आम उत्पादक किसानों के लिए राहत, जानिए किसानों के लिए हैं कौन सी योजनाएँ
Gaon Connection | Jul 23, 2025, 12:57 IST
वर्ष 2024-25 में आम उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की संभावना है, लेकिन इससे किसानों को मूल्य गिरावट का संकट भी झेलना पड़ सकता है। ऐसे समय में सरकार ने ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’ के अंतर्गत बाजार हस्तक्षेप योजना (MIS) और भावांतर भुगतान योजना लागू कर किसानों को राहत दी है। अब अगर बाजार में आम के दाम तय मूल्य से नीचे जाते हैं, तो किसानों को नुकसान की भरपाई सीधे उनके खाते में की जाएगी।
भारत में आम को फलों का राजा यूँ ही नहीं कहा जाता। स्वाद, सुगंध और किस्मों की विविधता में भारतीय आमों की अलग पहचान है। अब आम केवल स्वाद तक सीमित नहीं, बल्कि किसानों के लिए आय का बड़ा स्रोत भी है। ऐसे में अगर आम की कीमतें गिर जाएं, तो यह किसानों के लिए बड़ा संकट बन सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने आम उत्पादक किसानों को समर्थन देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जो ख़ास तौर पर तब मदद करती हैं जब फसल तो बहुत होती है लेकिन बाजार में दाम गिर जाते हैं।
कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में ऐसी कई जानकारियाँ दी हैं।
इस साल आम उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीद
सरकारी अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में आम का कुल उत्पादन 228.37 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच सकता है, जो पिछले साल (2023-24) के 223.98 लाख मीट्रिक टन से अधिक है। यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में बेहतर किस्मों की प्रसंस्करण योग्य आमों के अच्छे उत्पादन की वजह से हुई है। अधिक उत्पादन का मतलब है कि किसानों को आम बेचने में चुनौती आ सकती है, खासकर जब बाजार में अधिक सप्लाई के चलते कीमतें गिरने लगती हैं।
PM-आशा और बाजार हस्तक्षेप योजना (MIS) क्या है?
कई बार ऐसा होता है कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता, विशेष रूप से जब फसल बहुत अधिक होती है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA) के तहत एक योजना लागू की है जिसका नाम है बाजार हस्तक्षेप योजना (Market Intervention Scheme – MIS)।
यह योजना उन फलों और सब्जियों के लिए है जो जल्दी खराब हो जाते हैं और जिन्हें सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना के तहत नहीं खरीदा जाता। यदि किसी राज्य में आम की कीमतें बहुत नीचे गिर जाती हैं, तो राज्य सरकार केंद्र से अनुरोध कर सकती है कि MIS के तहत किसानों से निर्धारित कीमत पर आम की खरीद की जाए। इसमें केंद्र सरकार 50% तक का नुकसान साझा करती है (पूर्वोत्तर राज्यों के लिए यह हिस्सा 75% होता है)।
नया कदम: भावांतर भुगतान योजना (Price Deficiency Payment - PDP)
सरकार ने 2024-25 में MIS में एक नया विकल्प जोड़ा है—भावांतर भुगतान योजना। इस योजना के तहत अगर किसी किसान को बाजार में आम बेचने पर तय मूल्य (MIP) से कम दाम मिलता है, तो सरकार उसे दोनों कीमतों के बीच का अंतर सीधे खाते में ट्रांसफर कर सकती है। इसका उद्देश्य किसानों को नुकसान से बचाना है, भले ही सरकार फसल की फिजिकल खरीद न करे।
राज्य सरकारें चाहें तो किसानों से फसल खरीद सकती हैं, या फिर सीधे भावांतर राशि देकर किसानों की आय की रक्षा कर सकती हैं।
बागवानी को मजबूती देने की योजनाएं
भारत सरकार का समेकित बागवानी विकास मिशन (MIDH) भी आम किसानों की मदद करता है। यह योजना नर्सरी तैयार करने, खेती में तकनीक लाने, फसल के बाद की देखभाल (जैसे ग्रेडिंग, पैकेजिंग, कोल्ड स्टोरेज) और मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में मदद करती है। किसानों को इससे खेती का लाभ बढ़ाने में सहायता मिलती है।
निर्यात बढ़ाने के लिए भी सरकार ने कदम उठाए हैं। एपीडा (APEDA), कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (AIF) और MIDH जैसी संस्थाएं मिलकर मान्यता प्राप्त पैकहाउस, प्रोसेसिंग यूनिट और लॉजिस्टिक्स की सुविधा उपलब्ध कराती हैं, जिससे भारतीय आम दुनिया के और देशों तक पहुंच सके।
अनुसंधान और नई किस्मों का विकास
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) भी आम किसानों के लिए लगातार काम कर रहा है। सीआईएसएच (CISH लखनऊ), भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, और IARI जैसी संस्थाएं आम की खेती पर अनुसंधान कर रही हैं। इन संस्थानों ने अब तक व्यावसायिक खेती के लिए लगभग एक दर्जन से अधिक आम की किस्में विकसित की हैं।
इसके अलावा, ICAR की 23 अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाएं (AICRP) पूरे देश में आम की खेती, फसल प्रबंधन और मूल्यवर्धन पर काम कर रही हैं। राज्य कृषि विश्वविद्यालय भी इसमें शामिल हैं और खेतों पर शोध के ज़रिए किसानों को बेहतर जानकारी और तकनीक प्रदान कर रहे हैं।
किसानों के लिए सुझाव और आगे की राह
किसानों को चाहिए कि वे अपने राज्य कृषि विभाग से संपर्क कर MIS या भावांतर योजना के बारे में जानकारी लें और पात्रता की पुष्टि करें।
बाजार मूल्य घटने की स्थिति में राज्य सरकार की स्वीकृति से एमआईपी दर पर आम बेचना संभव है।
प्रसंस्करण योग्य किस्में जैसे ‘तोतापुरी’ या ‘बंगलापल्ली’ की मांग बढ़ रही है। किसान इन किस्मों की खेती पर ध्यान दे सकते हैं।
एकीकृत कीट प्रबंधन, जैविक तरीकों और फसलोपरांत प्रबंधन (पोस्ट-हार्वेस्ट) पर भी किसान प्रशिक्षण लें ताकि गुणवत्ता और दाम दोनों बेहतर हो सकें।
आम किसानों के लिए यह एक राहत की खबर है कि सरकार ने भावांतर भुगतान और बाजार हस्तक्षेप जैसी योजनाओं के ज़रिए उन्हें आर्थिक सुरक्षा देने की पहल की है। साथ ही, बागवानी मिशन, निर्यात सहायता और अनुसंधान संस्थानों के प्रयासों से आम की खेती को एक नया आयाम मिल रहा है। ज़रूरत इस बात की है कि राज्य सरकारें तेजी से इन योजनाओं को ज़मीन पर उतारें और किसान जागरूक होकर इनका लाभ उठाएं।
कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में ऐसी कई जानकारियाँ दी हैं।
इस साल आम उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीद
सरकारी अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में आम का कुल उत्पादन 228.37 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच सकता है, जो पिछले साल (2023-24) के 223.98 लाख मीट्रिक टन से अधिक है। यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में बेहतर किस्मों की प्रसंस्करण योग्य आमों के अच्छे उत्पादन की वजह से हुई है। अधिक उत्पादन का मतलब है कि किसानों को आम बेचने में चुनौती आ सकती है, खासकर जब बाजार में अधिक सप्लाई के चलते कीमतें गिरने लगती हैं।
PM-आशा और बाजार हस्तक्षेप योजना (MIS) क्या है?
कई बार ऐसा होता है कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता, विशेष रूप से जब फसल बहुत अधिक होती है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA) के तहत एक योजना लागू की है जिसका नाम है बाजार हस्तक्षेप योजना (Market Intervention Scheme – MIS)।
A warehouse or packhouse with workers sorting and packing mangoes, while a signboard displays logos
नया कदम: भावांतर भुगतान योजना (Price Deficiency Payment - PDP)
सरकार ने 2024-25 में MIS में एक नया विकल्प जोड़ा है—भावांतर भुगतान योजना। इस योजना के तहत अगर किसी किसान को बाजार में आम बेचने पर तय मूल्य (MIP) से कम दाम मिलता है, तो सरकार उसे दोनों कीमतों के बीच का अंतर सीधे खाते में ट्रांसफर कर सकती है। इसका उद्देश्य किसानों को नुकसान से बचाना है, भले ही सरकार फसल की फिजिकल खरीद न करे।
राज्य सरकारें चाहें तो किसानों से फसल खरीद सकती हैं, या फिर सीधे भावांतर राशि देकर किसानों की आय की रक्षा कर सकती हैं।
बागवानी को मजबूती देने की योजनाएं
भारत सरकार का समेकित बागवानी विकास मिशन (MIDH) भी आम किसानों की मदद करता है। यह योजना नर्सरी तैयार करने, खेती में तकनीक लाने, फसल के बाद की देखभाल (जैसे ग्रेडिंग, पैकेजिंग, कोल्ड स्टोरेज) और मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में मदद करती है। किसानों को इससे खेती का लाभ बढ़ाने में सहायता मिलती है।
Mango Tree, Farmar Holding Mangos Green Growth Tree for Harvest
अनुसंधान और नई किस्मों का विकास
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) भी आम किसानों के लिए लगातार काम कर रहा है। सीआईएसएच (CISH लखनऊ), भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, और IARI जैसी संस्थाएं आम की खेती पर अनुसंधान कर रही हैं। इन संस्थानों ने अब तक व्यावसायिक खेती के लिए लगभग एक दर्जन से अधिक आम की किस्में विकसित की हैं।
इसके अलावा, ICAR की 23 अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाएं (AICRP) पूरे देश में आम की खेती, फसल प्रबंधन और मूल्यवर्धन पर काम कर रही हैं। राज्य कृषि विश्वविद्यालय भी इसमें शामिल हैं और खेतों पर शोध के ज़रिए किसानों को बेहतर जानकारी और तकनीक प्रदान कर रहे हैं।
किसानों के लिए सुझाव और आगे की राह
किसानों को चाहिए कि वे अपने राज्य कृषि विभाग से संपर्क कर MIS या भावांतर योजना के बारे में जानकारी लें और पात्रता की पुष्टि करें।
बाजार मूल्य घटने की स्थिति में राज्य सरकार की स्वीकृति से एमआईपी दर पर आम बेचना संभव है।
प्रसंस्करण योग्य किस्में जैसे ‘तोतापुरी’ या ‘बंगलापल्ली’ की मांग बढ़ रही है। किसान इन किस्मों की खेती पर ध्यान दे सकते हैं।
एकीकृत कीट प्रबंधन, जैविक तरीकों और फसलोपरांत प्रबंधन (पोस्ट-हार्वेस्ट) पर भी किसान प्रशिक्षण लें ताकि गुणवत्ता और दाम दोनों बेहतर हो सकें।
आम किसानों के लिए यह एक राहत की खबर है कि सरकार ने भावांतर भुगतान और बाजार हस्तक्षेप जैसी योजनाओं के ज़रिए उन्हें आर्थिक सुरक्षा देने की पहल की है। साथ ही, बागवानी मिशन, निर्यात सहायता और अनुसंधान संस्थानों के प्रयासों से आम की खेती को एक नया आयाम मिल रहा है। ज़रूरत इस बात की है कि राज्य सरकारें तेजी से इन योजनाओं को ज़मीन पर उतारें और किसान जागरूक होकर इनका लाभ उठाएं।