अगर आप भी गेहूँ, सरसों, मसूर जैसी फसलों की बुवाई के लिए बीज को लेकर फिक्रमंद हैं तो चिंता मत कीजिए।
रबी फसलों की बुवाई में किसानों को किसी भी तरह की कोई परेशानी न हो इसके लिए प्रदेश सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है।
रबी सीजन की गेहूँ, सरसों, मसूर फ़सलों की बुवाई के लिए इस बार 60.25 मीट्रिक टन उर्वरकों की उपलब्धता का लक्ष्य किया गया है। बिक्री केंद्रों पर बुवाई के समय से 15 दिन पहले बीज उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है। जमाख़ोरी और कालाबाज़ारी पर रोक लगाने की तैयारी की जा रही है।
सरकार की तरफ से कहा गया है कि प्रदेश में प्राप्त होने वाले उर्वरकों का निर्धारित मूल्य पर ही वितरण होगा।
कृषि निवेशों की उपलब्धता के लिए समय-सारणी तय की गई है। रबी उत्पादन कार्यक्रम की सफलता के लिए कृषि निवेशों की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति की व्यवस्था बुवाई से पहले कर लेना ज़रूरी है। अलसी का बीज 10 अक्टूबर से बिक्री केंद्रों पर उपलब्ध है।
जौ 15 अक्टूबर तक जनपद स्तर और 20 अक्टूबर तक बिक्री केंद्रों पर उपलब्ध होगा। वहीं गेहूँ के बीज जनपद स्तर पर 20 अक्टूबर और बिक्री केंद्रों पर 25 अक्टूबर तक उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं। यह सुनिश्चित किया गया है कि समय से आवंटन और जनपदों में आपूर्ति हो। मंडलीय-जनपदीय अफसरों से कहा गया है कि बिक्री केंद्रों पर बुवाई के समय से 15 दिन पहले बीज उपलब्ध हो।
प्रदेश में रबी 2022-23 में 59.45 लाख मीट्रिक टन रासायनिक उर्वरकों का वितरण-खपत हुई थी। 2023-24 के लिए 60.25 लाख मीट्रिक टन उर्वरकों की उपलब्धता का लक्ष्य प्रस्तावित है। डीएपी की खपत 2022-23 में 14.25 लाख मीट्रिक टन था, 2023-24 में इसका लक्ष्य 15.48 लाख मीट्रिक टन है। एनपीके की खपत पिछले साल 3.44 लाख मीट्रिक टन थी, नवीन सत्र में इसका लक्ष्य 3.82 लाख मीट्रिक टन रखा गया है। एमओपी की खपत 0.86 लाख मीट्रिक टन थी, इसका लक्ष्य 1.32 लाख मीट्रिक टन है।
वहीं एसएसपी (सिंगल सुपर फास्फेट) की खपत 2022-23 में 2.46 लाख मीट्रिक टन के सापेक्ष 2023-24 का लक्ष्य 3.50 लाख मीट्रिक टन रखा गया है। 2022-23 में कुल खपत 59.45 मीट्रिक टन थी। 2023-24 में इसका लक्ष्य 60.25 मीट्रिक टन उर्वरकों की उपलब्धता का लक्ष्य तय है।
केंद्र सरकार की तरफ से 2023-24 में पीएम प्रणाम योजना शुरू की गई है। जिससे एकीकृत तत्व प्रबंधन करते हुए रासायनिक उर्वरकों का संतुलित मात्रा में फसलों की आवश्यकता के अनुसार उपयोग किया जाए। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जा रहा है की यूरिया और डीएपी के वैकल्पिक उर्वरकों का उपयोग किया जाए , जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाए। प्रदेश में रासायनिक उर्वरकों (यूरिया, डीएपी, एनपीके और एमओपी) के कम उपयोग के फलस्वरूप अनुदान के रूप में बचत की धनराशि का 50 प्रतिशत राज्य सरकार को दिया जाना प्रस्तावित है।
राज्यों को दिये जाने वाले ग्रांट का 95 प्रतिशत राज्य सरकार को और 5 प्रतिशत उर्वरक विभाग, भारत सरकार के प्रचार-प्रसार मद में दिया जाएगा। राज्य के द्वारा योजनान्तर्गत प्राप्त धनराशि का 65 प्रतिशत पूंजीगत व्यय और 30 प्रतिशत राज्य की विशिष्ट गतिविधियों के लिये अनटाइड फंड में जाएगा।