्रति बढ़ानी होगी जागरूकता

गाँव में जब किसी को कोई बीमारी होती है, तो लोगों को लगता है कि कोई भूत-प्रेत का साया आ गया है। इसके इलाज के लिए लोग झाड़-फूंक, ओझा तंत्र-मंत्र के चक्कर में फंस जाते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए।

डॉ नेहा कहती हैं, “जैसे गाँवों में मिर्गी बीमारी में जब लोग गिर जाते हैं, मुँह से झाग निकलता है, हाथ-पैर काँपने लगते हैं तो लोगों को यही लगता है कि भूत-प्रेत का साया है। जबकि मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम होती है, इसके इलाज के लिए न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाना होता है। इलाज से रोग ठीक हो जाता है। इसलिए गाँव में लोगों को जागरूक होना होगा।

मानसिक बीमारी के लक्षण समझ लीजिए

“अगर किसी में दो या तीन हफ्ते में बदलाव दिखने लगे जैसे कि मूड स्विंग आते हों, लोग अलग-थलग बैठने लगें, पुरानी बातों को याद करें। किसी चीज में मन न लगे, खाना -पीना छोड़ दे, आत्महत्या की बात करे, लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दे तो समझिए कि डिप्रेशन का शिकार है। इसलिए किसी मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक को दिखाएँ।” डॉ नेहा ने कहा। 

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