मोबाइल जितने काम का है उतना ही ख़तरनाक भी है, इसकी लत सिर्फ बच्चों को ही नहीं बड़ों को भी चुपके चुपके बीमार कर रही है।
मोबाइल और उसके स्क्रीन को देखने का एडिक्शन इतना ज़्यादा फैल गया है कि अब ये बीमारी का रूप लिया है। हम इसे स्क्रीन एडिक्शन भी कह सकते हैं।
बीमारी का रूप है मोबाइल एडिक्शन
स्क्रीन एडिक्शन का मतलब है लम्बे समय तक फोन, टीवी या इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का इस्तेमाल करना। वीडियो गेम के रूप में चैटिंग्स के रुप में व्हाट्सएप के रूप में जो आप हद से ज़्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। उसकी वजह से आप बाकी कामों को नज़र अंदाज़ करने लगते हैं। स्क्रीन एडिक्शन किसी भी उम्र में हो सकता है।
एक से तीन साल के बच्चे इतनी कम उम्र में खासकर कोविड के बाद इसकदर मोबाइल से जुड़ गए कि उन्हें उससे अलग करना अब मुश्किल होता है। महामारी के दौरान मज़बूरी और ज़रूरत के कारण बड़ों के साथ बच्चों को भी मोबाइल की आदत पद गई। अगर आपको पता चले की मोबाइल फोन से आपके बच्चे को नुकसान हो रहा तो कोई नहीं उसे देना चाहेगा लेकिन शायद खुद को ही नहीं पता होता की ये चीज कितना नुकसान करती हैं।
दो साल तक के बच्चों को बिल्कुल न दें मोबाइल फोन
अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक्स और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार दो साल तक के बच्चों को मोबाइल देना खतरनाक है। आजकल के बच्चे आई कांटेक्ट नहीं करते हैं, आँखों में आँखें देखकर नहीं बात करते हैं आप आवाज़ देते रहेंगे वो जवाब नहीं देंगें। इसकी वजह यही है। जब मोबाइल होता हैं तो किसी और से बात करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। बच्चे माँ-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी से बात करेंगे तभी तो जवाब देंगे, लेकिन अगर मोबाइल में व्यस्त हैं तो कैसे जवाब देंगे?
जैसे बच्चा कोई किताब पढ़ रहा है, तो उसकी सीमा होती है वो खत्म होगी, लेकिन मोबाइल इस्तेमाल करने की सीमा नहीं होती है। कई माँ-बाप को ऐसा लगता है कि मेरा बच्चा फोन चला लेता है तो बहुत स्मार्ट है। जबकि ये स्मार्टनेश नहीं है एक एडिक्शन है।
अगर एक बार आपने मोबाइल दे दिया जैसे कोविड में सब पैरेंट्स ने दिया उनके स्कूल का काम उससे चल रहा था और अब बच्चों को आदत पड़ गयी है। इतनी आदत की वो घर से बाहर ही नहीं निकलना चाहते हैं।
ध्यान लगाने की क्षमता कम हो रही है
आजकल बच्चों का सारा ध्यान मोबाइल की स्क्रीन पर होता है, उनकी पढ़ाई लिखाई बाधित हो रहीं है। उनके ध्यान देने की क्षमता कम हो गयी है क्योंकि रील्स देख रहे हैं। सोच कर देखिये अगर आप कोई काम कर रहे हैं, 10 से 15 सेकेण्ड के लिए तो ब्रेन 10 सेकेण्ड ही रहेगा और जहाँ पढ़ने बैठ गये वहाँ अटेन्सन चला जाएगा। हम ध्यान ही नहीं दे पा रहे हैं और ये हर एक ऐज ग्रुप में चाहे वह टीनेज हो बच्चा हो या कोई बड़ा हर कोई इससे प्रभावित हो रहा है। जो 20 सेकेण्ड की रील है सबसे ज़्यादा नुकसान तो इससे है।
अगर आपको मोबाइल देखना है, ज़रुर देखिए बुरी चीज नहीं हैं बहुत जानकारी भी मिलती है। एक होता हैं लर्निंग के लिए और एक होता है टाइम पास के लिए। अगर आप टाइम पास के लिए देख रहे हैं तो एक घण्टा डेढ़ घण्टा सही है, लेकिन उससे ज़्यादा नुकसान दायक होता है।
मोबाइल आपको अकेला कर देता है
आजकल हल्की सी भी परेशानी हुई तो बात करने की बजाय मोबाइल की दुनिया में चले जाते हैं। बात करने से भागते हैं। आपको अपने रियल वर्ल्ड में प्यार नहीं मिल रहा है, तो आप सेल्फी लेकर मोबाइल पर अपलोड करना शुरू कर देते हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम और सोशल मीडिया के तमाम ऐप्स का बढ़ता इस्तेमाल इसका सबूत है।
जो चीजें हमें अपने जीवन में नहीं मिलती उसे हम वर्चुअल में ढूंढने की कोशिश करने लगते हैं फिर इतना अंधेरा होता है की निराशा घेर लेती है। हम सब जानते हैं वो रियल दुनिया नहीं है जितना वर्चुअल दुनिया से टच बढ़ेगा उतना रियल लाइफ से कॉन्टैक्ट घटेगा। हम लोग बच्चों के पैरेंट के तौर पर बच्चों का फोन छीनने की कोशिश करते हैं, हम वाई फाई बन्द करते हैं इससे प्रॉब्लम और बढ़ेगी घटेगी नहीं।
बच्चों को काउंसलर के पास ज़रुर ले जाएँ
बेहतर है हम वजह जानने की कोशिश करें ऐसी नौबत आखिर आयी क्यों ? बच्चे को इतना ज़्यादा एडिक्शन कैसे हो गया ? अगर समय रहते काउंसलर के पास जाए तो रास्ता मिल सकता है।
इस लत से खुद को भी दूर रखना है तो फोन के नोटिफिकेशन को बार बार चेक करने की आदत बंद कर दीजिये। बेहतर है नोटिफिकेशन ऑफ रखिये। इम्पोर्टेंट नोटिफिकेशन जैसे आपके बच्चों के फोन का मैसेज, ईमेल है उसको ही ऑन कीजिए।
हो सके तो ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के साथ समय बिताइए। अपने को खुश करने के लिए अपने दोस्तों और अपने परिवार के सदस्यों के साथ एंजॉय करिए। आप का मन खुश रहेगा और उदासी कम से कम रहेगी ये रिसर्च में पाया गया है।
रात 11 बजे से लेकर सुबह के 3 बजे तक मोबाइल का इस्तेमाल हमारे ब्रेन के ऐसे सेन्टर को एक्टिवेट करता हैं जिससे डिप्रेशन बढ़ता है। उसका मतलब ये हुआ रात के 11 बजे से 3 बजे तक अगर आप फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं तो आपका डिप्रेशन एक्टिवेट होगा आपको डिप्रेशन शुरू होगा।
फिजिकल एक्विटी पर ज़्यादा ध्यान दें
ज़्यादा से ज़्यादा एक्टीविटी करें। आसान, ध्यान या जिम बेहतर विकल्प है। आपके फोन में ऐसे ऐप्स होने चाहिए जो आपको बता सकें कि कितने समय तक आपने इन्टरनेट इस्तेमाल किया है। कई बार लोग इस्तेमाल करते रहते हैं उनको समय का कोई ध्यान नहीं होता है। ऐसे में ज़रुरी हैआप अलार्म सिस्टम लगा लें। एक तय समय के बाद फोन का इस्तेमाल बिल्कुल बंद कर दें।