स्वयं सहायता समूह: महिलाओं की एकजुटता से मिली आत्मनिर्भरता, लेकिन अभी और जागरूक होना होगा

कई बार स्वयं सहायता समूह जुड़ी महिलाओं को ये नहीं पता होता है कि बैंक से मिले लोन को वो किस तरह इस्तेमाल कर सकती हैं, वो जो खर्च कर रहीं क्या वो तरीका सही है, ऐसे ही कई मुद्दों पर उन्हें जागरूक करने की जरूरत है।
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“हम म्यूच्यूअल फण्ड में पैसा लगाएंगे”, मैनेजर द्वारा स्वयं सहायता समूह को लोन में दी जाने वाली राशि का सदस्य महिलाऐं क्या करेंगी?, इस प्रश्न का यह उत्तर सुनकर मैनेजर को थोड़ा अचम्भा हुआ की गाँव में रहने वाली, अधेड़ उम्र की अशिक्षित महिलाओं को यह विचार कहां से आया?

विचार की उत्पत्ति के कई कारण हो सकते थे, मसलन, आजकल विविध विज्ञापनों के द्वारा उन तक इस आय के स्त्रोत की जानकारी पहुंची होगी। मैनेजर साहब ने उनको शेयर बाजार के जोखिमों के बारे में बताया और यह समझाया की बैंक लोन की राशि को शेयर बाजार में डालने की अनुमति नहीं होती। ग्रामीण महिलाओं को अपने वित्तीय फैसलों में इस प्रकार की स्वछंदता का अनुभव करते हुए देखना मैनेजर साहब के लिए भी एक सुखद अनुभव था। कभी गाँव की साप्ताहिक बाजार में बिंदी के पैसों के लिए अपने पति की जेब टटोलती महिलाएं, अब अपने बच्चों को समोसे जलेबी खाने के पैसे अपने बटुए से देती हैं।

इस प्रगति का बहुत बड़ा श्रेय नाबार्ड द्वारा 1992 में स्वयं सहायता समूह को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ने को दिया जा सकता है। इस प्रयास में सतत नवीन बदलाव किये गए और यह सुनिश्चित किया गया की ज्यादा से ज्यादा महिलाओँ को इस प्रयास से जोड़ा जाए। ग्रामीण क्षेत्र में किसी भी उद्योग को उसकी उपयोगिता से मापा जाना चाहिए ना की उसकी आमदनी से, अगर घर की महिला अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए कुछ उद्योग करना चाहती है तो यह ज़रूरी है की उसके इस प्रयास को आमदनी के रूप में न देख कर उस महिला की आर्थिक आत्मनिर्भरता के रूप में देखना चाहिए।

इस प्रयास ने मार्च 2022 तक, करीब118.3 लाख समूहों और 14.2 करोड़ ग्रामीण परिवारों को सशक्त किया है। वर्ष 2020-21 में लगभग 34 लाख समूहों ने विभिन्न वित्तीय संस्थाओं से लगभग 1000 करोड़ के क़र्ज़ लिए। सरकार ने समूह की प्रत्येक महिला की वार्षिक आय को वर्ष 2024 से पहले 1 लाख रूपए तक करने लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिए ज़रूरी है की ज्यादा से ज्यादा ग्रामीण जनसँख्या इस प्रयास से जुड़े और इस मुहीम को सफल बनाएं।

हम यह कहते हैं कि भारत की आत्मा उसके गाँव में बसती है और उसके समग्र विकास के लिए यह ज़रूरी है की सामाजिक और राजनीतिक शक्ति का विकेंद्रीकरण हो, गाँव एक स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करें और वित्तीय रूप से सक्षम हो। ग्रामीण इलाकों में वित्तीय आत्मनिर्भरता लाने के लिए स्वयं सहायता समूह को वित्तीय सहायता देना एक कारगार कदम साबित हुआ है।

ग्रामीण क्षेत्र में वित्तीय क्षमताओं और आत्मविश्वास का निर्माण करने के लिए सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के संबंध में समरूप लोगों के समूह को एकत्र करके और उन्हें गैर ज़मानती लघु क़र्ज़ उपलब्ध करने के प्रयास को अपार सफलता मिली है। स्वरोजगार और गरीबी उन्मूलन को प्रोत्साहित करने के लिए “स्वयं सहायता” की अवधारणा को स्थापित किया गया है।

स्वयं सहायता समूह में साधारणतः 10-20 सदस्य होते हैं। इन समूहों के सञ्चालन और बैंक से ऋण लेने के लिए कुछ साधारण से नियम हैं, जैसे कि:

  • सभी सदस्य समरूपी आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि से हों
  • समूह कम से कम 6 माह से सक्रीय रूप से संचालित हों
  • सदस्यों द्वारा नियमित मासिक बचत और दिए गए ऋण की भरपाई हों
  • लेन देन के लेखा जोखा की व्यवस्थित रजिस्टर में प्रविष्टियां हों
  • मासिक बैठक का विवरण लिखा जाए और लोकतान्त्रिक रूप से सभी सदस्य इसमें भाग लें।
  • समूह को संचालित करने के लिए, समूह सदस्यों में से तीन पदाधिकारियों का चयन किया जाता है, जिसमे अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और सचिव होते हैं।
  • अध्यक्ष सञ्चालन का कार्य, सचिव सभी कार्यो का लेखा और कोषाध्यक्ष का कार्य लेन देन का हिसाब रखना होता है।
  • इसके अलावा सरकार द्वारा प्रत्येक गाँव के लिए एक सखी का चयन भी किया जाता है। जिनका कार्य समूह का निर्माण तथा प्रत्येक कार्य हेतु उन्हें मार्गदर्शन करना होता है।
  • बैंक द्वारा ऋण का मानक उनके जमा के अनुसार जमा का 1:1 के अनुपात से लेकर 1:4 तक हो सकता है
  • समूह के सञ्चालन के लिए पंचसूत्र – नियमित बैठकें, नियमित बचत, नियमित आंतरिक ऋण, नियमित वसूली और खातों की उचित पुस्तकों का रखरखाव, आवश्यक हैं।
  • बैंकों से 3 लाख रूपए तक का ऋण मात्र 4% वार्षिक ब्याज दर पर उपलब्ध है। समूह आवश्यकता के आधार पर सावधि ऋण (Term Loan) या नकद ऋण सीमा (Cash Credit Limit) ऋण या दोनों का लाभ उठा सकते हैं।
  • ऋण की नियमित भरपाई करने पर समूह को न्यूनतम 1 लाख से शुरू हो कर न्यूनतम 6 लाख रूपए और अधिकतम 20 लाख तक का टर्म लोन या कैश क्रेडिट मिल सकता है। टर्म लोन की अवधि 2 वर्ष से 7 वर्ष तक हो सकती है।

ग्रामीण महिलाओं में नेतृत्व और उद्यमिता का विकास करने के लिए यह सबसे उचित तरीका जान पड़ता है। इसमें उन्हें समूह के साथ में धीरे धीरे आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे वह जोखिम को परख भी सकते हैं और किसी एक पर आने वाली किसी विपदा को साथ मिल कर एक सफल समूह चला सकते हैं।

महिला समूहों का बैंक पुनर्भुगतान 96 प्रतिशत से अधिक है, जो उनके ऋण अनुशासन और विश्वसनीयता को रेखांकित करता है।

हाल ही में आयी आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में स्वयं सहायता समूह की प्रगति को रेखांकित किया है जो कि दीर्घकालिक ग्रामीण परिवर्तन के लिए नियमित किए जाने की आवश्यकता है.ग्रामीण महिला श्रम बल भागीदारी दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, वर्ष 2018-19 में यह 19.7% थी जो कि वर्ष 2020-21 में बढ़ कर 27.7 % हो गयी है. इस मुहीम से देश कि करीब 8.7 करोड़ गरीब ग्रामीण महिलाओं को 81 लाख स्वयं सहायता समूह के रूप में सक्षमता प्रदान की गयी है। कुल 1.2 करोड़ समूहों में से 88% समूह केवल महिलाओं द्वारा संचालित है।

सहायता समूहों द्वारा कोविड-19 के समय मास्क का उत्पादन एक उल्लेखनीय योगदान रहा है, जिससे दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में समुदायों द्वारा मास्क की पहुंच और उपयोग को सक्षम किया गया है और कोविड-19 वायरस के खिलाफ महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान की गई है। 4 जनवरी 2023 तक, स्वयं सहायता समूहों द्वारा 16.9 करोड़ से अधिक मास्क का उत्पादन किया गया था।

आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार महिला एसएचजी को ग्रामीण विकास का केंद्र बनाया जाना चाहिए क्योंकि उन्हें पहले ही एक प्रभावी स्थानीय सामुदायिक संस्था के रूप में प्रदर्शित किया जा चुका है।

75 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण महिला श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं। इसका तात्पर्य कृषि से संबंधित क्षेत्रों, जैसे कि खाद्य प्रसंस्करण में महिलाओं के कौशल को बढ़ाने और रोजगार सृजित करने की आवश्यकता है। यहां स्वयं सहायता समूह, वित्तीय समावेशन, आजीविका विविधीकरण और कौशल विकास के ठोस विकासात्मक कार्यों में ग्रामीण महिलाओं की क्षमता को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

आकाश दीप मिश्रा, बैंक ऑफ महाराष्ट्र में ब्रांच मैनेजर हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं।

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