कड़कनाथ ही नहीं, पोल्ट्री फार्मिंग में दूसरी कई नस्लें भी करा सकती हैं अच्छी कमाई

'आमदनी बढ़ाएँ' के पिछले दो भाग में आपने बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग क्या होती है और पोल्ट्री फार्मिंग की ट्रेनिंग के बारे में जाना; इस भाग में बता रहे हैं कमाई कराने वाली देसी नस्ल की किस्मों के बारे में।
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आप मुर्गी पालन शुरू करना चाहते हैं? लेकिन तय नहीं कर पा रहे हैं कि आखिर मुर्गी की कौन सी नस्ल को पाले, जिससे बढ़िया कमाई की जा सके। चिंता मत करिए चलिए हम बताते हैं।

हर एक राज्य की अपनी अलग नस्लें हैं, कोई अंडा उत्पादन के लिए पाली जाती है तो कोई माँस उत्पादन के लिए। मुर्गी पालन करने जा रहे हैं तो सबसे पहले नस्लों को समझना चाहिए। गाँव में तो मुर्गियों को बैंक भी कहा जाता है, यहाँ पर वर्षों से देसी नस्ल की मुर्गियाँ हैं।

कुक्कुट अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद और केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, बरेली ने देसी मुर्गी की कई उन्नत नस्लें विकसित की हैं।

केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ एके तिवारी बैकयार्ड में पाली जाने वाली मुर्गी की देसी नस्लों के बारे में बताते हैं, “बहुत सी ऐसी नस्लें हैं, जिन्हें गाँव में लोग पालते आ रहे हैं; संस्थान ने ऐसी कई मुर्गियों से नई नस्लें विकसित की हैं।

वो आगे कहते हैं, “जो नस्ल जहाँ की होती है, वहाँ के वातावरण में ढल चुकी होती है; दूसरी जगह ले जाने पर मुश्किलें आती हैं, जबकि ये हर जगह अच्छे से ढल जाती हैं, लेकिन जो प्रोडक्शन झाबुआ में मिल रहा है, वो शायद दूसरी जगह पर न मिले; हमारा संस्थान इसपर लगातार काम कर रहा है, इसलिए हमने कड़कनाथ की उन्नत नस्ल ‘कैरी गिरी’ और ‘कैरी सलोनी’ विकसित की है, जिसे हर जगह पाल सकते हैं दोगुना अंडा देती हैं।”

भारत में संगठित या वाणिज्यिक पोल्ट्री क्षेत्र कुल माँस और अंडे के उत्पादन में लगभग 75 प्रतिशत योगदान देता है जबकि असंगठित क्षेत्र 25 फीसदी योगदान देता है। 20वीं पशुधन जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक, कुल पोल्ट्री आबादी 851.81 मिलियन (बैकयार्ड पोल्ट्री आबादी 317.07 मिलियन सहित) है, जो कि पिछली पशुधन जनगणना की तुलना में 45.8 प्रतिशत अधिक है।

अंडा उत्पादन में भारत दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है। देश में कुल अंडा उत्पादन 138.38 बिलियन होने का अनुमान है। साल 2018-19 के दौरान 103.80 बिलियन अंडों के उत्पादन के अनुमान की तुलना में वर्ष 2022-23 के दौरान पिछले 5 वर्षों में 33.31 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

यूपी के लखनऊ जिले के मलिहाबाद तहसील के अमलौली गाँव के ओमप्रकाश ने साल 2019 में आम के बाग में देसी मुर्गी पालन शुरू किया था। वो कई देसी किस्मों को पालते हैं, उन्हीं में से एक कैरी निर्भीक किस्म के बारे में ओम प्रकाश बताते हैं, “इस नस्ल की कई खासियतें हैं, आम के बाग में इसे पालने से ये आम में लगने वाले कीट-पतंगों को खाकर नुकसान से बचाते हैं। देसी मुर्गे और अंडे की कीमत ब्रायलर और लेयर के मुकाबले बढ़िया मिल जाती है।”

कैरी निर्भीक नस्ल

कैरी निर्भीक नस्ल

कैरी निर्भीक

केंद्रीय एवियन अनुसंधान संस्थान की मदद से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों ने इस नस्ल का पालन करके देखा है और परिणाम भी बढ़िया आए हैं। बैकयार्ड फार्मिंग के लिए कैरी निर्भीक नस्ल बढ़िया होती हैं।

इसका माँस प्रोटीन के गुणों से भरपूर होता है। इस नस्ल की मुर्गी तेज़ तर्रार, आकार में बड़ी, शक्तिशाली और मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली होती हैं। नर में लड़ने की प्रवृत्ति और मादा में चिड़चिड़ेपन की प्रवृत्ति इस किस्म के कुछ अनोखे लक्षण हैं। इस नस्ल के नर और मादा का वजन लगभग 20 सप्ताह के अंदर ही 1850 और 1350 ग्राम के आसपास हो जाता है।

कैरी निर्भीक नस्ल की मुर्गी 170-180 दिनों में अंडे देने को तैयार हो जाती हैं और 170-200 अंडों का उत्पादन ले सकते हैं। इनके अण्डों का वजन लगभग 54 ग्राम होता हैं। इन पक्षियों की प्रजनन क्षमता, अंडों से निकलने की क्षमता और अंडे के अंदर रहने की क्षमता क्रमशः 88, 81 और 94 प्रतिशत के आसपास दर्ज की गई है।

कैरी श्यामा नस्ल

कैरी श्यामा नस्ल

कैरी श्यामा

बैकयार्ड फार्मिंग के लिए यह नस्ल कैरी रेड और कड़कनाथ से विकसित की गई है। इनके पंख कई रंगों के होते हैं; लेकिन आमतौर पर काले रंग के ही होते हैं। इसकी ख़ासियत यह है कि इसके अधिकांश आंतरिक अंगों में विशिष्ट काला रंग दिखाई देता है।

आदिवासी क्षेत्रों के लिए यह उन्नत किस्म है; इस नस्ल के नर और मादा का वजन लगभग 20 सप्ताह के अंदर ही 1460 और 1120 ग्राम के आसपास हो जाता है।

कैरी श्यामा नस्ल की मुर्गी 170-180 दिनों में अंडे देने को तैयार हो जाती हैं और लगभग 210 अंडों का उत्पादन ले सकते हैं। इनके अण्डों का वजन लगभग 53 ग्राम होता हैं। इन पक्षियों की प्रजनन क्षमता, अंडों से निकलने की क्षमता क्रमशः 85 और 82 प्रतिशत के आसपास दर्ज की गई है।

कैरी उपकारी

देसी नस्ल और कैरी रेड की मदद से इसे विकसित किया गया है। इनके शरीर का आकार मध्यम होता है। देसी फ्रिज़ल नस्ल से विकसित होने के कारण ये भीषण गर्मी भी बर्दाश्त कर सकता है, इसके कारण यह नस्ल शुष्क क्षेत्रों के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु के लिए बेहतर होती है।

इस नस्ल के नर और मादा का वजन लगभग 20 सप्ताह के अंदर ही 1688 और 1285 ग्राम के आसपास हो जाता है। कैरी उपकारी नस्ल की मुर्गी 165 दिनों में अंडे देने को तैयार हो जाती हैं और लगभग 220 अंडों का उत्पादन ले सकते हैं। इनके अण्डों का वजन लगभग 60 ग्राम होता हैं।

कैरी हितकारी

इस नस्ल को एग्जॉटिक ब्रीड कैरी रेड और देसी नस्ल की मदद से विकसित किया गया है। उसकी गर्दन पर पंख नहीं होते हैं और शरीर पर 30 से 40 प्रतिशत तक कम बाल होते हैं। शरीर में कम पंख होने पर ये गर्म इलाकों में भी रह सकते हैं।

गर्मी में रहने के कारण इनकी प्रजनन क्षमता और अंडा सेने की क्षमता भी अच्छी होती है। इन्हें गर्म आर्द्र तटीय क्षेत्र में पाल सकते हैं।

इस नस्ल के नर और मादा का वजन लगभग 20 सप्ताह के अंदर ही 1766 और 1320 ग्राम के आसपास हो जाता है। कैरी उपकारी नस्ल की मुर्गी 178 दिनों में अंडे देने को तैयार हो जाती हैं और लगभग 200 अंडों का उत्पादन ले सकते हैं। इनके अण्डों का वजन लगभग 61 ग्राम होता हैं।

कैरी देबेंद्र

कार्ल देबेंद्र को अंडे और माँस दोनों के लिए पाला जाता है। अपने आकर्षक चमकीले पंखों के रंग के कारण यह लोगों को काफी पसंद आता है। आठ सप्ताह की उम्र में मध्यम शारीरिक वजन प्राप्त कर लेता है। बॉयलर माँस की तुलना इसके माँस में चर्बी कम होती है।

इस नस्ल का वजन 12 सप्ताह के अंदर ही 1700 और 1800 ग्राम के आसपास हो जाता है। कैरी देबेंद्र नस्ल की मुर्गी 155-160 दिनों में अंडे देने को तैयार हो जाती हैं और लगभग 190-200 अंडों का उत्पादन ले सकते हैं। इनके अण्डों का वजन लगभग 61 ग्राम होता हैं।

वनराजा

वनराजा एक बहुरंगी दोहरे उद्देश्य वाली चिकन किस्म है, जिसे पोल्ट्री अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद ने बैकयार्ड पोल्ट्री पालन के लिए विकसित किया गया है।

वनराजा के पंखों का रंग और रोग प्रतिरोधक क्षमता देशी मुर्गे के समान है। वनराजा तेजी से बढ़ता है और देशी मुर्गियों की तुलना में अधिक अंडे देता है।

इस नस्ल का वजन 12 सप्ताह के अंदर ही 1800 और 200 ग्राम के आसपास हो जाता है। वनराजा नस्ल की मुर्गी लगभग 100-110 अंडों का उत्पादन ले सकते हैं। इनके अण्डों का वजन लगभग 61 ग्राम होता हैं।

श्रीनिधि

बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग के लिए यह नस्ल बेहतर होती है। इसे अंडे और माँस दोनों के लिए पाला जाता है। दूसरी मुर्गियों की तुलना में ये तेजी से बढ़ती हैं। इनकी लंबी टाँगे इन्हें शिकारियों से बचाने में मदद करती हैं।

श्रीनिधि नस्ल का वजन छह सप्ताह में 600 और 650 ग्राम और बीस सप्ताह में 1700 से 2000 ग्राम तक हो जाता है। इसकी मुर्गी 165-170 दिनों में अंडे देने के लिए तैयार हो जाती है। इस मुर्गी से लगभग 140-150 अंडों का उत्पादन ले सकते हैं।

ग्रामप्रिया

ग्रामीण/जनजातीय क्षेत्रों में अंडों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए, डीपीआर ने ग्रामप्रिया नामक नस्ल का विकास किया है, जो भूरे रंग के अंडे देने वाली एक लेयर नस्ल हैं जो अधिक संख्या में अंडे देती है और देशी कुक्कुट के समान होती है।

मादा पक्षियों में उत्पादन एक वर्ष में 180 अंडे उत्पन्न करने की क्षमता होती है (72 सप्ताह की आयु तक)। घर आंगन परिस्थितियों में ग्रामप्रिया में उच्च प्रतिरक्षा क्षमता और बेहतर उत्तरजीविता होती है। अपने मध्यम शरीर के वजन के कारण यह पक्षी आसानी से परमक्षी शिकारियों से आसानी से बच सकते हैं। नर्सरी में 6 सप्ताह तक की आयु में चूजों को पालने और फिर किसानों के घर के पिछवाड़े में छोड़ कर इन कुक्कुटों को ग्रामीण क्षेत्रों में सफलतापूर्वक लाया गया है।

ग्रामप्रिया नस्ल का वजन छह सप्ताह में 400 और 500 ग्राम और बीस सप्ताह में 1600 से 1800 ग्राम तक हो जाता है। इसकी मुर्गी 160-165 दिनों में अंडे देने के लिए तैयार हो जाती है। इस मुर्गी से लगभग 160-180 अंडों का उत्पादन ले सकते हैं।

वनश्री

देशी कुक्कुटों की माँग को पूरा करने के लिए भाकृअनुप – कुक्कुट अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद ने देशी कुक्कुट नस्लों के संग्रह, लक्षण वर्णन, संरक्षण और सुधार पर कार्यक्रम शुरू किया है। इस कार्यक्रम के तहत, वनश्री कुक्कुटों को जिसे असील (पीडी-4) नस्ल से विकसित किया गया है, इन्हें दस पीढ़ियों तक विकास और उत्पादन प्रदर्शन दोनों के लिए बेहतर पाया गया।

वनश्री कुक्कुट को माँस और अंडा उत्पादन के दोहरे उद्देश्य से विकसित किया गया। इसकी यह विशेषताएँ आक्रामक देसी नस्लों की तरह ही होती हैं। नर कुक्कुटों के गले में ज्यादातर सुनहरे रंग के पंख होते हैं और पूंछ के सामने (काठी पंख) काले रंग की पूंछ होती है। मादा कुक्कुटों में एक समान सुनहरे पीले रंग के पख होते हैं।

ग्रामप्रिया नस्ल का वजन आठ सप्ताह में 500 और 570 ग्राम और बीस सप्ताह में 1800 से 2200 ग्राम तक हो जाता है। इसकी मुर्गी 160-180 दिनों में अंडे देने के लिए तैयार हो जाती है। इस मुर्गी से लगभग 180-192 अंडों का उत्पादन ले सकते हैं।

अतुल्य

देसी नस्ल की इस मुर्गी को केरल पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय ने विकसित किया है। 72 हफ़्तों में इसका वजन 1500 ग्राम के करीब हो जाता है। इसकी मुर्गियाँ 123 दिनों में अंडा देने के लिए तैयार हो जाती हैं और एक सीजन में लगभग 290-300 अंडे देती हैं।

नर्मदा निधि

‘नर्मदा निधि’ नस्ल को पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर, मध्य प्रदेश ने विकसित किया है। अंडे और माँस के लिए पाली जाने वाली यह नस्ल मध्य प्रदेश के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में मुर्गी पालन के लिए सही है।

इसे कड़कनाथ जबलपुर कलर के साथ संकरण कराकर विकसित किया गया है। आठ हफ्ते में इसका वजन 700 से 800 ग्राम हो जाता है; जबकि 20 सप्ताह में नर और मादा का वजन 1550 से 1300 ग्राम के लगभग हो जाता है। मुर्गियाँ 161 दिनों में अंडे देने लगती हैं लगभग 181 अंडे देती हैं।

हिम समृद्धि

हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय ने इस नस्ल को विकसित किया है, जो हिमाचल प्रदेश के लिए बढ़िया नस्ल है। इस नस्ल को यहाँ के किसान काफी पसंद करने लगे हैं।

आठ हफ्ते में इसका वजन 400 से 600 ग्राम हो जाता है; जबकि 20 सप्ताह में नर और मादा का वजन 1250 से 1400 ग्राम के लगभग हो जाता है। मुर्गियाँ 130-40 दिनों में अंडे देने लगती हैं लगभग 200-210 अंडे देती हैं।

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