बुखार, सीने में जलन, खट्टी डकार या गैस्ट्राइटिस के नाम पर आप भी पेरासिटामोल या डाइजीन ले लेते हैं या किसी को देते हैं तो ये मरीज़ को मुसीबत में डाल सकता है।
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ वैभव जायसवाल का कहना है कि ज़्यादातर मरीज़ों का केस इसलिए बिगड़ जाता है कि क्योंकि वे गलत दवा ले लेते हैं।
“अक्सर कुछ लोग सीने या पेट में दर्द होने पर लापरवाही करते हैं और गैस का दर्द समझ कर डायजीन या कोई टेबलेट खा लेते हैं। समझ में तब आता है जब हालात बिगड़ जाते हैं। जिसे आप गैस का दर्द समझते हैं वो दिल का दर्द हो सकता है।” डॉ वैभव ने गाँव कनेक्शन से कहा।
गलत दवा खाने के क्या हैं खतरे ?
“कोई भी दवा कब और कितनी मात्रा (खुराक) में लेनी है इसकी जानकारी आम लोगों को नहीं होती है, ये डॉक्टर ही बता सकता है लेकिन अब सोशल मीडिया या दोस्तों से राय लेकर तुरंत हम कुछ भी खा लेते हैं या दूसरों को खाने को कह दे देते हैं। डॉक्टर को तो तब बताते हैं जब दवा असर नहीं करती। कई ऐसे मामले देखे हैं जिसमें मरीज़ ने रात में सीने या पेट दर्द की शिकायत की और घर वालों ने खुद से दवा दी या मामूली गैस बता दिया। सुबह मालूम चलता है मौत दिल के दौरे से हुई।” डॉ वैभव हैरानी जताते हुए कहते हैं।
डॉ वैभव के मुताबिक मरीज़ के वजन और उम्र को देखते हुए कोई भी दवा दी जाती है। ज़रूरी नहीं हर बुखार की वजह कोई बैक्टीरिया हो। बिना सलाह अगर एंटी बैक्टीरियल देते है तो नुकसान हो सकता है।
“इन दिनों डेंगू फैला है लोग दो दिन तक खुद से दवा लेते हैं फिर डॉक्टर के पास जाते हैं ये गलत है। शरीर ही सब कुछ है इसे आपको समझना होगा। कोई फ्रिज या अलमारी नहीं है। कुछ भी खाने या पीने से होने वाले नुकसान या फायदे के बारे में हमें खुद ही सोचना होग।” डॉक्टर वैभव ने गाँव कनेक्शन से कहा।
बच्चों के मामले में सावधानी ज़्यादा ज़रूरी है?
यथार्थ सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ राजीव सिंह साफ़ कहते हैं, “फोन पर या चलते फिरते डॉक्टर से दवा पूछने की आदत ख़त्म करनी चाहिए ख़ास कर बच्चों के मामले में। अक्सर माताएँ अपने बच्चों को बुख़ार या खासी होने पर वही दवा दे देती हैं जो वो खुद कभी खाई होती हैं या घर में पड़ी होती हैं । बच्चों को अलग और उनके शरीर के हिसाब से दवा डॉक्टर देता है।”
एक सवाल के जवाब में डॉ राजीव कहते हैं ” अगर आप दूर दराज रहते हैं डॉक्टर तक तुरंत नहीं पहुँच पा रहे हैं तो तब आप फोन पर सलाह लें सकते हैं। बच्चे को अगर बुख़ार है तो ऐसे में तापमान चेक करते रहें,आप हर 4 घंटे में चेक करें। जिस कमरे में शिशु या बच्चा हो हवादार होना चाहिए। शरीर में पानी की कमी न हो इसका ध्यान रखें। पानी की पट्टी देने से आराम मिलता है।”
डॉ वैभव जायसवाल कहते हैं बच्चे हो या बड़े उनको दवा देने से पहले इस बात की जाँच भी कर लें कि वो एक्सपायरी तो नहीं है।
“कभी कभी एक्सपायरी नहीं होती है तो भी तो भी दवा खराब हो जाती हैं। डाइजीन जेल अच्छा उदाहरण है लेकिन इसमें मरीज ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता है क्योंकि क़्वालिटी चेक करने का काम दवा नियामक संस्था डीसीजीआई (ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया) का है।” डॉ वैभव ने गाँव कनेक्शन को बताया।
हाल ही में शिकायत आयी है कि डाइजीन जेल मिंट फ्लेवर की बोतल जो नियमित स्वाद (मीठा) और हल्के गुलाबी रंग की है, जबकि उसी बैच की एक दूसरी बोतल कड़वे स्वाद और तीखी गंध के साथ सफेद रंग की थी। इसके बाद डीसीजीआई ने एबॉट के एंटासिड डाइजीन जेल के खिलाफ एडवाइजरी अलर्ट जारी किया है। डीसीजीआई ने सभी डाक्टर्स से कहा है कि वे अपने मरीज़ों को सावधानी से दवा लिखें और लोगों को बताएं कि एबॉट के एंटासिड डाइजीन जेल दवा का उपयोग बंद कर दें।
इस बीच एबॉट कम्पनी ने कहा है कि गोवा फैक्ट्री में बनी डाइजीन जेल एंटासिड दवा को वापस ले लिया गया है।