लखनऊ। कृषि वैज्ञानिक और जानकार लगातार ये बात कहते हैं कि ज्यादा उत्पादन के लिए किसानों को लाइन यानी कतार में बुवाई करनी चाहिए। लाइन में बुवाई का फायदा ये होता है कि एक तो जहां बीज कम लगते हैं वहीं निराई-गुड़ाई में आसानी से उत्पादन भी ज्यादा होता है।
कतार से बुवाई करने और कम मजदूरी के लिए ट्रैक्टर चलित कई मशीनें पिछले कई वर्षों से भारत में प्रचलित हैं। ये सभी मशीनें बड़ी और महंगी हैं। ऐसे में छोटे किसान इसका फायदा नहीं उठा पाते हैं। लेकिन पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आयोजित कृषि कुंभ में हस्त चलित बीज बुवाई मशीन की किसानों की खूब चर्चा रही।
ये भी पढ़ें : जीरो टिलेज सीड ड्रिल से गेहूं की बुवाई, जुताई के महंगे खर्च में आएगी कमी, मिलेगा ज्यादा उत्पादन
“ये मशीन छोटे और कम जोत वाले किसानों के लिए काफी काम की है। सिर्फ 4 हजार रुपए कीमत है। इसमें आलू और प्याज छोड़कर कुछ भी बोया जा सकता है। बीज छोटे या बड़े होने पर इसे उसी हिसाब से सेट भी किया जा सकता है।” गुजरात की मशीन निर्माता कंपनी के स्थानीय अधिकारी विजय भाई ने गांव कनेक्शन को बताया।
विजय के मुताबिक मशीन में आगे एक हैंडल लगा होता है जिसे किसान अपनी कमर में फंसाकर चलते जाता है और पीछे कतार में बीज बोते जाता है। वो आगे बताते हैं, “जो किसान सहफसली या मिश्रित खेती करते हैं उनके लिए एक फसल के बीच दूसरी फसल बोने में बड़ी दिक्कत होती है, लेकिन ऐसी मशीनों के जरिए उनका काम आसान हो सकता है।”
ये भी पढ़ें : वीडियो: इस मशीन से पशुओं को पूरे वर्ष मिलेगा हरा चारा, यहां से ले सकते हैं प्रशिक्षण
मशीन में बीज भरने वाले कंटेनर (स्थान) के नीचे एक रबड़ का पेंच लगा होता है, जिसे गेहूं या सरसों के बीच के मुताबिक सेट किया जा सका है। यानी अगर बीज चने जैसे मोटे हैं तो पेंच ज्यादा खोलना होता है और सरसों जैसे महीन हैं तो उसे कसना होता है। कृषि कुंभ में ये मशीन खरीदने वाले रायबरेली के मातादीन बताते हैं, “मेरे पास पांच बीघा जमीन है, मेरे लिए ये अच्छा काम करेगी, पहले जब बैल थे तो मैं लकड़िया हल (एक फार वाला हल) के जरिए बोता था, आगे एक किसान जोतता जाता था, पीछे कूंड में बीज डालते जाते थे, लेकिन ट्रैक्टर आने के बाद वो हल गायब हो गए।”
ज्यादातर किसान कल्टीवेटर से जुताई के बाद खेत में बीजों का छिड़काव करते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ट्रैक्टर चलती सीड डीलर और जीरो टिलेज मशीनें भी काफी काम आती है। सीडर वो मशीन होती है जिसमें खाद बीज एक साथ मिला देते हैं और ट्रैक्टर के जरिए चलाते जाते हैं। इससे खेत में छह से 10 कतार में बीज की बुवाई हो जाती है। इसकी खास बात ये होती है कि दिन में कई एकड़ बुवाई हो सकती है और बीज जमीन में निश्चित गहराई पर पड़ता है। साथ ही बीज के साथ खाद भी मिलती जाती है। जबकि जीरो टिलेज मशीन वो होती है जो बिना जोते खेत में भी बुवाई कर सकती है। धान कटाने के बाद गेहूं और सरसों बुवाई में जीरो टिलेज मशीन प्रचलित हो रही हैं।
ये भी देखिए : हरियाणा के धर्मवीर कंबोज की बनाई प्रोसेसिंग मशीनों से हजारों किसानों को मिला रोजगार
मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में मुरैना कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. यादवेन्द्र प्रताप सिंह इस तकनीक के बारे में बताते हैं, ”आमतौर पर किसान कल्टीवेटर से जुताई करता है, क्योंकि शुरू से यही चला आ रहा है। पहले लोग खरपतवार खत्म करने के लिए गहरी जुताई करते थे। साथ ही पहले सिंचाई के साधन भी सीमित थे, इसलिए खेत में नमी बरकरार रखने के लिए किसान खेत की जुताई करते हैं। अब किसानों के पास खरपतवार हटाने के लिए दवाएं आ गयी हैं साथ ही सिंचाई के भी उचित संसाधन है। ऐसे में किसान अगर खेत में खरपतवार नहीं है तो जीरो टिलेज सीड मशीन से सीधी बुवाई कर सकते हैं।”
वो आगे बताते हैं, “जीरो टिलेज में मशीन में खाद और बीज साथ में डालना होता है, वो उतनी जगह में खोदती है, जितनी जगह में बीज बोना होता है, क्योकि जुताई से खेत की ऊपरी सतह की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है, जिससे फसल तेज हवा और पानी से गिर जाती है। वहीं इस तकनीक से बोई गयी फसल कम गिरती है।”
ये भी पढ़ें : किसान के बेटे ने बनाई ऐसी मशीन, हजारों किसानों को मिलेगा फायदा
जीरो टिलेज मशीन से बुवाई करते किसान।