बचपन, नशा और मौत

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लखनऊ। युवाओं के बीच नशाखोरी की लत के मामलों में अब लखनऊ भी महानगरों से पीछे नहीं। शहर में किशोर यानी 14 से लेकर 18 साल के बच्चों के बीच हर तरह के नशे की आदत बढ़ रही हैं। हर तरह का नशा यानी शराब-सिगरेट से लेकर, वाइटनर, भांग, चरस और गांजा तक सब कुछ वो ले रहे हैं।

पिछले एक दशक में नशाखोरी की लत देश के लिए ज्वलंत मुद्दा बनकर उभरा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2004 से 2014 तक लगभग 25,426 लोगों ने नाशाखोरी से उपजी समस्याओं के चलते आत्महत्या कर ली। यानि औसतन सात आत्महत्या रोज़। वर्ष 2004 से 2014 के बीच इन मामलों में 149 प्रतिशत की बढोतरी दर्ज की गई।

लखनऊ के बलरामपुर हॉस्पिटल के किशोर स्वास्थ्य क्लीनिक के काउंसलर डॉ. जेबी पांडेय ने बताया कि उनके पास महीने में करीब 20 से 25 मरीज ऐसे आते हैं जिन्हें नशे की लत होती है। इसमें सबसे ज़्यादा 15 से 17 साल के किशोर होते हैं जिन्हें कभी दोस्तों से तो कभी फिल्में देखकर नशे की आदत हो जाती है। 

अक्सर युवाओं में नशे की लत स्वास्थ्य संबंधी गलत धारणाओं के चलते भी बढ़ जाती है।

डॉ. पांडेय ने बताया कि कुछ दिनों पहले मेरे पास एक 14 साल का स्टूडेंट आया जिसे शराब की लत लग गई थी। उसने काउंसलिंग के दौरान बताया कि वह दुबला-पतला है जिसकी वजह से स्कूल में उसका मजाक बनाया जाता है। ऐसे में दोस्तों ने उसे वजन बढ़ाने के लिए बियर पीने सलाह दी थी। सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश में वर्ष 2014 तक दारू व अन्य नशों में लिप्त लोगों की संख्या 14 करोड़ 40 लाख थी। इसमें से 11 करोड़ अकेले शराब की लत वाले लोग थे।

लोगों को नशे से बाहर लाने में मदद करने वाले इंदिरा नगर स्थित ‘निर्वाण डी-एडिक्शन कम रिहैबिलिटेशन’ संस्था के संस्थापक सुरेश सिंह ढपोला ने बताया, “15 से लेकर 17 साल के बच्चे वाइटनर और बियर के आदी हो रहे हैं। इनमें ज्यादातर अकेली संतान और उच्च मघ्यम परिवारों के बच्चे हैं जिन्हें घर पर काफी लाड़-दुलार से पाला जाता है”।

सुरेश बताते हैं कि हम काउंसलिंग में अभिभावकों को भी समझाते हैं, “आप एक नियम बना लें कि दिन में एक वक्त का खाना परिवार के साथ खाएंगे। यह काफी हद तक मददगार होगा। आप इस दौरान अपने बच्चों से बात कर सकते हैं। उनसे बातकर उनकी हरकतों को नोटिस कर सकते हैं। पैसे नहीं बल्कि परिवार को प्राथमिकता में रखें”। सुरेश सिंह का कहना है कि भारत में ग्रास, मैरिजुआना, कैनबिस बहुत आसानी से मिल जाता है क्योंकि यह सस्ता है। साथ ही इसमें किसी तरह की स्मेल भी नहीं होती इसलिए इसे आराम से लोग अपने पास रख लेते हैं। 

सुरेश बताते हैं कि इस बात ने उन्हे चौंका दिया कि आज के किशोर चरस, गांजा और भांग के आदी होने के साथ ही ये बात भी जानते हैं कि देश में कहां ये उत्पाद अच्छे स्तर के मिलते हैं। वे बताते हैं, “मेरे पास ऐसे कई ममाले आ चुके हैं जिनकी काउंसलिंग पर पता चलता है कि वे कई बार शिमला की पार्वती वैली में अच्छी क्वालिटी की कैनबिस के लिए जा चुके हैं”।

नशाखोरी दिमाग को पहुंचाती है नुकसान

नशे की लत वाले बच्चे का ब्रेन सेल पूरी तरह बर्बाद हो जाता है। उनकी सोचने की शक्ति खत्म हो जाती है। सही गलत का फैसला नहीं कर पाते। उनकी रोग प्रतिरोधी क्षमता भी कम हो जाती है, जिसके चलते वे तमाम बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।

किसी भी तरह के नशे को पूरी तरह आदत में तब्दील होने में पांच से छह महीने लगते हैं। ऐसे में आप अपने बच्चे के व्यवहार में बदलाव महसूस कर जल्दी कदम उठा सकते हैं।

रिपोर्टर - शेफाली श्रीवास्तव

 

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