लखनऊ। औषधीय पौधों की खेती में किसानों की रुचि इन दिनों बढ़ी है। लेकिन आमतौर पर किसान इन फसलों से संबंधित जानकारी की कमी के कारण परेशानी का सामना करते हैं। फसल की अगर समय पर पर बुवाई की जाए, सिंचाई की जाए, समाय पर कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाए तो उत्पादन अच्छा होता है। लेकिन इसके लिए फसल से संबंधित जानकारी होनी जरूरी है।
इस समय किसानों द्वारा सबसे अधिक पसंद की जानेवाली कुछ महत्वपूर्ण औषधीय फसलों में अगले तीन महीनों में किये जानेवाले कृषि कार्यो का विवरण दिया जा रहा है जिससे उत्पादक सही समय पर सही निर्णय लेकर फसल उत्पादन तथा गुणवत्ता में वृद्धि कर सकें।
अश्वगंधा
अश्वगंधा की फसल की बुआई बारिश के अनुसार जून से अगस्त तक की जाती है। किसान जून के पहले सप्ताह में नर्सरी तैयार कर लें। इसके लिए प्रति हेक्टेयर की दर से पांच किलोग्राम बीज की व्यवस्था करके रखे। अश्वगंधा की उन्नत प्रजातियां विकसित की जा चुकी है। अत: सिर्फ जवाहर असगंध-22 प्रजातियां बाजार में उपलब्ध है। पोशिता व अन्य प्रजातियां ‘सिमैप’ लखनऊ द्वारा विकसित की जा चुकी है।
अश्वगंधा एक हेक्टेयर भूमि में उगाने के लिए 500 वर्ग मीटर में नर्सरी लगायें। नर्सरी में बीज बोने से पहले डाइथेन एम-45 या मैंकाजब (उ प्र/किग्रा बीज) से उपचारित कर लें। नर्सरी में बीजों को लगभग एक सेंटीमीटर की गहराई पर बोयें।
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कलिहारी
कलिहारी के लिए दोमट मिट्टी सबसे सही रहती है। इसकी बुआई के लिए खेत को जून तक तैयार कर लें। इसकी बुआई जुलाई में बारिश शुरू होते ही की जानी चाहिए। एक हेक्टेयर क्षेत्र में कलिहारी की रोपाई के लिए लगभग 10 क्विंटल कंदों (कलिहारी के फल) की आवश्यकता पड़ेगी। बुआई के समय कंदों को फफूंदीनाशक द्वारा भी उपचारित किया जाता है। खेत की तैयारी के समय 15-20 टन गोबर की खाद डाल कर भूमि में अच्छी तरह मिला दें और फिर बुवाई करें।
सनाय
सनाय को क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग समय पर बोया जाता है। उत्तर भारत में इसे नवंबर में पश्चिम भारत में जून, जुलाई व अक्तूबर-नवंबर में दक्षिण भारत में धान की कटाई के बाद सितंबर-अक्तूबर में तथा अन्य सिंचित क्षेत्रों में इसे फरवरी-मार्च में बोया जाता है। जून-जुलाई में बोई जानेवाली फसल की बुआई की तैयारी का सही समय चल रहा है। खेत को जून के महीने की शुरुआत में 10 टन गोबर की खाद डाल कर तैयार कर लें। सनाय की उन्नत प्रजातियों में एक्रिय आनंद द्वारा विकसित एएलएफटी-2 है। सिंचित क्षेत्रों में बुआई के लिए 15 किलोग्राम तथा असिंचित क्षेत्रों में 25 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है। बुआई लाइनों में अथवा डिब्लर विधि द्वारा की जा सकती है। डिब्लर विधि से छह किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है।
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घीकवार
घीकवार की खेती अलग-अलग जलवायु और खराब भूमियों में भी की जा सकती है। अच्छी फसल के लिए उचित जल निकासी वाली उर्वर तथा दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। सिंचाई सुविधा होने पर घीकवार की फसल को सर्दियों को छोड़ कर किसी भी मौसम में लगाया जा सकता है। इस समय इसकी फसल को लगाना हो तो पिछले वर्ष बीजों द्वारा लगायी गयी नर्सरी के नए पौधों की खेत में रोपाई करें। पुरानी फसल के जड़ से निकले अंकुरों की रोपाई करें और खेत में रोपने के बाद तुरंत पानी लगाये।
मुलहठी
मुलहठी की फसल के लिए उचित जल निकासी वाली कम से कम एक मीटर गहरी हल्की दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। मुलहठी को फरवरी-मार्च या जुलाई-अगस्त में बोया जा सकता है। जो किसान मार्च तक मुलहठी की बुआई नहीं कर पायें हैं वे जुलाई में इसे लगाने के लिए खेत की तैयारी कर लें। इसके खेत की तैयारी के लिए लगभग 15 टन गोबर की खाद मिला कर अच्छी तरह जुताई कर लें, उसके बाद बुवाई करें।
शतावरी
शतावरी को सर्दियों के अलावा किसी भी मौसम में लगाया जा सकता है। पर वर्षा के समय लगाये गये पौधे आसानी से उग आते हैं। फसल को बीज अथवा सकरों द्वारा उगाया जा सकता है। बीज द्वारा उगाने के लिए अप्रैल के महीने में तैयार कर लें। बुआई से पहले बीजों के कठोर बाहरी आवरण को नम बमाने के लिए एक दिन तक गुनगुने पानी में भिगोंकर रखें।