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हर बात पर डांटना आपके बच्चे को बना सकता है अन्तर्मुखी

कई बार ऐसा होता है कि कुछ बच्चे अन्तर्मुखी हो जाते हैं और ज्यादा लोगों से मिलना-जुलना बन्द कर देते हैं। कैसे इन बच्चों को पहचाना जाए बता रही हैं बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. नम्रता सिंह...
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लखनऊ। कहते हैं बच्चें भविष्य के कर्णधार होते हैं। उनके व्यवहार पर ही आगे आने वाले समाज का निर्माण होता है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि कुछ बच्चे अन्तर्मुखी हो जाते हैं और ज्यादा लोगों से मिलना जुलना बन्द कर देते हैं। कैसे इन बच्चों को पहचाना जाए और किस तरीके से उन्हें लोगों से मिलने-जुलने के लिए प्रेरित किया जाये यह जानने के लिए हमने बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. नम्रता सिंह से बात की।

डॉ. नम्रता सिंह, बाल मनोवैज्ञानिक 

“बच्चे जब छह साल से 16 साल के बीच मे होते तब उन पर उनके आस-पास के माहौल का काफी असर पड़ता है। इसके साथ ही अगर बच्चों के माता-पिता उन्हें हर बात पर डांटते हैं, तो इससे उनके आत्मविश्वास में कमी आती है। इसका यह असर पड़ता है कि वे आगे चलकर भी अपनी बात कहने में संकोच करते है, जिसका परिणाम यह होता है कि वह धीरे-धीरे अपने आप को अकेला कर लेते हैं। माता-पिता का अपने बच्चों का बार बार किसी अन्य बच्चे के साथ तुलना करना भी बच्चे को अन्तर्मुखी बनाता है। इसके साथ-साथ यह भी देखने में आता है कि जो बच्चा पढ़ाई में थोड़ा कमजोर होता है वह भी दूसरे लोगो से मिलने जुलने से कतराता है।” डॉ. नम्रता सिंह ने बताया।

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डॉ नम्रता सिंह ने आगे बताया, “सबसे पहले माता-पिता को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कहीं उनका बच्चा अन्तर्मुखी तो नहीं हो रहा। अगर अपका बच्चा आपसे अपनी बातों को साझा नहीं कर रहा है, आपसे कम बातचीत कर रहा है या आपके सामने आने से बच रहा है तो ऐसे संकेतों को पहचानने की जरुरत है। ऐसे मौके पर बच्चे पर विशेष ध्यान देने की आवश्यक्ता है। कई बार अभिभावक भी इस बात को मानने से इंकार करते हैं कि उनका बच्चा अन्तर्मुखी है, जिससे कि यह आगे जा कर बच्चे के लिए हानिकारक साबित होता है।”

“कई बार ऐसे  मामले भी आते हैं, जिसमें बच्चा पहलेे सामान्य होता है, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता है और किशोरावस्था में पहुंचता है उस समय किसी कारणवश वह अन्तर्मुखी हो जाता है। ऐसे में अभिवावक की जिम्मेदारी होती है कि वह उनकी परिस्थितियों को समझें।” डॉ नम्रता सिंह ने बताया।

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अभीवावकों को अपने बच्चों के साथ ज्यादा समय बिताना चाहिए और घर की हर छोटी बड़ी बात में उनकी राय लेनी चाहिये। अगर माता-पिता दोनों आफिस जाते हैं तो रात का खाना सब लोगों को एक साथ ही  खाना चाहिये। इसके साथ ही उन्हें अपने बच्चे के अंदर उस  खेल की रुचि पैदा करनी चाहिए, जिसमें ज्यादा लोग भाग ले रहे हों। अगर आपके घर पर कोई मेहमान आये तो अपने बच्चे से उनका स्वागत करने को कहें। इस तरह से जब आप अपने बच्चे को ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलने देंगे तो उसके अन्तर्मुखी होने की भावना खत्म हो जाएगी।” डॉ नम्रता सिंह ने आगे बताया। 

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