खेती में बढ़ते कीटनाशकों के इस्तेमाल, 800 से ज़्यादा सूक्ष्मजीवों, कवक, पौधों, कीड़ों, मछलियों, पक्षियों और स्तनधारियों को भी प्रभावित कर सकता है। ये सभी ऐसी प्रजातियाँ हैं, जिन पर अब तक किसी भी तरह के कीटनाशकों के दुष्प्रभावों को रिपोर्ट नहीं किया गया है।
नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार कीटनाशक विभिन्न प्रकार की गैर-लक्ष्य प्रजातियों को प्रभावित करते हैं और वैश्विक जैव विविधता के ह्रास से जुड़े हो सकते हैं। इस खतरे की गंभीरता अभी भी आंशिक रूप से ही समझी गई है। गैर-लक्ष्य पौधों, जानवरों (अकशेरुकी और कशेरुकी) और सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया और कवक) के लिए, पाया कि स्थलीय और जलीय प्रणालियों में कीटनाशकों के उपयोग से विकास, प्रजनन, व्यवहार और अन्य शारीरिक बायोमार्कर नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं।
चीन और यूरोप के शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया कि विभिन्न प्रकार के कीटनाशक किस प्रकार जलवायु क्षेत्रों और पोषण स्तरों में विभिन्न गैर-लक्ष्य जीवों को प्रभावित करते हैं। उन्होंने 1,705 प्रयोगात्मक अध्ययनों से 20,212 कीटनाशक प्रभावों का विश्लेषण किया, जिसमें कीटनाशकों, कवकनाशकों और शाकनाशकों के प्रभाव का अध्ययन किया गया। अध्ययन में जलीय और स्थलीय जीव दोनों शामिल थे।

इन अध्ययनों में कीटनाशकों का प्रभाव जानवरों, पौधों और सूक्ष्मजीवों पर देखा गया, जिसमें समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के साथ जलीय और स्थलीय प्रणालियों में भी जांच की गई। अध्ययन में पाया गया कि कीटनाशक विकास, प्रजनन और व्यवहार को दबाते हैं और गैर-लक्ष्य जीवों में चयापचय बायोमार्कर को असंतुलित कर सकते हैं।
स्टडी के अनुसार विशेष रूप से कुछ कुछ प्रजातियों के लिए तैयार किए गए कीटनाशक गैर-लक्ष्य समूहों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जैसे कि कीटनाशक नियोनिकोटिनोइड्स उभयचरों को प्रभावित करते हैं। समशीतोष्ण क्षेत्रों में ये नकारात्मक प्रभाव उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की तुलना में अधिक स्पष्ट थे, लेकिन जलीय और स्थलीय पर्यावरण में परिणाम एक जैसे थे, यहाँ तक कि जब वास्तविक-जीवन वाले जोखिम परिदृश्यों के लिए समायोजन किया गया।
इस स्टडी के रिजल्ट वर्तमान कीटनाशक उपयोग की स्थिरता पर सवाल उठाते हैं और जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र को जोखिम से बचाने के लिए उन्नत जोखिम आकलन की जरूरतों का समर्थन करते हैं।

कीटनाशकों का उपयोग वैश्विक स्तर पर कृषि उत्पादन का समर्थन करने और घरेलू एवं व्यावसायिक स्थितियों में मानव और पशु स्वास्थ्य की रक्षा के लिए किया जाता है। पर्याप्त पर्यावरणीय सांद्रता में कीटनाशक, कवकनाशक और शाकनाशक के संपर्क से गैर-लक्ष्य जीवों के जीवन, विकास, प्रजनन और व्यवहार में बाधा उत्पन्न हो सकती है, जैसे कि उत्तेजनाओं की पहचान में कठिनाई, साथ ही अन्य चयापचय और शारीरिक प्रक्रियाओं (जैसे तंत्रिका कार्य या प्रतिरक्षा, कोशिकीय श्वसन, प्रकाश संश्लेषण) पर प्रभाव पड़ सकता है।
कीटनाशकों के कुछ नकारात्मक प्रभाव अभी जानकारी में हैं, जैसे कि कवकनाशक अरबस्कुलर माइकोराइज़ल कवक की बायोमास को कम कर सकते हैं, जिससे उनके उच्च पौधों के साथ सहजीवन प्रभावित होते हैं। शाकनाशक पौधों के पराग की व्यवहार्यता को कम कर सकते हैं और कार्बोहाइड्रेट चयापचय को बाधित कर सकते हैं। कीटनाशक, जो शाकाहारी कीटों को लक्षित करते हैं, गैर-लक्ष्य कीट परागणकों में लंबे समय तक गिरावट का कारण बन सकते हैं, जो बड़े पैमाने पर फूल वाले फसलों से जुड़े होते हैं।
इसके अलावा, कीटनाशकों का प्रभाव एक ट्रॉफिक स्तर से दूसरे तक फैल सकता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र स्तर की प्रजातियों के बीच इंटरैक्शन पर प्रभाव पड़ता है और माध्यमिक प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं। हालांकि, कीटनाशकों के जोखिम आकलन में केवल कुछ प्रजातियों जैसे चूहों, ज़ेब्राफिश, एक्सेनोपस, डैफनिया, शैवाल, मधुमक्खियों और/या केंचुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिससे व्यापक जैव विविधता और समुदायों पर कीटनाशकों के प्रभावों को पूरी तरह से समझना मुश्किल हो जाता है।
कीटनाशकों के बिना भी हो सकती है खेती
आज किसानों के सामने बड़ी चिंता है कि उत्पादन कम हो रहा है, साथ ही साथ मिट्टी और पर्यावरण का जो असंतुलन एक तरह से देखा जाए वो बहुत बिगड़ता जा रहा है। कृषि की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए अगर हम बात करें तो हमें पर्यावरण को संजोकर रखना है। उत्पादन बढ़ाना एक चिंता का विषय तो है ही लेकिन उत्पादन के साथ- साथ हमे अपने पर्यावरण तंत्र को सुदृढ़ करना और उसे संरक्षित करना एक बहुत बड़ी चुनौती है।
कृषि में जो असंतुलन हुआ है निश्चित तौर पर आने वाले समय में हमे आस पास तितलियाँ, भौरे, मधुमक्खियाँ या और भी मित्र जीव हैं; ये सब दिखाई ही न दें और अगर ये चले गए तो कृषि का क्या होगा। ये जो असंतुलन जो हमने पैदा किया है उसका दुष्परिणाम हमको देखने को मिलेंगे।
अगर आप कोई भी फसल लगाने जा रहे हैं और आप कीड़े और बिमारियों से परेशान हैं तो इससे निपटने के लिए एक बहुत अच्छी व्यवस्था है, जिसको कहते हैं इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग। इसमें करना क्या है – जो भी फसलें हम लगा रहे हैं; उन फसलों के किनारे-किनारे हम एक महीने पहले, ज्वार, बाजरा या मक्का की फसल लगा देंगे ताकि हमारे पास एक बाऊंडरी बन जाये।
इन बाउंड्री से बाहर से जो शत्रु कीट हैं वो वही रुक जाएँगे और इनके किनारे किनारे हम सूरजमुखी के फूल या धनिया, गाजर इस तरह के फूल वाले पौधे हम लगा सकते हैं। इससे जो मित्र कीट हैं वो आपके खेतों में आएँगे। आप मित्रों को आमंत्रित कर रहें है जितना आपके पास मित्र होंगे उतने दुश्मन आपके पास कम होंगे।
इसको ऐसे समझ सकतें हैं कि अगर आपके गाँव में भी आपके सौ मित्र हैं और एक दुश्मन हैं तो आपको चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं। ठीक उसी प्रकार से खेत में भी यदि आपके मित्रों की संख्या ज़्यादा है; तो आपको किसी भी कीट से भयभीत होने की ज़रुरत नहीं।
आज लेकिन यह देखा जाता है मित्र कीट न के बराबर हैं; जिसकी वजह से दुश्मन कीट हमारी फसल को नुकसान देते हैं। इसके नियंत्रण के लिए ये रासायनिक विधियाँ अब कारगर नहीं रही हैं। क्योंकि उन्होंने एक प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। ऐसी परिस्तिथियों से बचने के लिए हमें फिर वो व्यवस्था लागू करनी पड़ेगी; जिसके लिए ज़्यादा खर्चा करने की ज़रुरत भी नहीं, बस किसान भाइयों को खेतों के किनारे-किनारे फूलों के पौधों को लगाए जैसे ग्लेडियोलस, गेंदा और रजनीगंधा जैसे फूल लगाएँ।