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कम पानी में धान की अच्छी पैदावार के लिए किसान इन किस्मों की करें बुवाई

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लखनऊ। मशहूर किसान कवि घाघ की एक कहावत है – ‘धान, पान और केला, ये तीनों पानी के चेला।’ इसका मतलब यह है कि धान, पान और केला बिना पानी के नहीं हो सकते। लेकिन आज जब पानी कि इतनी किल्लत है और ऐसे में धान उगाना है तो कुछ नया सोचना होगा।

धान की फसल ऐसे क्षेत्रों में उगाई जाती है जहां सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। लेकिन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा (दिल्ली) के वैज्ञानिकों ने अधिक पानी की खपत से पैदा होने वाली धान की किस्मों की बजाय कुछ ऐसी किस्में सुझाई हैं जो कि कम पानी की खपत से पैदा की जा सकती हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि समय पर अच्छी बरिश न भी हो तो किसानों को परेशान होने की जरूरत नहीं है। किसान अगर सतर्कता से काम लें तो वह सूखे की स्थिति से निपट सकते हैं। दरअसल धान की कई ऐसी किस्में हैं जो न सिर्फ कम समय में पैदावार देती हैं, बल्कि इनको सिंचाई की भी काफी कम आवश्यकता होती है।

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कृषि वैज्ञानिकों का सुझाव है कि यदि सूखे जैसे हालात पैदा होते हों तो इन किस्मों का उपयोग किया जा सकता है। यदि जुलाई माह में भी पर्याप्त बारिश नहीं होती है तो भी धान की कई ऐसी किस्में हैं जिनकी पौध जुलाई में तैयार करके अगस्त में रोपाई की जा सकती है। धान की इन किस्मों में पूसा सुगंध-5, पूसा बासमती-1121, पूसा-1612, पूसा बासमती-1509, पूसा-1610 आदि शामिल हैं। धान की यह प्रजातियाँ लगभग चार माह में पैदावार दे देती हैं।

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वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया कि किसान विकल्प के तौर पर एक और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इस प्रौद्योगिकी के अनुसार धान की बुवाई गेहूँ की तरह खेतों में की जा सकती है। पौध तैयार करने की जरूरत नहीं है। कम बरसात वाले क्षेत्रों में सरसों की पैदावार लेना भी एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है। इसकी फसल को अगस्त और सितम्बर के दौरान लगाकर कम बारिश और सिंचाई की सुविधाओं की कमी के बावजूद अच्छी पैदावार की जा सकती है।

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जहाँ सिंचाई सुविधाओं का अभाव है और बरसात भी कम होती हो वहाँ ड्रिप सिंचाई, फव्वारा सिंचाई, पॉली हाउस तथा नेट हाउस जैसी आधुनिक सिंचाई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन आधुनिक तकनीकों का प्रयोग कर कम सिंचाई के बावजूद अच्छी फसलें तैयार की जा सकती हैं। इन तकनीकों के इस्तेमाल के लिये सरकारें भी अनुदान देकर प्रोत्साहित करती हैं।

साभार – इंडिया वाटर पोर्टल

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