अगर आप भी इस दीपावली पटाखा लाने के मूड में हैं, तो भाई खरीदने के पहले जरूर देख लीजियेगा ग्रीन पटाखा ही है न ?
ग्रीन पटाखा आकर में थोड़े छोटे होते हैं और आवाज़ भी कम करते हैं।
जहाँ ग्रीन पटाखों से 110 से 125 डेसिबल तक का ही ध्वनि प्रदूषण होता है वहीं, सामान्य पटाखों से 160 डेसिबल तक ध्वनि प्रदूषण होता है। हो सकता है ग्रीन पटाखे के लिए कुछ पैसे आपको ज़्यादा भी देने पड़े, लेकिन आपकी इस कोशिश से प्रदूषण कुछ कम जरूर होगा।
सामान्य पटाखों से कितना अलग है ग्रीन पटाखा?
ग्रीन पटाखों को बनाने में फ्लावर पॉट्स, पेंसिल, स्पार्कल्स और चक्कर का इस्तेमाल किया जाता है; जिससे ये वायु को कम प्रदूषित करते हैं। ग्रीन पटाखे ना सिर्फ आकार में छोटे होते हैं, बल्कि इन्हें बनाने में रॉ मटेरियल (कच्चा माल) का भी कम इस्तेमाल होता है।
इन पटाखों में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) का विशेष ख्याल रखा जाता है ताकि धमाके के बाद कम से कम प्रदूषण फैले।
सामान्य पटाखों में बारूद और अन्य ज्वलनशील रसायन होते हैं जो जलाने पर फट जाते हैं और भारी मात्रा में प्रदूषण फैलाते हैं; वहीं ग्रीन पटाखों में हानिकारक केमिकल नहीं होते हैं और वायु प्रदूषण कम होता है।
ग्रीन पटाखों में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले प्रदूषणकारी केमिकल जैसे एल्यूमीनियम, बेरियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन को या तो हटा दिया गया है या उत्सर्जन को 15 से 30 प्रतिशत तक कम कर दिया जाता है।
राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (एनइइआरआई) ने बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए ग्रीन पटाखे तैयार किए हैं, ये न सिर्फ कम आवाज़ करते हैं बल्कि सामान्य पटाखों से 40 से 50 फीसदी तक कम हानिकारक गैस पैदा करते हैं। संस्थान ने ऐसे फॉर्मूले तैयार किए हैं जिसके जलने के बाद पानी बनेगा और हानिकारक गैस उसमें घुल जाएगी।
एनईईआरआई एक सरकारी संस्था है जो वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अंदर आता है।
एनईईआरआई के मुताबिक उसकी विधि से तैयार ग्रीन पटाखे उत्सर्जन (छोटे कण या गैस) को काफी हद तक कम करते हैं क्योंकि इसमें कम एल्यूमीनियम इस्तेमाल होता है।
कितने तरह के हैं ग्रीन पटाखे
एनईईआरआई ने चार तरह के ग्रीन पटाखे बनाए हैं; इनमें पानी पैदा करने वाले पटाखे, सल्फर और नाइट्रोजन कम पैदा करने वाले पटाखे, कम एल्यूमीनियम से तैयार पटाखे और अरोमा क्रैकर्स शामिल हैं। अरोमा पटाखों को जलाने से न सिर्फ हानिकारक गैस कम पैदा होगी बल्कि ये बेहतर खुशबू भी बिखेरेंगे।
पर्यावरण-अनुकूल सामग्री का उपयोग करके बनाया गया अनार या फूल का गमला, कणीय पदार्थ को 40 फीसदी तक शुद्ध कर सकता है। बिजली पटाखे और भी बेहतर हैं ये राख के उपयोग को खत्म करते हैं।
सामान्य पटाखों को जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर गैस निकलती है, ग्रीन पटाखा तैयार करने के पीछे इनकी मात्रा को कम करना है।
देश में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों को जलाने, बेचने या रखने पर पूरी तरह रोक लगा दिया है। दिल्ली के बाहर सिर्फ ग्रीन पटाखे ही जलाने की इजाज़त है। कई राज्यों में पटाखे जलाने को लेकर समय-सीमा तय की गई है इनमें केरल, कर्नाटक, पंजाब, महाराष्ट्र शामिल हैं। बिहार में भी सिर्फ ग्रीन पटाखों को जलाने की इजाज़त हैं वो भी रात 8 बजे से 10 बजे के बीच।