बेलन-चिमटा लेकर सड़क पर क्यों उतरी हजारों महिलाएं
गाँव कनेक्शन 3 Nov 2015 5:30 AM GMT

लखनऊ। बेलन और कलछुल हाथों में लिए हजारों की संख्या में मिड-डे मील की रसोईया तीन नवम्बर को लखनऊ की सड़कों पर उतरीं। मांग थी कि हर वर्ष होने वाली नियुक्ति प्रक्रिया को बंद किया जाये, नियुक्ति के नियमों में बदलाव हो, स्थाई बनाने के साथ ही मानदेय भी 5000 रुपये किया जाये।
‘एक हज़ार में दम नहीं, पांच हज़ार से कम नहीं’ नारा लगाते हुए रसोईये चारबाग से शुरू करके, विधानसभा होते हुए, लक्ष्मण मैदान पहुंचे। लक्ष्मण मैदान में हुई सभा में ‘राष्ट्रीय मध्यान्ह भोजन रसोइया फ्रंट’ के राष्ट्रीय महासचिव जुल्फेकार अली ने कहा, “रसोइयों की स्थिति बंधुआ मजदूरों से भी बदतर है, न तो काम की सुरक्षा न ही जीने लायक पारिश्रमिक। इन्हें मनमाने तरीके से विद्यालयों में रखा जाता है और उसी तरह मनमाने ढंग से हटा दिया जाता है।”
उत्तर प्रदेश में लगभग दो लाख 90 हज़ार रसोईये कम सहायक हैं। वर्तमान समय में इन्हें प्रति माह 1000 रुपये का मानदेय मिलता है, जिसमे से 750 रुपये केंद्र और 250 रुपये राज्य को देना होता है।
‘राष्ट्रीय मध्यान्ह भोजन रसोइया फ्रंट’ के बैनर तले आयोजित इस प्रदर्शन में मानदेय बढ़ाने के साथ-साथ, मिड-डे मील बनाने की ठेकेदारी एनजीओ को ‘साजिशन’ देने का भी मुद्दा उठा। “रसोईयों का मानदेय 5000 रुपये प्रतिमाह तय होना चाहिए, भुगतान भी उनके निजी खाते में किया जाए। उचित मजदूरी का भुगतान सरकार की बाध्यता होनी चाहिए”, संगठन के प्रदेश संयोजक रमेश चन्द्र ने कहा।
वहीँ संगठन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश राम ने कहा, “सरकार एमडीएम योजना को एनजीओ को देने का षड्यंत्र रच रही है जिसका संगठन विरोध करेगा, 10 नवम्बर को इस मुद्दे पर दिल्ली में धरना देगा”।
रसोइयों के इस संगठन की प्रमुख मांगे हैं –
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