Gaon Connection Logo

उत्तरकाशी की टनल में फँसे मज़दूरों के साथ क्या हुआ होगा जानिए मेट्रो टनल में काम कर रहे मज़दूरों से

उत्तरकाशी के सिलक्यारा गाँव में एक सुरंग में फँसे 41 मज़दूरों को बाहर निकालने की कोशिश अब भी जारी है; अंदर फँसे मज़दूरों का पहला वीडियो आने के बाद रेस्क्यू टीम ने राहत की साँस ली है, लेकिन कैसी होती है सुरंग की दुनिया और कैसे होता है काम? इस घटना के बाद आगरा मेट्रो लाइन के लिए सुरंग में काम कर रहे कुछ मज़दूरों से जब बात की गई तो कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आई।
#metro

उत्तरकाशी के सिलक्यारा सुरंग और आगरा मेट्रो के ताज ईस्ट स्टेशन के बीच भले करीब 6 सौ किलोमीटर का फ़ासला हो, मेट्रो लाइन के लिए काम कर रहे 30 साल के अशर्फी चौधरी के लिए किसी भी सुरंग में घंटों काम करना खुले में काम से ज़्यादा कठिन है।

“देख कर लगता है सब मशीन कर रही है, लेकिन ऐसा नहीं है कई बार जोख़िम बाहर से ज़्यादा होता है; बाहर आप बैठ सकते हैं या इधर उधर टहल सकते है, अंदर सुस्ताने के लिए सोचना पड़ता है, सबकुछ फटाफट और तय वक़्त पर करना होता है।” अशर्फी चौधरी ने गाँव कनेक्शन को बताया।

झारखण्ड के पलामू में टोलरा गाँव के रहने वाले अशर्फी काम से फुर्सत के बाद जब सुरंग से बाहर निकले तो गाँव कनेक्शन की टीम से उन्होंने कई बातें साझा की जो हैसला भी बढ़ाती हैं।

“हमें जब सिलक्यारा गाँव के टनल में मज़दूर भाइयों के फंसे होने के बारे में पता चला तो थोड़ी चिंता तो हुई लेकिन इतना अब भी यकीन है कि सभी लोग सुरक्षित निकल आएंगे; अंदर जब हम काम करते हैं तो इतना मान कर चलते हैं कि थोड़ा बहुत चोट चपटे लग सकता है, हाँ ये घटना बड़ी है लेकिन अंदर काम करने वाले मेरे जैसे मज़दूर ही है जो जान पर खेल कर बड़े बड़े पुल या सुरंग तैयार करते हैं।” अशर्फी चौधरी ने आगे कहा “बनने के बाद देख कर हमें भी फक्र होता है देश के लिए कुछ बड़ा किया है।”

संतोष कुमार भी अशर्फी के साथं आगरा मेट्रो रेल प्रोजेक्ट में सुरंग के अंदर पटरी बिछाने का काम करते हैं।

“हम जब पटरी बिछाने का काम करते हैं तो कई चीजे देखनी होती है, एक सूत के फर्क से भी काम बिगड़ सकता है ऐसे में क्या खाना, क्या पीना बस तय समय पर काम पूरा करना होता है। ” संतोष ने कहा।

झाखंड के ही गढ़वा जिले के करता गाँव में संतोष का परिवार रहता है; उत्तरकाशी की घटना के बाद से उनकी पत्नी बच्चे अब हर रोज़ उनसे फोन पर बात करते हैं।

संतोष कहते हैं “टनल बोरिंग मशीन (टीएमबी) जैसे जैसे आगे बढ़ती है हमारा काम भी चलता है, सिर्फ पटरी नहीं बिछाते हैं बड़ा काम कास्टिंग का होता, मेरा मतलब पटरी के दोनों तरफ सीमेंट गिट्टी की ढलाई करते हैं जो एक बार शुरू हुआ तो बीच में नहीं छोड़ते पूरा होने पर ही सुरंग से बाहर निकलते हैं भले पूरा दिन निकल जाए, खाने की तब सुध नहीं होती।”

“हम खुशकिस्मत है अबतक अच्छे ठेकेदार और सुरक्षा सामान मिलते रहे हैं, ख़राब मौसम में हालाँकि दिक्क़ते ज़रूर बढ़ जारी हैं।” संतोष गाँव कनेक्शन से बताते हैं।

आगरा फोर्ट से ताजमहल तक मेट्रो स्टेशन का काम चल रहा है।

ताजनगरी में 29.4 किमी लंबे दो कॉरिडोर का मेट्रो नेटवर्क बनना है, जिसमें 27 स्टेशन होंगे। ताज ईस्ट गेट से सिकंदरा के बीच 14 किमी लंबे पहले कॉरिडोर का निर्माण काम तेज़ी से चल रहा है। इस कॉरिडोर में 13 स्टेशनों को बनाया जाना है जिसमें 6 एलीवेटिड और 7 स्टेशन ज़मीन के अंदर होंगे।

सुरंग में मेट्रो ट्रेन की पटरी बिछाने की ज़िम्मेदारी बी एंड एस इंटरप्राइजेज को दी गई है। इस कंपनी के प्रमुख संजय पांडे कहते हैं ” सबकुछ टीम पर निर्भर करता है, मेरे सभी मज़दूर परिवार के सदस्य जैसे हैं; उनको समय पर भोजन और उनकी छोटी मोती जरूरतों का ध्यान रखना मेरी ज़िम्मेदारी है; कभी कभी काम के कारण कुछ घंटे ज़्यादा भी लग जाते हैं तब भी ये अपना काम समझ कर मन से करते हैं, परिवार से दूर सुरंग में घंटों गुजरना ही खुद में तपस्या है। “

पलामू के मल्लाह टोली गाँव से आगरा आए 34 साल के मुखलाल देव भी यहाँ सुरंग में काम कर रहे हैं। वे कहते है ” देखिए काम कोई भी आसान नहीं होता, हम तो बस इतना चाहते हैं हाडतोड़ मेहनत के बाद सब अच्छा बने, उत्तरकाशी में जो सुरंग धसी है उससे वहाँ काम कर रहे मज़दूर भी बराबर दुःखी होंगे, सिर्फ इसलिए नहीं कि उनके कुछ साथी अंदर फँसे है, बल्कि इसलिए भी कि कई दिनों की उनकी कड़ी मेहनत का एक हिस्सा ढह गया है। ”

आगरा मेट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए काम कर रहे बिहार के गोपालगंज के नदीम खान किसी भी निर्माण काम में हादसे को अनोखी बात नहीं मानते। वे कहते हैं “यहाँ सुरंग में जो मशीने चलती हैं उसे देख लें तो किसी को भी हैरत होगी, एक साथ कितना कुछ होता है लेकिन उसके पीछे अभ्यास और सतर्कता दोनों ज़रूरी है।”

कैसे बनती है सुरंग

सुरंग बनाने में एक विशालकाय मशीन की मदद ली जाती है, जिसे टनल बोरिंग मशीन कहते हैं।

टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) कई हिस्सों में बटी होती है। टीबीएम के सबसे आगे हिस्से में कटिंग हेड होता है, जिसकी मदद टीबीएम मिट्टी को काटते हुए सुरंग की खुदाई करती है; कटिंग हेड में एक विशेष किस्म के केमिकल के छिड़काव की व्यवस्था होती है, जो कटिंग हेड पर लगे नोजल की मदद से मिट्टी पर छिड़का जाता है।

इस केमिकल की वजह से मिट्टी कटर हेड पर नहीं चिपकती और वे आसानी से मशीन में लगी कन्वेयर बेल्ट की मदद से मशीन के पिछले हिस्से में चली जाती है, जहाँ से ट्रॉली के जरिए मिट्टी को टनल से बाहर लाकर डम्पिंग एरिया में भेज दिया जाता है। इसके साथ ही मशीन के पिछले हिस्से में प्रीकास्ट रिंग सेगमेंट को लॉन्च करने की व्यवस्था भी होती है।

सुरंग बनाने में एक विशालकाय मशीन की मदद ली जाती है, जिसे टनल बोरिंग मशीन कहते हैं।

सुरंग बनाने में एक विशालकाय मशीन की मदद ली जाती है, जिसे टनल बोरिंग मशीन कहते हैं।

टनल बनाने के दौरान रिंग सेगमेंट लगाने के बाद टीबीएम से ही रिंग सेगमेंट और मिट्टी के बीच में ग्राउटिंग स़ोल्यूशन भर दिया जाता है, जो रिंग सेगमेंट्स और मिट्टी के बीच मज़बूत जोड़ बना देता है। टीबीएम के मिड शील्ड में लगे थ्रस्टर्स मशीन को आगे बढ़ने में मदद करते हैं।

उत्तरकाशी के सिलक्यारा गाँव के टनल में भी ऐसी ही मशीन की मदद ली जा रही थी। 12 नवंबर को मज़दूरों के सुरंग में फँसने के बाद से काम रुका है और उन्हें सुरक्षित निकालने की कोशिश लगातार जारी है। अब रेस्क्यू ऑपरेशन में इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन के अध्यक्ष ऑरनॉल्ड डिक्स की मदद ली जा रही है। अंदर फँसे मज़दूरों का ताज़ा वीडियों आने के बाद उम्मीद की जा रही है जल्द ही वो सुरक्षित निकाल लिए जाएँगे।

More Posts