लखनऊ। मानसिक स्वास्थ्य एक बहुत बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है फिर वो चाहे लोगों के डिप्रेशन में आना हो या उसके बाद आत्महत्या कर लेना। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कई बातों के बारे में गाँव कनेक्शन को बताया किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मानसिक चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डॉ. पीके दलाल ने।
डॉ. पीके दलाल ने बताया, “मानसिक स्वास्थ्य दिवस हर साल 10 अक्टूबर को मनाया जाता है वो विश्व स्वास्थ्य संगठन का दिन होता है। इसमें इस साल का स्लोगन युवाओं के लिए ही है ‘बदलते परिपेक्ष्य में युवा एवं मानसिक स्वास्थ्य’। बदलता परिपेक्ष्य यह है कि युवाओं में आजकल प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ गयी है। रोजगार को लेकर बहुत समस्याएं हैं, पढ़ाई-लिखाई को लेकर समस्याएं हैं। इसके अलावा जो लोग विषम परिस्थितयों में रह रहे हैं उनको विशेष रूप से सम्भालने की जरूरत पड़ती है। ये देखा गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 14 वर्ष की उम्र तक 50 प्रतिशत लोगों में कोई न कोई मानसिक रोग जन्म ले चुका होता है। इसके अलावा 10-20 प्रतिशत युवाओं को मानसिक रूप से किसी न किसी की मदद लेने की आवश्यकता होती है। तीसरी सबसे बड़ी चीज है कि जो 15-29 वर्ष के युवा हैं उनमें आत्महत्या मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।”
ये लक्षण दिखें तो मिलें चिकित्सक से
अगर अभिवावकों, अध्यापकों और अन्य लोगों को मानसिक रोगों के बारे में जल्द से जल्द पता कर लिया जाये तो उन्हें जल्दी पहचान कर इलाज जल्दी किया जा सकता है। बच्चा स्कूल जा रहा है या नहीं इस चीज को देखें, बच्चा पढ़ाई-लिखाई कैसी कर रहा है इसे देखें, किन साथियों के साथ वो घूम फिर रहा है, ऐसा तो नहीं है कि वह ज्य़ादा अलग रह रहा है, वह उदासीन रहता है, उसे उलझन-घबराहट ज्यादा रहती है, कहीं भी जाने से कतराता है, किसी नशे का शिकार तो नहीं हो गया है। इस तरह के लक्षण दिखते हैं तो बच्चे को बिना डांटे-फटकारे मित्रता पूर्वक उससे पूछना चाहिए। अगर कोई लक्षण मानसिक बीमारियों का लग रहा है तो किसी मानसिक चिकित्सक या किसी मनोवैज्ञानिक से मिलना चाहिए।
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मानसिक बीमारी भी है आम बीमारी
कई सालों से मानसिक बीमारियों को वही झाड़-फूक, दुआ-भभूत, भूत-चुड़ैल इन भावनाओं से देखते हैं। लोग इसे बीमारी की परिधि में नहीं मानते हैं यह नहीं समझते हैं कि यह एक बीमारी है और इसके निदान के लिए सबसे पहले ओझा-सोखा इन लोगों के पास जाते हैं, जिनको हम लोग फेथ हिलर बोलते हैं और उनसे इलाज कराने का प्रयास करते हैं। हमारा यही कहना है कि सबसे पहले किसी डॉक्टर से मिलें और उसे अपनी समस्या बताएं वह आपको मानसिक चिकित्सक तक पहुँचाने का रास्ता बता देगा। यह भी सारी बीमारियों के जैसे ही एक आम बीमारी है। जल्दी बीमारी का पता लग जाने पर इसका इलाज जल्दी हो जाता है वरना इसका इलाज बहुत लम्बा चलता है और मरीज के ठीक होने में भी दिक्कत आती है।
नींद और मानसिक बीमारी का संबंध
मानसिक बीमारियों में अक्सर देखा जाता है कि इंसान को नींद नहीं आती है। यह डिप्रेशन का एक लक्षण है। इसमें यह देखा जाता है कि इंसान पहले पहर में तो सो लेता है लेकिन बाद के पहर यानि दो-तीन बजे उसकी आँख खुल जाती है उस समय उसको उदासी मायूसी बहुत रहती है। उलझन-घबराहट से अगर कोई व्यक्ति पीड़ित है तो उसको शुरुआत में ही यानि कि देर से नींद आती है और फिर वह सुबह देर तक सोते रहते हैं। यह दोनों ही चीजें गलत हैं। यह अति आवश्यक है कि जो युवा वर्ग है वह कम से कम आठ घंटे तो सोये ही और हर व्यक्ति के लिए आठ घंटे की नींद जरुरी है, जिससे अगले दिन वह अपना काम अच्छे से कर सके।
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अवसाद से आत्महत्या
डिप्रेशन की बीमारी लगभग 10-15 प्रतिशत लोगों में देखी जाती है। इनमें से 10-15 प्रतिशत लोग आत्महत्या कर लेते हैं और इससे कई गुना ज्यादा लोग आत्महत्या करने का प्रयास करते हैं। इसके लिए हम लोग कहते हैं कोई भी व्यक्ति उदास, मायूस, अलग रह रहा है उसको भूख नहीं लग रही है, नींद नहीं आ रही है उसको हर एक चीज बेरस लग रही है तो उसका तुरंत उपचार करवाएं वरना जब यह बीमारी बढ़ जाती है, जिसे सीवियर डिप्रेशन कहते हैं। इस समय उस व्यक्ति के अन्दर आत्महत्या के और नकारात्मक विचार अन्दर आने लगते हैं और अपने आप को खत्म करने का प्रयास करने लगता है।