बेटी के प्यार ने बनाया प्रीति निगम को बिजनेस वुमेन

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बेटी के प्यार ने बनाया प्रीति निगम को बिजनेस वुमेनगाँव कनेक्शन

लखनऊ। ऑटिस्टिक रोगग्रस्त बेटी को मोमोज पसंद थे रोजाना बाजार से मोमोज लाना जेब गवारा नहीं कर रहा था, तब प्रीति निगम ने मोमोज बनाने का प्रशिक्षण लिया और घर पर मोमोज बनाने लगी। जिसने भी उसे खाया उसने प्रशंसा की, कहा मोमोज का बिजनेस क्यों शुरू नहीं करते। सलाह रंग लाई 2009 में पांच सौ मोमोज से शुरू हुआ व्यापार अब ढाई से तीन हजार मोमोज प्रतिदिन का फैलाव ले चुका है। 

प्रीति निगम (35 वर्ष) के जीवन में सब ठीक चल रहा था। उनकी एक बेटी थी मुस्कान और पति एक निजी कम्पनी में कार्य करते थे। पर प्रीति के जीवन में अचानक उथल-पुथल मच गई जब उन्हें पता चला कि मुस्कान सामान्य बच्ची नहीं है, वो ऑटिस्टिक नामक रोग से ग्रस्त है। कई डाक्टरों को दिखाया पर सभी ने कहा कि उसे जितना आप खुश रखेंगे वह उतना ही सामान्य रहेगी। 

दिल्ली में रहते हुए प्रीति ने देखा उनकी बेटी खाने में मोमोज पसंद करती। उसके अलावा वह कुछ नहीं खाती। रोज बाजार से मोमोज लाकर खिलाना दिक्कत तलब था। स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता। फिर प्रीति ने मोमोज बनाने की ट्रेनिंग ली। जल्दी लोगों ने उन्हें ये अहसास कराया कि वे बाजार से ज्यादा अच्छे मोमोज बनाती हैं। इसी बीच प्रीति अपने परिवार के साथ लखनऊ अपने ससुराल लौट आई। 

प्रीति बताती हैं, “मुझे मोमोज बनाना आता था। मैंने सोचा अगर दिल्ली में मोमोज बिक सकते हैं तो यहां क्यों नहीं। पति से सलाह ली। उन्होंने पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया।”

आगे प्रीति बताती हैं, “मैंने सोचा क्यों न ठेले को नया लुक दिया जाए।  एक कारपेंटर से बात की। उसे डिजाइन समझाया। उसने तीस हजार में दो ठेले तैयार किए। हमने ब्रांड नेम पर विचार किया तो हमें लगा कि मोमोज में मिर्ची की चटनी ही उसकी जान होती है। सो  उसका नाम मिर्ची मोमोज रखा, रजिस्टर्ड करा लिया। हमने अपने ठेले पर लगने वाली डिजाइन डिस्पले को भी रजिस्टर्ड करा लिया है। पहले दिन घर की गैलरी में एक महिला हेल्पर की मदद से पांच सौ मोमोज बिक्री के लिए तैयार किए।” 

प्रीति के साथ बैठे उनके पति नवीन निगम (40 वर्ष)  बताते है, “दो वेंडरों से शहर के कपूरथला क्षेत्र में डरते-डरते ठेले लगवाए। शहर में पहली बार कोई फास्ट फूड इस तरह के ठेले पर बिक रहा था। कपूरथला में ज्यादातर कोचिंग कालेज हैं और शाम के वक्त छह से आठ हजार बच्चा सीमित पाकेट के अनुसार पेट पूजा का ठीहा ढूंढने लगता है। स्टूडेंट्स के अलावा राह चलते लोगों ने मोमोज को हाथों-हाथ लिया। गर्ल्स जो कुछ ज्यादा ही हेल्थ कांसेस होती हैं, हमारे ठेले पर टूट पड़ीं। सफाई व टेस्ट ने अपना जादू चलाया। देखते ही देखते हमने दो से चार और फिर नौ ठेलों पर शहर के सभी भीड़-भाड़ वाले इलाकों में मोमोज की सप्लाई शुरू कर दी।”

प्रीति बताती हैं, “2009 में पांच सौ मोमोज से शुरू हुआ व्यापार अब ढाई से तीन हजार मोमोज प्रतिदिन का फैलाव ले चुका था। घर की गैलरी से शुरू हुआ बिजनेस ग्रांउड फ्लोर के एक कमरे से होता हुआ पूरे घर में फैल गया। एक हेल्पर की जगह अब तीस-बत्तीस महिलाओं ने ले ली। रोज सुबह आर्डर मिलते। वेज मोमोज, पनीर मोमोज व चिकन मोमोज के अलावा आर्डर पर फ्रैंकी रोल्स वेज और नॉनवेज की मांग बढ़ती ही जा रही है।”

वो आगे बताती हैं, “सीजन में जो पत्ता गोभी दो सौ रुपए में बोरी भर मिलती है वह आफ सीजन में दो हजार रुपए बोरी मिलने लगती है। लोग पत्ता गोभी की जगह लौकी डालने लगते हैं पर हम टेस्ट से समझौता नहीं करते।”प्रीति बताती हैं, “उनका स्टाफ परिवार की तरह रहता है"

भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछने पर प्रीति बताती हैं, “वे अपनी कम्पनी मिर्ची फूड्स के स्थायी आउटलेट की चेन खोलना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि स्टूडेंट्स व फैमलीज को बेहतर से बेहतर मोमोज दें और दाम भी स्थिर रखें। साथ ही हम अपने टेस्ट के साथ समझौता नहीं करते।” इसी दौरान प्रीति और नवीन के परिवार में एक और बेटी गौरी ने जन्म लिया। वे अपनी बेटियों को लक्ष्मी का स्वरूप मानते हैं। इसमें कोई शक नहीं है।   

रिपोर्टर - प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव

 

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